' महान पुरुष वास्तव में किसी खास जाति, धर्म या देश से बंधे नहीं होते । वे ' वसुधैवकुटुम्बकम ' के सिद्धांत का अपनी अन्तरात्मा से अनुभव करते हैं और इसलिए नि:संकोच भाव से उसी मार्ग का अनुकरण करते हैं जिसकी प्रेरणा उनकी शुद्ध - बुद्धि करे । '
गैरीवाल्डी का समस्त जीवन अन्याय पीड़ितों की मदद करने में ही व्यतीत हुआ । अपनी मातृभूमि के उद्धार के लिए तो उसने संघर्ष किया ही , साथ ही एनी देशों के निवासियों की सहायता करने का जब कभी अवसर आया तो उसने प्राणों की परवाह न करके जो कुछ बन पड़ा अवश्य किया ---
गैरीवाल्डी की उदारता का सबसे बड़ा प्रमाण उस समय मिला जब जर्मनी ने फ्रांस पर हमला किया , जर्मनी , फ्रांस को हराता जा रहा था , उस समय फ्रांस ने अपने ' जानी दुश्मन ' गैरीवाल्डी से सहायता की अपील की । यद्दपि फ्रांस ने गैरीवाल्डी को हर तरह से तंग किया था और उसे भी फ्रांसीसी सेना से लड़ते हुए अनेक घाव लगे थे , पर उन सब बातों को भूलकर वह फ्रांस की मदद को चल दिया ।
लोग उसकी उदारता को देखकर दंग रह गये । कुछ लोगो ने उसे पुरानी बातों की याद भी दिलाई पर गैरीवाल्डी ने यही कहा ----- " राष्ट्रीय आजादी एक पवित्र वस्तु है और उसकी रक्षा के लिए उद्दत होना हर आदमी का कर्तव्य है । इटली अपनी स्वाधीनता प्राप्त कर चुका है , अब जर्मनी, फ्रांस को हड़पना चाहता है , तो इटली का कर्तव्य है कि फ्रांस की स्वाधीनता की रक्षा में सहायक बने । " इस युद्ध में गैरीवाल्डी ने बड़ी वीरता दिखाई , और बड़े कठिन अवसरों पर ऐसी मदद की कि करोड़ों फ्रांसीसी प्रजा का उसे सम्मान मिला ।
2 जून 1882 को 75 वर्ष की आयु में गैरीवाल्डी का देहांत हुआ तो देश भर में शोर हो गया कि इटली का मुक्तिदाता ------ यूरोप का वीरात्मा चल बसा ।
एक देहात के सामान्य घर में रहने वाले , धन - वैभव से रहित व्यक्ति के लिए इतना देशव्यापी सम्मान प्रकट किया गया जो करोड़ों सम्पति के स्वामी और आलीशान महलों में रहने वाले सम्राटों को भी नसीब नहीं होता ।
' दुनिया में थोड़े ही लोगों के लिए इतना शोक मनाया गया होगा जितना गैरीवाल्डी के लिए इटली और यूरोप के अन्य कितने ही स्थानों में मनाया गया । जनता ने स्वेच्छा से उसे वह अपूर्व सम्मान देकर सिद्ध कर दिया कि चाहे स्वार्थी दुनिया अपने त्याग के लिए मुँह से जो चाहे कहती रहे , पर नि:स्वार्थी और परोपकारी वीरों का आत्म - बलिदान अंत में संसार पर अपना प्रभाव अवश्य डालता है , उनकी गणना संसार के महान पुरुषों में की जाती है ।
गैरीवाल्डी का समस्त जीवन अन्याय पीड़ितों की मदद करने में ही व्यतीत हुआ । अपनी मातृभूमि के उद्धार के लिए तो उसने संघर्ष किया ही , साथ ही एनी देशों के निवासियों की सहायता करने का जब कभी अवसर आया तो उसने प्राणों की परवाह न करके जो कुछ बन पड़ा अवश्य किया ---
गैरीवाल्डी की उदारता का सबसे बड़ा प्रमाण उस समय मिला जब जर्मनी ने फ्रांस पर हमला किया , जर्मनी , फ्रांस को हराता जा रहा था , उस समय फ्रांस ने अपने ' जानी दुश्मन ' गैरीवाल्डी से सहायता की अपील की । यद्दपि फ्रांस ने गैरीवाल्डी को हर तरह से तंग किया था और उसे भी फ्रांसीसी सेना से लड़ते हुए अनेक घाव लगे थे , पर उन सब बातों को भूलकर वह फ्रांस की मदद को चल दिया ।
लोग उसकी उदारता को देखकर दंग रह गये । कुछ लोगो ने उसे पुरानी बातों की याद भी दिलाई पर गैरीवाल्डी ने यही कहा ----- " राष्ट्रीय आजादी एक पवित्र वस्तु है और उसकी रक्षा के लिए उद्दत होना हर आदमी का कर्तव्य है । इटली अपनी स्वाधीनता प्राप्त कर चुका है , अब जर्मनी, फ्रांस को हड़पना चाहता है , तो इटली का कर्तव्य है कि फ्रांस की स्वाधीनता की रक्षा में सहायक बने । " इस युद्ध में गैरीवाल्डी ने बड़ी वीरता दिखाई , और बड़े कठिन अवसरों पर ऐसी मदद की कि करोड़ों फ्रांसीसी प्रजा का उसे सम्मान मिला ।
2 जून 1882 को 75 वर्ष की आयु में गैरीवाल्डी का देहांत हुआ तो देश भर में शोर हो गया कि इटली का मुक्तिदाता ------ यूरोप का वीरात्मा चल बसा ।
एक देहात के सामान्य घर में रहने वाले , धन - वैभव से रहित व्यक्ति के लिए इतना देशव्यापी सम्मान प्रकट किया गया जो करोड़ों सम्पति के स्वामी और आलीशान महलों में रहने वाले सम्राटों को भी नसीब नहीं होता ।
' दुनिया में थोड़े ही लोगों के लिए इतना शोक मनाया गया होगा जितना गैरीवाल्डी के लिए इटली और यूरोप के अन्य कितने ही स्थानों में मनाया गया । जनता ने स्वेच्छा से उसे वह अपूर्व सम्मान देकर सिद्ध कर दिया कि चाहे स्वार्थी दुनिया अपने त्याग के लिए मुँह से जो चाहे कहती रहे , पर नि:स्वार्थी और परोपकारी वीरों का आत्म - बलिदान अंत में संसार पर अपना प्रभाव अवश्य डालता है , उनकी गणना संसार के महान पुरुषों में की जाती है ।
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