' जो मनुष्य सार्वजनिक और निजी जीवन में सत्य का आश्रय लेता है वह अंत में अवश्य सफल होता है । ' मानवता , सत्यता , समानता , परिश्रम , पुरुषार्थ , धीरता और वीरता जैसे महान गुणों के पुंजीभूत व्यक्ति थे --- अब्राहम लिंकन । '
दासों पर होने वाले अत्याचारों को देखकर उन्होंने उपस्थित जनों से कहा था ---- "मैं ईश्वर के नाम पर प्रतिज्ञा करता हूँ कि अगर कभी उपयुक्त अवसर मिला तो इस पापपूर्ण प्रथा को जड़मूल से उखाड़ कर फेंक दूंगा । "
4 मार्च 1861 को लिंकन ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली । दक्षिणी राज्यों ने गणराज्य के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दी । इससे अमेरिका में गृहयुद्ध छिड़ गया । इस बीच 22 सितम्बर 1862 को लिंकन ने ऐसे घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये जिससे उनकी सबसे बड़ी प्रतिज्ञा पूर्ण हो गई । इसके मुख्य शब्द थे ----- " 1863 की प्रथम जनवरी के दिन वे सभी दास जो किसी भी राज्य में , अथवा ऐसे किसी भी राज्य की भूमि में जो उस समय संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के विद्रोही हों , इसी समय तथा इसके बाद सदा के लिए स्वतंत्र रहेंगे । "
लिंकन का यह कार्य ऐसा सूझ -बूझ का था कि इसने आगे चलकर युद्ध का नक्शा ही बदल दिया । युद्ध की परिस्थिति में लिंकन ने सेनाओं के सर्वोच्च अधिकारी की हैसियत से एक युद्ध कार्य के रूप में इस आदेश को जारी किया । सभी दास कानून की द्रष्टि से स्वतंत्र हो गये । इससे अमेरिका गणराज्य की सेना को प्रत्यक्ष रूप से मदद मिली । दक्षिणी राज्यों के आवश्यक उद्दोग धंधों में से बहुत बड़ी श्रम शक्ति निकल गई और युद्ध का अंत होते होते एक लाख अस्सी हजार हब्शी सैनिकों ने गणराज्य के पक्ष में हथियार उठा लिए । लिंकन के कथनानुसार यह एक ऐसा महत्वपूर्ण कार्य था जिसके बिना युद्ध कभी समाप्त नहीं हो सकता था ।
दासों पर होने वाले अत्याचारों को देखकर उन्होंने उपस्थित जनों से कहा था ---- "मैं ईश्वर के नाम पर प्रतिज्ञा करता हूँ कि अगर कभी उपयुक्त अवसर मिला तो इस पापपूर्ण प्रथा को जड़मूल से उखाड़ कर फेंक दूंगा । "
4 मार्च 1861 को लिंकन ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली । दक्षिणी राज्यों ने गणराज्य के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दी । इससे अमेरिका में गृहयुद्ध छिड़ गया । इस बीच 22 सितम्बर 1862 को लिंकन ने ऐसे घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये जिससे उनकी सबसे बड़ी प्रतिज्ञा पूर्ण हो गई । इसके मुख्य शब्द थे ----- " 1863 की प्रथम जनवरी के दिन वे सभी दास जो किसी भी राज्य में , अथवा ऐसे किसी भी राज्य की भूमि में जो उस समय संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के विद्रोही हों , इसी समय तथा इसके बाद सदा के लिए स्वतंत्र रहेंगे । "
लिंकन का यह कार्य ऐसा सूझ -बूझ का था कि इसने आगे चलकर युद्ध का नक्शा ही बदल दिया । युद्ध की परिस्थिति में लिंकन ने सेनाओं के सर्वोच्च अधिकारी की हैसियत से एक युद्ध कार्य के रूप में इस आदेश को जारी किया । सभी दास कानून की द्रष्टि से स्वतंत्र हो गये । इससे अमेरिका गणराज्य की सेना को प्रत्यक्ष रूप से मदद मिली । दक्षिणी राज्यों के आवश्यक उद्दोग धंधों में से बहुत बड़ी श्रम शक्ति निकल गई और युद्ध का अंत होते होते एक लाख अस्सी हजार हब्शी सैनिकों ने गणराज्य के पक्ष में हथियार उठा लिए । लिंकन के कथनानुसार यह एक ऐसा महत्वपूर्ण कार्य था जिसके बिना युद्ध कभी समाप्त नहीं हो सकता था ।
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