' एक सच्ची आत्मा जिस समय जागृत हो जाती है , वह अन्य अनेक आत्माओं की निद्रा भंग कर देती है l इसलिए संसार में आत्म त्यागी महापुरुषों का सम्मान किया जाता है , पूजा की जाती है , जिससे उनका उदाहरण देखकर अन्य व्यक्तियों को भी प्रेरणा मिले और सेवा तथा त्याग की महान परम्परा अग्रसर होती चली जाये । '
देश - सेवा के लिए श्री दास ने अपनी धन - सम्पदा , सुख - सुविधा को ही अर्पण नहीं किया , पर उन्होंने यह भी निश्चय किया कि उनका समस्त परिवार भी इस ' महायज्ञ ' पूरी तरह सम्मिलित होगा । इसलिए जब दिसम्बर 1921 में प्रिंस आफ वेल्स के स्वागत का बहिष्कार करने की तैयारी में दास बाबू ने पहले अपने पुत्र को सत्याग्रह करके जेल भिजवाया फिर अपनी पत्नी श्रीमती बासंती देवी और बहिन उर्मिला देवी को भी भेज दिया । ये दोनों महिलाएं बाजार में फिरकर खादी बेचने लगीं और साथ ही लोगों को 24 दिसंबर को प्रिंस आफ वेल्स के आगमन के अवसर पर हड़ताल करने की प्रेरणा भी देती जाती थीं । पुलिस के एक अधिकारी ने उन्हें रोका और गिरफ्तार करके थाने ले गया । इसका ऐसा प्रभाव पड़ा कि एक दो घंटे के भीतर ही एक हजार नवयुवक गिरफ्तार हो गये , समस्त बंगाल में हलचल मच गई । यह दशा देख सरकार डर गई और उसने उसी दिन आधी रात को उन दोनों महिलाओं को छोड़कर घर पहुँचा दिया ।
जब देशबंधु दास ने बंगाल के युवकों का देश सेवा के लिए आह्वान किया , उस समय श्री सुभाष चन्द्र बोस ने आई. सी. एस. की परीक्षा पास कर ली थी , जब इंग्लैंड में अध्ययन करते हुए सुभाष चन्द्र बोस ने यह समाचार पढ़ा तो उन्हें यह अनुभव हुआ कि उनका स्थान कलेक्टर और कमिश्नर की कुर्सी पर नहीं वरन उन देश भक्तों की टोली में है जो देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर रहे हैं । 16 फरवरी 1921 को उन्होंने श्री दास को एक पत्र भेजा जिसमे लिखा था ---- " देश भक्ति की जो लहर आपने भारत में उठायीं है , उसने ब्रिटेन को भी स्पर्श किया है ------- मैं अपनी आत्मा , शिक्षा , बुद्धि , शक्ति और उत्साह जो कुछ भी मेरे पास है , इसके साथ अपने को मातृभूमि के चरणों में समर्पित करने के लिए , अपने को आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ ----- । "
यह था श्री दास के आत्म बलिदान का प्रभाव कि उसने छ: हजार मील दूर बैठे हुए युवकों के ह्रदय में खलबली मचा दी । कहाँ तो ये लोग भारतीय सिविल सर्विस की ऊँची नौकरी प्राप्त कर ठाठ - बाट का जीवन बिताने के स्वप्न देख रहे थे और कहाँ दास बाबू की अपील की प्रतिध्वनि सुनकर जन आन्दोलन में कूदने और जेल जाने के लिए उतावले होने लगे ।
देश - सेवा के लिए श्री दास ने अपनी धन - सम्पदा , सुख - सुविधा को ही अर्पण नहीं किया , पर उन्होंने यह भी निश्चय किया कि उनका समस्त परिवार भी इस ' महायज्ञ ' पूरी तरह सम्मिलित होगा । इसलिए जब दिसम्बर 1921 में प्रिंस आफ वेल्स के स्वागत का बहिष्कार करने की तैयारी में दास बाबू ने पहले अपने पुत्र को सत्याग्रह करके जेल भिजवाया फिर अपनी पत्नी श्रीमती बासंती देवी और बहिन उर्मिला देवी को भी भेज दिया । ये दोनों महिलाएं बाजार में फिरकर खादी बेचने लगीं और साथ ही लोगों को 24 दिसंबर को प्रिंस आफ वेल्स के आगमन के अवसर पर हड़ताल करने की प्रेरणा भी देती जाती थीं । पुलिस के एक अधिकारी ने उन्हें रोका और गिरफ्तार करके थाने ले गया । इसका ऐसा प्रभाव पड़ा कि एक दो घंटे के भीतर ही एक हजार नवयुवक गिरफ्तार हो गये , समस्त बंगाल में हलचल मच गई । यह दशा देख सरकार डर गई और उसने उसी दिन आधी रात को उन दोनों महिलाओं को छोड़कर घर पहुँचा दिया ।
जब देशबंधु दास ने बंगाल के युवकों का देश सेवा के लिए आह्वान किया , उस समय श्री सुभाष चन्द्र बोस ने आई. सी. एस. की परीक्षा पास कर ली थी , जब इंग्लैंड में अध्ययन करते हुए सुभाष चन्द्र बोस ने यह समाचार पढ़ा तो उन्हें यह अनुभव हुआ कि उनका स्थान कलेक्टर और कमिश्नर की कुर्सी पर नहीं वरन उन देश भक्तों की टोली में है जो देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर रहे हैं । 16 फरवरी 1921 को उन्होंने श्री दास को एक पत्र भेजा जिसमे लिखा था ---- " देश भक्ति की जो लहर आपने भारत में उठायीं है , उसने ब्रिटेन को भी स्पर्श किया है ------- मैं अपनी आत्मा , शिक्षा , बुद्धि , शक्ति और उत्साह जो कुछ भी मेरे पास है , इसके साथ अपने को मातृभूमि के चरणों में समर्पित करने के लिए , अपने को आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ ----- । "
यह था श्री दास के आत्म बलिदान का प्रभाव कि उसने छ: हजार मील दूर बैठे हुए युवकों के ह्रदय में खलबली मचा दी । कहाँ तो ये लोग भारतीय सिविल सर्विस की ऊँची नौकरी प्राप्त कर ठाठ - बाट का जीवन बिताने के स्वप्न देख रहे थे और कहाँ दास बाबू की अपील की प्रतिध्वनि सुनकर जन आन्दोलन में कूदने और जेल जाने के लिए उतावले होने लगे ।
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