' महाराणा का स्वातंत्र्य प्रेम का उच्च आदर्श भारतीय इतिहास की अनमोल थाती है । उनकी प्रतिज्ञा थी कि उनका मस्तक केवल ईश्वर के सामने झुक सकता है , इस प्रतिज्ञा में उनका अहम् नहीं वरन उनकी ईश्वर निष्ठा , संस्कृति निष्ठा , व राष्ट्र - निष्ठा ही बोल रही थी । वे मातृभूमि छोड़ने और सिंध के रेगिस्तान में जाकर नयी शक्ति संगठित करने के लिए तैयार थे , पर वे अपने देश की स्वतंत्रता को व्यक्तिगत सुखों के लिए बेचने को तैयार नहीं हुए । '
प्रताप ने महाराणा का पद अधिकार भोगने के लिए नहीं -------- कर्तव्य निभाने के लिए
व्यक्तिगत सुख - भोग के लिए नहीं ----- राष्ट्रीय गौरव के लिए स्वीकारा । ये उनकी महानता का परिचायक है ।
महाराणा प्रताप ने जातीय सम्मान और कर्तव्य निष्ठा के क्षेत्र में जो आदर्श उपस्थित किया उसका प्रभाव बहुत समय तक जनमानस पर पड़ता रहा । उन्होंने यह दिखला दिया कि सांसारिक सुख और वैभव वहीँ तक ठीक हैं जब तक उनका उपयोग धर्म , नीति और संस्कृति की रक्षा करते हुए किया जा सके । पर जिस सुख - सम्पति के लिए मानवता के इन श्रेष्ठ गुणों का बलिदान करना पड़े उसको विष के समान त्याज्य समझना चाहिए ।
प्रताप ने महाराणा का पद अधिकार भोगने के लिए नहीं -------- कर्तव्य निभाने के लिए
व्यक्तिगत सुख - भोग के लिए नहीं ----- राष्ट्रीय गौरव के लिए स्वीकारा । ये उनकी महानता का परिचायक है ।
महाराणा प्रताप ने जातीय सम्मान और कर्तव्य निष्ठा के क्षेत्र में जो आदर्श उपस्थित किया उसका प्रभाव बहुत समय तक जनमानस पर पड़ता रहा । उन्होंने यह दिखला दिया कि सांसारिक सुख और वैभव वहीँ तक ठीक हैं जब तक उनका उपयोग धर्म , नीति और संस्कृति की रक्षा करते हुए किया जा सके । पर जिस सुख - सम्पति के लिए मानवता के इन श्रेष्ठ गुणों का बलिदान करना पड़े उसको विष के समान त्याज्य समझना चाहिए ।
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