जनता उसी का ह्रदय से सम्मान करती है और उसी को हमेशा याद रखती है , जो दूसरे लोगों की भलाई के लिए कुछ काम करता है ।
बुकर टी. वाशिंगटन ( 1856-1915 ) अपनी जाति के उद्धार के लिए स्वयं ही आत्मत्याग और परिश्रम नहीं कर रहे थे , वरन अन्य सुयोग्य व्यक्तियों को भी प्रेरणा देकर इस उद्देश्य की पूर्ति में संलग्न करते थे । उस समय अमेरिका की दक्षिण रियासतों में नीग्रो गुलामों का दर्जा पशु के समान था । उस समय किसी नीग्रो का पुस्तक लेकर पढ़ना या पढ़ाना जुर्म माना जाता था । इन नीग्रो लोगों की मानसिक स्थिति ऐसी गिरी हुई थी कि वे अपने को पूरा मनुष्य भी नहीं समझते थे ।
एक व्यक्ति ने अपने आरंभिक जीवन का वर्णन करते हुए कहा कि---- " हम पांच जने इस स्थान के स्वामी के हाथ बेचे गये थे । " वाशिंगटन ने पूछा --- " तुम्हारे चार साथी कौन थे ? "
नीग्रो ने कहा --- " एक तो मेरा भाई था और तीन खच्चर थे । "
वे लोग अपने में और जानवरों में कुछ अंतर ही नहीं समझते थे । ऐसी विषम परिस्थितियों में बुकर ने स्वयं अध्ययन किया और फिर 4 जुलाई 1881 को ' टस्केजी विद्दालय ' ( नीग्रो विद्दालय ) की स्थापना की । आरम्भ में इस विद्दालय में केवल 30 विद्दार्थी थे और पढ़ाने वाले मास्टर एकमात्र बुकर ही थे । वे विद्दार्थियों को केवल पाठ्य पुस्तक द्वारा ही शिक्षा नहीं देते थे वरन उनको रहन - सहन , सभ्यता के नियम और स्वावलंबन की शिक्षा भी देते थे ।
विद्दार्थियों को कृषि की शिक्षा देना शुरू किया गया और स्कूल की इमारत के लिए ईँट बनाने का काम भी विद्दार्थियों से कराया गया । आरम्भ में विद्दार्थी चौंके , , कि जब यहाँ भी हमको मेहनत - मजदूरी करनी है तो स्कूल में पढ़ने से क्या फायदा । जब बुकर ने उनको श्रम की महत्ता समझाई और स्वयं फावड़ा लेकर मिट्टी खोदने और ईंटे बनाने का काम किया तो विद्दार्थी भी उनका अनुसरण करने लगे । बीस वर्ष बाद प्रतिवर्ष दस - पन्द्रह लाख बढ़िया किस्म की ईंटे तैयार होने लगीं । स्कूल की सभी ईमारत इन ईंटों से बनायीं गई और आस - पास के लोग भी उनको खरीदने आने लगे । जब विद्दालय का बोर्डिंग हाउस बन गया तो हर उम्र के नीग्रो स्त्री - पुरुषों की भीड़ लगी रहती थी । ज्ञान प्राप्त करने के लिए इतने उत्सुक लोगों के लिए रात्रि पाठशाला खोली गई । लोग दिनभर कहीं कारखाने में काम करें और रात्रि में दो घंटा पढ़ लें ।
उनके साथ मिस डेविडसन और प्रोफेसर कार्वर ने भी अपनी तमाम जिन्दगी नीग्रो जाति की इस महान संस्था को सफल बनाने में ही लगा दी ।
किसी भी समाज की स्थायी उन्नति और प्रगति के लिए लगातार श्रम , अनवरत स्वार्थ त्याग की आवश्यकता पड़ती है ।
बुकर टी. वाशिंगटन ( 1856-1915 ) अपनी जाति के उद्धार के लिए स्वयं ही आत्मत्याग और परिश्रम नहीं कर रहे थे , वरन अन्य सुयोग्य व्यक्तियों को भी प्रेरणा देकर इस उद्देश्य की पूर्ति में संलग्न करते थे । उस समय अमेरिका की दक्षिण रियासतों में नीग्रो गुलामों का दर्जा पशु के समान था । उस समय किसी नीग्रो का पुस्तक लेकर पढ़ना या पढ़ाना जुर्म माना जाता था । इन नीग्रो लोगों की मानसिक स्थिति ऐसी गिरी हुई थी कि वे अपने को पूरा मनुष्य भी नहीं समझते थे ।
एक व्यक्ति ने अपने आरंभिक जीवन का वर्णन करते हुए कहा कि---- " हम पांच जने इस स्थान के स्वामी के हाथ बेचे गये थे । " वाशिंगटन ने पूछा --- " तुम्हारे चार साथी कौन थे ? "
नीग्रो ने कहा --- " एक तो मेरा भाई था और तीन खच्चर थे । "
वे लोग अपने में और जानवरों में कुछ अंतर ही नहीं समझते थे । ऐसी विषम परिस्थितियों में बुकर ने स्वयं अध्ययन किया और फिर 4 जुलाई 1881 को ' टस्केजी विद्दालय ' ( नीग्रो विद्दालय ) की स्थापना की । आरम्भ में इस विद्दालय में केवल 30 विद्दार्थी थे और पढ़ाने वाले मास्टर एकमात्र बुकर ही थे । वे विद्दार्थियों को केवल पाठ्य पुस्तक द्वारा ही शिक्षा नहीं देते थे वरन उनको रहन - सहन , सभ्यता के नियम और स्वावलंबन की शिक्षा भी देते थे ।
विद्दार्थियों को कृषि की शिक्षा देना शुरू किया गया और स्कूल की इमारत के लिए ईँट बनाने का काम भी विद्दार्थियों से कराया गया । आरम्भ में विद्दार्थी चौंके , , कि जब यहाँ भी हमको मेहनत - मजदूरी करनी है तो स्कूल में पढ़ने से क्या फायदा । जब बुकर ने उनको श्रम की महत्ता समझाई और स्वयं फावड़ा लेकर मिट्टी खोदने और ईंटे बनाने का काम किया तो विद्दार्थी भी उनका अनुसरण करने लगे । बीस वर्ष बाद प्रतिवर्ष दस - पन्द्रह लाख बढ़िया किस्म की ईंटे तैयार होने लगीं । स्कूल की सभी ईमारत इन ईंटों से बनायीं गई और आस - पास के लोग भी उनको खरीदने आने लगे । जब विद्दालय का बोर्डिंग हाउस बन गया तो हर उम्र के नीग्रो स्त्री - पुरुषों की भीड़ लगी रहती थी । ज्ञान प्राप्त करने के लिए इतने उत्सुक लोगों के लिए रात्रि पाठशाला खोली गई । लोग दिनभर कहीं कारखाने में काम करें और रात्रि में दो घंटा पढ़ लें ।
उनके साथ मिस डेविडसन और प्रोफेसर कार्वर ने भी अपनी तमाम जिन्दगी नीग्रो जाति की इस महान संस्था को सफल बनाने में ही लगा दी ।
किसी भी समाज की स्थायी उन्नति और प्रगति के लिए लगातार श्रम , अनवरत स्वार्थ त्याग की आवश्यकता पड़ती है ।
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