श्रीमती सरोजिनी नायडू अपनी विलक्षण प्रतिभा , काव्य कुशलता , वक्तृत्व - शक्ति , राजनीतिक ज्ञान तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव के कारण भारत में ही नहीं वरन समस्त एशिया के नारी जगत में विशिष्ट स्थान रखती थीं । वे एक सफल कवयित्री और पटु राजनीतिज्ञ थीं । वे एक कुशल वक्ता थीं जिन्होंने अपनी वाणी के जादू से लाखों नर - नारियों के दिलों में घर बना लिया था । वे एक नि:स्वार्थ सेविका , सफल पत्नी और एक स्नेहमयी माँ थीं , जो हताश, पीड़ाकुल मानवता को सान्त्वना देने के लिए अवतीर्ण हुईं थीं । '
इतने गुणों का एक स्थान पर एकत्र हो सकना वास्तव में दैवी संयोग ही था l सरोजिनी नायडू ने कवि की मधुरता और राजनीतिज्ञ की कठोरता का जो समन्वय करके दिखाया वह अदिव्तीय है l
जिनका राजाओं , नवाबों के महलों में अबाध प्रवेश था , घनिष्ठता थी , जो देश और विदेश में रईसों की शान से रहीं , वह आवश्यकता पड़ते ही जेलखाने की तंग कोठरियों में रहने लगीं और वहां भी किसी तरह का विषाद अनुभव करने के बजाय सदैव प्रसन्न और प्रफुल्लित बनी रहीं l जिसने रेशमी कालीनो से उतर कर स्वेच्छा से धूल भरे रास्तों में भ्रमण किया था और चमक - दमक वाले होटलों के भोजन को छोड़कर ग्रामीणों की मोटी रोटियों का स्वाद चखा था l उन्होंने अपने महान त्याग और तप द्वारा अपने को इस विशाल राष्ट्र की नेत्री की पदवी के योग्य सिद्ध किया था l
जब उनसे यह प्रश्न किया गया कि--- आपने एक प्रसिद्ध कवयित्री होते हुए भी राजनीति के कार्य में भाग लेना क्यों स्वीकार किया , ' तो उन्होंने कहा ----- " उनके कवि होने की सार्थकता ही इसमें है कि संकट की घड़ी में , निराशा एवं पराजय के क्षणों में , वह भविष्य के निर्माण का स्वप्न देखने वालों को साहस और आशा का सन्देश दे सकें । इसलिए संग्राम की इस घडी में जबकि देश के लिए विजय प्राप्त करना तुम्हारे ही हाथों में है , मैं एक स्त्री अपना घर - आँगन छोड़कर आ खड़ी हुई हूँ l और मैं जो कि स्वप्नों की दुनिया में विचारने वाली रही , आज यहाँ खड़ी होकर पुकार रही हूँ ----- साथियों आगे बढ़ो और विजय प्राप्त करो । उन्होंने कहा ---- " जब देश पराधीनता और गरीबी में है , ऐसी दशा में प्राकृतिक द्रश्यों का अवलोकन कर मधुर कविता बनाते रहना निरर्थक ही नहीं , कर्तव्य हीनता है l ऐसे समय में तो प्रत्येक नर - नारी का कर्तव्य है कि चाहे उसके विचार , रूचि , उद्देश्य कुछ भी हो , वह देश के उद्धार के लिए यथा शक्ति प्रयत्न अवश्य करे l
इतने गुणों का एक स्थान पर एकत्र हो सकना वास्तव में दैवी संयोग ही था l सरोजिनी नायडू ने कवि की मधुरता और राजनीतिज्ञ की कठोरता का जो समन्वय करके दिखाया वह अदिव्तीय है l
जिनका राजाओं , नवाबों के महलों में अबाध प्रवेश था , घनिष्ठता थी , जो देश और विदेश में रईसों की शान से रहीं , वह आवश्यकता पड़ते ही जेलखाने की तंग कोठरियों में रहने लगीं और वहां भी किसी तरह का विषाद अनुभव करने के बजाय सदैव प्रसन्न और प्रफुल्लित बनी रहीं l जिसने रेशमी कालीनो से उतर कर स्वेच्छा से धूल भरे रास्तों में भ्रमण किया था और चमक - दमक वाले होटलों के भोजन को छोड़कर ग्रामीणों की मोटी रोटियों का स्वाद चखा था l उन्होंने अपने महान त्याग और तप द्वारा अपने को इस विशाल राष्ट्र की नेत्री की पदवी के योग्य सिद्ध किया था l
जब उनसे यह प्रश्न किया गया कि--- आपने एक प्रसिद्ध कवयित्री होते हुए भी राजनीति के कार्य में भाग लेना क्यों स्वीकार किया , ' तो उन्होंने कहा ----- " उनके कवि होने की सार्थकता ही इसमें है कि संकट की घड़ी में , निराशा एवं पराजय के क्षणों में , वह भविष्य के निर्माण का स्वप्न देखने वालों को साहस और आशा का सन्देश दे सकें । इसलिए संग्राम की इस घडी में जबकि देश के लिए विजय प्राप्त करना तुम्हारे ही हाथों में है , मैं एक स्त्री अपना घर - आँगन छोड़कर आ खड़ी हुई हूँ l और मैं जो कि स्वप्नों की दुनिया में विचारने वाली रही , आज यहाँ खड़ी होकर पुकार रही हूँ ----- साथियों आगे बढ़ो और विजय प्राप्त करो । उन्होंने कहा ---- " जब देश पराधीनता और गरीबी में है , ऐसी दशा में प्राकृतिक द्रश्यों का अवलोकन कर मधुर कविता बनाते रहना निरर्थक ही नहीं , कर्तव्य हीनता है l ऐसे समय में तो प्रत्येक नर - नारी का कर्तव्य है कि चाहे उसके विचार , रूचि , उद्देश्य कुछ भी हो , वह देश के उद्धार के लिए यथा शक्ति प्रयत्न अवश्य करे l
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