' इस संसार में दुष्टता कभी भी स्थिर होकर नहीं रह सकी , असुरता से देवत्व की आयु अधिक है । ' अपने आपको संकट में डालकर गोवा मुक्ति हेतु प्रयास करने वालों में वीर मोहन रानाडे का नाम अग्रणी है । '
राष्ट्रहित में अपने कर्तव्यों के पालन के लिए उनका त्याग एवं कष्ट सहन की कहानी अपने आप में बड़ी प्रेरक और गौरवमय है । अंग्रेजों के शासन से भारत ने मुक्ति पा ली थी किन्तु गोवा अभी पुर्तगालियों के कब्जे में था । मोहन रानाडे ने गोवा में प्रवेश कर वहां जन चेतना जाग्रत करने के साथ जनता के मनोबल को बढ़ाने का कार्य किया । 27 जुलाई 1954 को मोहन रानाडे और उनके साथियों ने ने दादरा नागर हवेली पर आक्रमण कर वहां के पुर्तगाली अधिकारियों को बंदी बनाकर
उसे पुर्तगाल के नियंत्रण से मुक्त करा लिया । गोवा की स्वाधीनता के लिए उन्होंने अथक प्रयास किये , पुर्तगाल की सैनिक अदालत ने उन्हें 26 वर्ष के कठोर दंड की घोषणा की ।
वे लोग समझते थे कि इस कठोर दंड से वे काँप उठेंगे किन्तु उनकी आत्म विश्वासपूर्ण मुस्कराहट जैसे चुनौती देकर कह रही हो --- ' तुम समाप्त हो जाओगे और मैं रहूँगा इसी प्रकार हँसता - मुस्कराता । '
रानाडे को पुर्तगाल की सबसे ख़राब जेल भेज दिया । जहाँ निर्धारित संख्या से दुगुने - तिगुने तक कैदियों से भरी कोठरियों में उन्हें रहना पड़ा l किन्तु रानाडे ने कभी कोई खीज प्रकट नहीं की । ।
उनके सहयोग और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार से कोठरी के सभी बंदी उनके साथ घुल - मिल गये । जेल के अधिकारियों ने उन्हें त्रास देने के लिए सबके साथ रखा था , किन्तु उलटे उन्हें त्रास होने लगा । उनका क्रोध अब रानाडे के साथ अन्य कैदियों पर भी बरसने लगा । उत्कृष्ट व्यक्तित्व अपने आप में पूरा होता है , ऐसे व्यक्ति जहाँ भी रहते हैं सम्मानित तथा प्रिय बनकर रहते हैं ।
राष्ट्रहित में अपने कर्तव्यों के पालन के लिए उनका त्याग एवं कष्ट सहन की कहानी अपने आप में बड़ी प्रेरक और गौरवमय है । अंग्रेजों के शासन से भारत ने मुक्ति पा ली थी किन्तु गोवा अभी पुर्तगालियों के कब्जे में था । मोहन रानाडे ने गोवा में प्रवेश कर वहां जन चेतना जाग्रत करने के साथ जनता के मनोबल को बढ़ाने का कार्य किया । 27 जुलाई 1954 को मोहन रानाडे और उनके साथियों ने ने दादरा नागर हवेली पर आक्रमण कर वहां के पुर्तगाली अधिकारियों को बंदी बनाकर
उसे पुर्तगाल के नियंत्रण से मुक्त करा लिया । गोवा की स्वाधीनता के लिए उन्होंने अथक प्रयास किये , पुर्तगाल की सैनिक अदालत ने उन्हें 26 वर्ष के कठोर दंड की घोषणा की ।
वे लोग समझते थे कि इस कठोर दंड से वे काँप उठेंगे किन्तु उनकी आत्म विश्वासपूर्ण मुस्कराहट जैसे चुनौती देकर कह रही हो --- ' तुम समाप्त हो जाओगे और मैं रहूँगा इसी प्रकार हँसता - मुस्कराता । '
रानाडे को पुर्तगाल की सबसे ख़राब जेल भेज दिया । जहाँ निर्धारित संख्या से दुगुने - तिगुने तक कैदियों से भरी कोठरियों में उन्हें रहना पड़ा l किन्तु रानाडे ने कभी कोई खीज प्रकट नहीं की । ।
उनके सहयोग और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार से कोठरी के सभी बंदी उनके साथ घुल - मिल गये । जेल के अधिकारियों ने उन्हें त्रास देने के लिए सबके साथ रखा था , किन्तु उलटे उन्हें त्रास होने लगा । उनका क्रोध अब रानाडे के साथ अन्य कैदियों पर भी बरसने लगा । उत्कृष्ट व्यक्तित्व अपने आप में पूरा होता है , ऐसे व्यक्ति जहाँ भी रहते हैं सम्मानित तथा प्रिय बनकर रहते हैं ।
No comments:
Post a Comment