जन्म से ही सुख - सुविधाएँ क्या होती हैं , उन्होंने जाना ही नहीं । जब चार वर्ष के थे तो पिता की मृत्यु हो गई । कुछ समय बाद माँ भी चल बसीं । नाना - नानी के पास कुछ दिन रहे , नाना के कारखाने में आग लग गई , सारी सम्पति नष्ट हो गई । अत: यह घर भी छूट गया , कभी मोची के गुमास्ते का काम किया तो कभी माली का । फिर एक स्टीमर में उन्हें दो रूबल प्रतिमास वेतन पर तश्तरियां धोने का काम मिल गया , अभी वे बालक ही थे । 3-4 वर्ष बाद उन्हें इसी स्टीमर में रसोइये का काम मिल गया । 15-16 वर्ष की आयु में वे एक व्यक्ति ' स्मिडरी ' के संपर्क में आये , वह भी रसोइया था और वह एलेक्सी ( गोर्की का नाम ) से सहानुभूति रखता था । उसने गोर्की को वर्णमाला सिखाने और पढ़ाने का काम शुरू किया ।
स्टीमर के जीवन में उन्हें एक कटु अनुभव हुआ ---- स्टीमर के कर्मचारी यात्रियों से भोजन का पैसा लेकर अपने पास रख लेते थे । गोर्की ने ऐसे कार्यों में कभी उनका सहयोग नहीं किया , इस कारण भ्रष्ट कर्मचारी उनसे चिढ़े हुए रहते थे । एक दिन जब स्टीमर के अधिकारी को यह सब पता चल गया तो सब लोगों ने मिलकर गोर्की को दोषी ठहराया , प्रमाण न होने पर बहुमत को सत्य समझा गया और गोर्की को नौकरी से अलग कर दिया । ईमानदारी और मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था को पाशविकता का यह पहला दण्ड था । गोर्की आदर्शों के प्रति दृढ़ निष्ठा रखते थे । लाभ नहीं उत्कृष्टता उनका अभीष्ट था , इसलिए उन्होंने घुटने नहीं टेके परन्तु उनके अंत:कारण में मनुष्यों को सभ्यता और नैतिकता की मर्यादाओं का उल्लंघन करते देख एक तीव्र प्रतिक्रिया हुई और वे विद्रोही बन गये । अपने कटु अनुभवों को , जो देखा और सुना उसे शब्द देना आरम्भ किया ।
वह युग जार शाही का था । तत्कालीन स्थिति का उल्लेख करते हुए स्वयं गोर्की ने लिखा है ----
" इस देश में अच्छे और भले कामों का नाम अपराध है , ऐसे मंत्री शासन करते हैं जो किसानो के मुख से रोटी का टुकड़ा तक छीन लेते हैं और ऐसे राजा राज्य करते हैं जो हत्यारों को सेनापति और सेनापति को हत्यारा बनाने में प्रसन्न होते हैं । "
उस काल के आतंक और दमन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है ------ ' रूस की आग बुझी नहीं , वह दब गई है , इसलिए कि दस गुनी शक्ति के साथ उमड़ पड़े । " बारह वर्ष बाद उनका यह कथन अक्षरशः सत्य सिद्ध हुआ ।
स्टीमर के जीवन में उन्हें एक कटु अनुभव हुआ ---- स्टीमर के कर्मचारी यात्रियों से भोजन का पैसा लेकर अपने पास रख लेते थे । गोर्की ने ऐसे कार्यों में कभी उनका सहयोग नहीं किया , इस कारण भ्रष्ट कर्मचारी उनसे चिढ़े हुए रहते थे । एक दिन जब स्टीमर के अधिकारी को यह सब पता चल गया तो सब लोगों ने मिलकर गोर्की को दोषी ठहराया , प्रमाण न होने पर बहुमत को सत्य समझा गया और गोर्की को नौकरी से अलग कर दिया । ईमानदारी और मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था को पाशविकता का यह पहला दण्ड था । गोर्की आदर्शों के प्रति दृढ़ निष्ठा रखते थे । लाभ नहीं उत्कृष्टता उनका अभीष्ट था , इसलिए उन्होंने घुटने नहीं टेके परन्तु उनके अंत:कारण में मनुष्यों को सभ्यता और नैतिकता की मर्यादाओं का उल्लंघन करते देख एक तीव्र प्रतिक्रिया हुई और वे विद्रोही बन गये । अपने कटु अनुभवों को , जो देखा और सुना उसे शब्द देना आरम्भ किया ।
वह युग जार शाही का था । तत्कालीन स्थिति का उल्लेख करते हुए स्वयं गोर्की ने लिखा है ----
" इस देश में अच्छे और भले कामों का नाम अपराध है , ऐसे मंत्री शासन करते हैं जो किसानो के मुख से रोटी का टुकड़ा तक छीन लेते हैं और ऐसे राजा राज्य करते हैं जो हत्यारों को सेनापति और सेनापति को हत्यारा बनाने में प्रसन्न होते हैं । "
उस काल के आतंक और दमन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है ------ ' रूस की आग बुझी नहीं , वह दब गई है , इसलिए कि दस गुनी शक्ति के साथ उमड़ पड़े । " बारह वर्ष बाद उनका यह कथन अक्षरशः सत्य सिद्ध हुआ ।
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