' त्याग और बलिदान ही ऐसे गुण हैं जिनके आधार पर किसी व्यक्ति को महानता और स्थायी मान्यता प्राप्त हो सकती है । '
जिन लोगों ने धन - वैभव के बल पर कीर्ति और मान्यता प्राप्त करनी चाही उनकी नामवरी उनके जीवनकाल तक ही सीमित रही । जब तक वे अपना ठाठ - बाट दिखाते रहे और खुशामद करने वालों को रुपया पैसा देते रहे तभी तक बहुत से लोग ' धर्म मूरत ' और ' अन्नदाता ' कहकर उनको ऊँचा चढ़ाते रहे , पर जैसे ही उनका निधन हुआ या किसी कारणवश उनकी सम्पति का अन्त हो गया तो लोगों ने भी उसी समय आँखे फेर लीं लेकिन महाराणा प्रताप जैसे महामानवों का यश , धन और वैभव के आधार पर नहीं था , वे तो भूखों रहकर अपने कर्तव्य का पालन कर रहे थे , इसलिए इतना समय बीत जाने पर तथा उस समय के बहुसंख्यक बड़े कहलाने वालों का नाम मिट जाने पर भी , महाराणा प्रताप की कीर्ति और उनका महत्व निरन्तर बढ़ता जाता है ।
यह महाराणा प्रताप की महान तपस्या का ही परिणाम था कि उनके पास धन - सम्पति का सर्वथा अभाव होने पर , भोजन और वस्त्र का ठिकाना न रहने पर भी उनको लगातार राजपूत और भील सहायक मिलते रहे , वे राणा को देवता मानकर उन पर प्राण निछावर करने को तैयार रहते थे । जो उन्ही की तरह कष्ट सहकर बिना वेतन के सैनिक और कार्यकर्ताओं का कर्तव्य पूरा करते रहे । स्वामी - सेवक अथवा नेता और अनुयायी का इस प्रकार का नि:स्वार्थ आत्मत्याग एक ऐसा स्वर्गीय द्रश्य होता है, जो कभी - कभी ही संसार में दिखाई देता है ।
भारतीय लेखकों ने ही नहीं कर्नल टाड और विन्सेंट स्मिथ जैसे इतिहासकारों ने भी राणा प्रताप की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है ।
' संसार में केवल सफलता को ही सम्मान नहीं मिलता बल्कि उससे भी ज्यादा मान्यता किसी ऊँचे आदर्श के लिए त्याग , बलिदान और समर्पण की भावनाओं को दी जाती है । महाराणा प्रताप में ये गुण इतनी अधिक मात्रा में थे कि अनेक लेखकों ने उनके जन्म को किसी महान दैवी - विधान का अंग मान लिया है । '
राणा प्रताप ने जातीय सम्मान और कर्तव्य निष्ठा के क्षेत्र में जो आदर्श उपस्थित किया उसका प्रभाव बहुत समय तक जनमानस पर पड़ता रहा ।
जिन लोगों ने धन - वैभव के बल पर कीर्ति और मान्यता प्राप्त करनी चाही उनकी नामवरी उनके जीवनकाल तक ही सीमित रही । जब तक वे अपना ठाठ - बाट दिखाते रहे और खुशामद करने वालों को रुपया पैसा देते रहे तभी तक बहुत से लोग ' धर्म मूरत ' और ' अन्नदाता ' कहकर उनको ऊँचा चढ़ाते रहे , पर जैसे ही उनका निधन हुआ या किसी कारणवश उनकी सम्पति का अन्त हो गया तो लोगों ने भी उसी समय आँखे फेर लीं लेकिन महाराणा प्रताप जैसे महामानवों का यश , धन और वैभव के आधार पर नहीं था , वे तो भूखों रहकर अपने कर्तव्य का पालन कर रहे थे , इसलिए इतना समय बीत जाने पर तथा उस समय के बहुसंख्यक बड़े कहलाने वालों का नाम मिट जाने पर भी , महाराणा प्रताप की कीर्ति और उनका महत्व निरन्तर बढ़ता जाता है ।
यह महाराणा प्रताप की महान तपस्या का ही परिणाम था कि उनके पास धन - सम्पति का सर्वथा अभाव होने पर , भोजन और वस्त्र का ठिकाना न रहने पर भी उनको लगातार राजपूत और भील सहायक मिलते रहे , वे राणा को देवता मानकर उन पर प्राण निछावर करने को तैयार रहते थे । जो उन्ही की तरह कष्ट सहकर बिना वेतन के सैनिक और कार्यकर्ताओं का कर्तव्य पूरा करते रहे । स्वामी - सेवक अथवा नेता और अनुयायी का इस प्रकार का नि:स्वार्थ आत्मत्याग एक ऐसा स्वर्गीय द्रश्य होता है, जो कभी - कभी ही संसार में दिखाई देता है ।
भारतीय लेखकों ने ही नहीं कर्नल टाड और विन्सेंट स्मिथ जैसे इतिहासकारों ने भी राणा प्रताप की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है ।
' संसार में केवल सफलता को ही सम्मान नहीं मिलता बल्कि उससे भी ज्यादा मान्यता किसी ऊँचे आदर्श के लिए त्याग , बलिदान और समर्पण की भावनाओं को दी जाती है । महाराणा प्रताप में ये गुण इतनी अधिक मात्रा में थे कि अनेक लेखकों ने उनके जन्म को किसी महान दैवी - विधान का अंग मान लिया है । '
राणा प्रताप ने जातीय सम्मान और कर्तव्य निष्ठा के क्षेत्र में जो आदर्श उपस्थित किया उसका प्रभाव बहुत समय तक जनमानस पर पड़ता रहा ।
No comments:
Post a Comment