विनोबा जी गीता और उपनिषद के अच्छे ज्ञाता थे । उनका कहना था -- आस्तिक हो या नास्तिक , ईश्वर के निकट पहुँचने का अधिकारी वही होगा जो स्वार्थ को कम कर के परमार्थ का व्यवहार भी करेगा । उन्होंने कहा था --- " बहुत लोग मानते हैं कि चन्दन लगाने से , माला फेरने से , राम का नाम लेने से , झांझ - मजीरा लेकर कीर्तन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं । ये सब चीजें अच्छी हो सकती हैं , लेकिन भगवान खुश होते हैं --- ईमानदारी से , सचाई से , दया से , सेवा से , प्रेम से । ये गुण हैं तो दूसरी चीजें भी अच्छी हो सकती हैं , ये नहीं तो कुछ नहीं । "
विनोबा सच्चे धर्म का आचरण करने वाले थे , ऊपरी दिखावा और ढोंग से कोसों दूर रहने वाले थे । विनोबा जी ने कश्मीर का भ्रमण किया , वहां के मुसलमान निवासियों ने उनका अपने एक
' गुरु ' (पीर ) की तरह ही स्वागत - सत्कार किया । वहां से चलते समय उनको आगरा के प्रसिद्ध डाकू मानसिंह के पुत्र का पत्र मिला , जिसमे लिखा था -- बाबा ! मुझे फांसी की सजा मिली है । मरने से पहले मैं आपके दर्शन कर लेना चाहता हूँ । " अन्य लोगों ने उनसे डाकुओं की समस्या को सुलझाने को कहा । हिंसा से तो यह समस्या सुलझी नहीं , पुलिस जितने डाकुओं को पकडती या मारती है उतने ही फिर नये पैदा हो जाते हैं ।
इन सब बातों को सुनकर विनोबा ने इन डाकुओं को अपना जीवन मार्ग बदलने का सन्देश देने का निश्चय किया । 8 मई को वे आगरा के निकट चम्बल के बीहड़ों में पहुँच गये जहाँ डाकुओं के क्षेत्र में उनके मुख्य सहकारी जनरल यदुनाथ सिंह डाकुओं के पास जाकर विनोबा का यह सन्देश पहुंचाते रहे कि---- " डाका डालना , किसी को मारना - पीटना , सताना गलत है । जो लोग अब तक ऐसा गलत काम करते रहे हैं , वे अब इसे छोड़ दें और अपनी जिंदगी सुधार लें ।
इसका नतीजा यह हुआ कि 20 प्रसिद्ध डाकुओं ने जिनको पकड़ने या मारने के लिए सरकार ने बड़े - बड़े इनाम घोषित किये थे , उन्होंने विनोबा जी के आगे अपने हथियार लाकर रख दिये और प्रतिज्ञा की कि अब वे ऐसा काम नहीं करेंगे ।
एक डाकू ने अखबार में पढ़ा कि विनोबा चम्बल के बीहड़ों में घूम - घूमकर डाकुओं को समझा रहे हैं तो उसे भी अपनी अंतरात्मा में प्रेरणा हुई कि आत्मसमर्पण कर दे । उससे भेंट होने पर विनोबा जी ने अपने प्रवचन में कहा --- " आज जो भाई आये हैं , वे परमेश्वर के भेजे हुए ही आये हैं , हमारा कोई साथी उनके पास नहीं पहुँचा था । यह ईश्वर की कृपा है । "
जो व्यक्ति पुलिस और फौज वालों की रायफलों और मशीनगनो से नहीं डरते और डटकर उनका मुकाबला करते हैं , वे एक निहत्थे बुड्ढे आदमी के सामने नतमस्तक हो जाएँ तो यह एक दैवी शक्ति का चमत्कार ही माना जायेगा ।
धन और शस्त्र की शक्ति तो प्रत्यक्ष ही दिखाई पड़ती है , पर अध्यात्म की शक्ति अप्रत्यक्ष होते हुए भी उन दोनों से बढ़कर है । महात्मा गाँधी और संत विनोबा जैसी दैवी विभूतियों की कार्य प्रणाली से यह सत्य सिद्ध हो जाता है ।
विनोबा सच्चे धर्म का आचरण करने वाले थे , ऊपरी दिखावा और ढोंग से कोसों दूर रहने वाले थे । विनोबा जी ने कश्मीर का भ्रमण किया , वहां के मुसलमान निवासियों ने उनका अपने एक
' गुरु ' (पीर ) की तरह ही स्वागत - सत्कार किया । वहां से चलते समय उनको आगरा के प्रसिद्ध डाकू मानसिंह के पुत्र का पत्र मिला , जिसमे लिखा था -- बाबा ! मुझे फांसी की सजा मिली है । मरने से पहले मैं आपके दर्शन कर लेना चाहता हूँ । " अन्य लोगों ने उनसे डाकुओं की समस्या को सुलझाने को कहा । हिंसा से तो यह समस्या सुलझी नहीं , पुलिस जितने डाकुओं को पकडती या मारती है उतने ही फिर नये पैदा हो जाते हैं ।
इन सब बातों को सुनकर विनोबा ने इन डाकुओं को अपना जीवन मार्ग बदलने का सन्देश देने का निश्चय किया । 8 मई को वे आगरा के निकट चम्बल के बीहड़ों में पहुँच गये जहाँ डाकुओं के क्षेत्र में उनके मुख्य सहकारी जनरल यदुनाथ सिंह डाकुओं के पास जाकर विनोबा का यह सन्देश पहुंचाते रहे कि---- " डाका डालना , किसी को मारना - पीटना , सताना गलत है । जो लोग अब तक ऐसा गलत काम करते रहे हैं , वे अब इसे छोड़ दें और अपनी जिंदगी सुधार लें ।
इसका नतीजा यह हुआ कि 20 प्रसिद्ध डाकुओं ने जिनको पकड़ने या मारने के लिए सरकार ने बड़े - बड़े इनाम घोषित किये थे , उन्होंने विनोबा जी के आगे अपने हथियार लाकर रख दिये और प्रतिज्ञा की कि अब वे ऐसा काम नहीं करेंगे ।
एक डाकू ने अखबार में पढ़ा कि विनोबा चम्बल के बीहड़ों में घूम - घूमकर डाकुओं को समझा रहे हैं तो उसे भी अपनी अंतरात्मा में प्रेरणा हुई कि आत्मसमर्पण कर दे । उससे भेंट होने पर विनोबा जी ने अपने प्रवचन में कहा --- " आज जो भाई आये हैं , वे परमेश्वर के भेजे हुए ही आये हैं , हमारा कोई साथी उनके पास नहीं पहुँचा था । यह ईश्वर की कृपा है । "
जो व्यक्ति पुलिस और फौज वालों की रायफलों और मशीनगनो से नहीं डरते और डटकर उनका मुकाबला करते हैं , वे एक निहत्थे बुड्ढे आदमी के सामने नतमस्तक हो जाएँ तो यह एक दैवी शक्ति का चमत्कार ही माना जायेगा ।
धन और शस्त्र की शक्ति तो प्रत्यक्ष ही दिखाई पड़ती है , पर अध्यात्म की शक्ति अप्रत्यक्ष होते हुए भी उन दोनों से बढ़कर है । महात्मा गाँधी और संत विनोबा जैसी दैवी विभूतियों की कार्य प्रणाली से यह सत्य सिद्ध हो जाता है ।
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