' अपनी प्रगति तो सभी करते हैं पर उसके साथ समाज की , अपने देशवासी भाइयों की प्रगति को जोड़ने और अपनी योग्यता , प्रतिभा का लाभ सभी को बांटने वाला ही विश्व कवि रविन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में ' सहज मानुष ' कहलाता है l डॉ. शिवसागर रामगुलाम ऐसे ही सहज मानुष थे । '
आपका जन्म मारीशस के छोटे से गाँव में एक श्रमिक परिवार में हुआ था । उनके गाँव में कोई पाठशाला नहीं थी , अत: वे रोज कई मील पैदल चलकर दूसरे गाँव की पाठशाला में पढ़ने जाया करते थे । अपने दृढ़ संकल्प , महत्वाकांक्षा , लगन , निष्ठा और श्रम के बल पर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड जा पहुंचे । चौदह वर्ष तक वे इंग्लैंड में रहे और वहां से डॉक्टर की डिग्री हासिल करके वे स्वदेश लौटे । वहां की चकाचौंध उनके मातृभूमि के प्रति प्रेम को किंचित मात्र भी धुंधला न कर सकी थी ।
डॉक्टर साहब ने अपनी चिकित्सा सेवाएं अपने बन्धुओं को समर्पित करने के साथ उनमे आजादी के लिए चेतना जगाने का कार्य भी किया । वे गरीबों की चिकित्सा की कोई फीस नहीं लेते थे , उनके पास पैसे न होने पर दवाई भी अपनी ओर से दे देते थे । उनकी इस उदार ह्रद्यता और परोपकार ने उन्हें शीघ्र ही सारे मारीशस में लोकप्रिय बना दिया । चिकित्सा , पत्रकारिता और राजनीति इन तीनो ही क्षेत्रों में उनका समान रूप से दखल था । इन तीनों साधनों को उन्होंने परमार्थ की द्रष्टि से ही प्रयोग में लिया । 12 मार्च 1968 को मारीशस आजाद हुआ और डॉ. शिवसागर रामगुलाम को प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला । प्रधानमंत्री होते हुए भी उनमे जरा भी अहंकार नहीं था , फलों से लदे वृक्ष की तरह उन्होंने अपने अहम् को झुकाये ही रखा । प्रधान मंत्रित्व उनके लिए जनसेवा का साधन भर था ।
आपका जन्म मारीशस के छोटे से गाँव में एक श्रमिक परिवार में हुआ था । उनके गाँव में कोई पाठशाला नहीं थी , अत: वे रोज कई मील पैदल चलकर दूसरे गाँव की पाठशाला में पढ़ने जाया करते थे । अपने दृढ़ संकल्प , महत्वाकांक्षा , लगन , निष्ठा और श्रम के बल पर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड जा पहुंचे । चौदह वर्ष तक वे इंग्लैंड में रहे और वहां से डॉक्टर की डिग्री हासिल करके वे स्वदेश लौटे । वहां की चकाचौंध उनके मातृभूमि के प्रति प्रेम को किंचित मात्र भी धुंधला न कर सकी थी ।
डॉक्टर साहब ने अपनी चिकित्सा सेवाएं अपने बन्धुओं को समर्पित करने के साथ उनमे आजादी के लिए चेतना जगाने का कार्य भी किया । वे गरीबों की चिकित्सा की कोई फीस नहीं लेते थे , उनके पास पैसे न होने पर दवाई भी अपनी ओर से दे देते थे । उनकी इस उदार ह्रद्यता और परोपकार ने उन्हें शीघ्र ही सारे मारीशस में लोकप्रिय बना दिया । चिकित्सा , पत्रकारिता और राजनीति इन तीनो ही क्षेत्रों में उनका समान रूप से दखल था । इन तीनों साधनों को उन्होंने परमार्थ की द्रष्टि से ही प्रयोग में लिया । 12 मार्च 1968 को मारीशस आजाद हुआ और डॉ. शिवसागर रामगुलाम को प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला । प्रधानमंत्री होते हुए भी उनमे जरा भी अहंकार नहीं था , फलों से लदे वृक्ष की तरह उन्होंने अपने अहम् को झुकाये ही रखा । प्रधान मंत्रित्व उनके लिए जनसेवा का साधन भर था ।
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