' मनोयोग और श्रमशीलता के बल पर अर्जित आत्मविश्वास की नींव पर खड़ा उनका व्यक्तित्व महानता के मार्ग पर लोगों को प्रेरित करता है । '
बात उन दिनों की है जब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद विद्दालय में पढ़ते थे । उस दिन परीक्षा फल घोषित होना था । सभी छात्र अधीर थे । परीक्षा फल घोषित हो गया तो एक छात्र ने उठकर पूछा ---- साहब , मेरा नाम क्यों नहीं आया ?
अध्यापक ने कहा ---- " नाम नहीं आया तो स्पष्ट है कि तुम अनुतीर्ण हो गये हो । "
छात्र ने कहा --- " नहीं , ऐसा नहीं हो सकता । "
शिक्षक ने सह्रदयता से कहा ---- " ऐसा क्यों नहीं हो सकता । में जनता हूँ तुम परिश्रमी और अध्ययनशील हो परन्तु इस वर्ष परीक्षा के पूर्व ही तुम्हारे स्वास्थ्य का बिगड़ना तुम्हारे परीक्षा फल के लिए घातक सिद्ध हुआ । "
विद्दार्थी ने बड़े आत्मविश्वास से कहा ---- " भले ही मेरा स्वास्थ्य ख़राब हो गया हो , परन्तु मैं मेहनत से पढ़ा हूँ और फेल नहीं हो सकता । "
अध्यापक समझे लड़का जिद कर रहा है , अत: कठोरता से कहा ----- " बैठ जाओ । "
" नहीं बैठूँगा । मेरे परीक्षा फल की पुन: जाँच होनी चाहिए । "
शिक्षक महोदय को गुस्सा आ गया , उन्होंने कहा ----- बैठते हो या नहीं , अन्यथा तुम्हे दण्डित किया जायेगा । "
" भले ही दण्डित किया जाये , परन्तु मेरा विश्वास है कि मैं फेल नहीं हुआ हूँ । परीक्षा का नक्शा मेरी आँखों के सामने है और मुझे अपने उत्तरों पर पूरा विश्वास है । "
आचार्य ने पांच रूपये जुर्माना कर दिया , फिर भी छात्र नहीं माना । जुर्माना पचास रूपये तक बढ़ गया लेकिन छात्र टस से मस नहीं हुआ ।
बात प्राचार्य तक पहुंची । उन्होंने सोचा क्यों अपनी जिद पर अड़े रहा जाये , संभव है कार्यालय से भूल हो गई हो । अन्यथा इतने आत्मविश्वास के साथ कौन अपनी बात पर अड़ा रहेगा ।
परीक्षा फल की पुन: जाँच की गई , पता चला कि उस लिपिक की भूल से ही उस छात्र का नाम उत्तीर्ण छात्रों की सूची में चढ़ने से रह गया है । --भूल सुधार किया गया --- वह छात्र सबसे अधिक अंकों से उत्तीर्ण हुआ । ---- यह छात्र थे ---- भारत के प्रथम राष्ट्रपति ---- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
बात उन दिनों की है जब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद विद्दालय में पढ़ते थे । उस दिन परीक्षा फल घोषित होना था । सभी छात्र अधीर थे । परीक्षा फल घोषित हो गया तो एक छात्र ने उठकर पूछा ---- साहब , मेरा नाम क्यों नहीं आया ?
अध्यापक ने कहा ---- " नाम नहीं आया तो स्पष्ट है कि तुम अनुतीर्ण हो गये हो । "
छात्र ने कहा --- " नहीं , ऐसा नहीं हो सकता । "
शिक्षक ने सह्रदयता से कहा ---- " ऐसा क्यों नहीं हो सकता । में जनता हूँ तुम परिश्रमी और अध्ययनशील हो परन्तु इस वर्ष परीक्षा के पूर्व ही तुम्हारे स्वास्थ्य का बिगड़ना तुम्हारे परीक्षा फल के लिए घातक सिद्ध हुआ । "
विद्दार्थी ने बड़े आत्मविश्वास से कहा ---- " भले ही मेरा स्वास्थ्य ख़राब हो गया हो , परन्तु मैं मेहनत से पढ़ा हूँ और फेल नहीं हो सकता । "
अध्यापक समझे लड़का जिद कर रहा है , अत: कठोरता से कहा ----- " बैठ जाओ । "
" नहीं बैठूँगा । मेरे परीक्षा फल की पुन: जाँच होनी चाहिए । "
शिक्षक महोदय को गुस्सा आ गया , उन्होंने कहा ----- बैठते हो या नहीं , अन्यथा तुम्हे दण्डित किया जायेगा । "
" भले ही दण्डित किया जाये , परन्तु मेरा विश्वास है कि मैं फेल नहीं हुआ हूँ । परीक्षा का नक्शा मेरी आँखों के सामने है और मुझे अपने उत्तरों पर पूरा विश्वास है । "
आचार्य ने पांच रूपये जुर्माना कर दिया , फिर भी छात्र नहीं माना । जुर्माना पचास रूपये तक बढ़ गया लेकिन छात्र टस से मस नहीं हुआ ।
बात प्राचार्य तक पहुंची । उन्होंने सोचा क्यों अपनी जिद पर अड़े रहा जाये , संभव है कार्यालय से भूल हो गई हो । अन्यथा इतने आत्मविश्वास के साथ कौन अपनी बात पर अड़ा रहेगा ।
परीक्षा फल की पुन: जाँच की गई , पता चला कि उस लिपिक की भूल से ही उस छात्र का नाम उत्तीर्ण छात्रों की सूची में चढ़ने से रह गया है । --भूल सुधार किया गया --- वह छात्र सबसे अधिक अंकों से उत्तीर्ण हुआ । ---- यह छात्र थे ---- भारत के प्रथम राष्ट्रपति ---- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
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