' मालवीयजी धर्म भक्त , देश भक्त और समाज - भक्त होने के साथ ही सुधारक भी थे , पर उनके सुधार कार्यों में अन्य लोगों से कुछ अंतर था | अन्य सुधारक जहाँ समाज से विद्रोह और संघर्ष करने लग जाते हैं , वहां मालवीयजी समाज से मिलकर चलने के पक्षपाती थे । उन्होंने काशी में गंगा तट पर बैठकर चारों वर्णों के लोगों को जिसमे चांडाल और शूद्र भी थे मन्त्रों की दीक्षा दी l उन्होंने यह कार्य लोगों को समझा - बुझाकर और राजी करके ही दी l
मालवीयजी देशभक्ति को साधारण कर्तव्य ही नहीं वरन एक परम धर्म मानते थे l जिसके बिना ठाकुर जी की कोरी भजन - पूजा या एकांत स्थान में बैठकर मन्त्र जप करना निरर्थक हो जाता है । वे शास्त्रों की इस बात को कहते थे और स्वयं वैसा आचरण भी करते थे कि---- ' बिना दूसरों के कष्ट में सहायता पहुंचाए , बिना नीचे गिरे हुओं को ऊपर उठाये धर्म की प्राप्ति नहीं हो सकती ।
मालवीयजी देशभक्ति को साधारण कर्तव्य ही नहीं वरन एक परम धर्म मानते थे l जिसके बिना ठाकुर जी की कोरी भजन - पूजा या एकांत स्थान में बैठकर मन्त्र जप करना निरर्थक हो जाता है । वे शास्त्रों की इस बात को कहते थे और स्वयं वैसा आचरण भी करते थे कि---- ' बिना दूसरों के कष्ट में सहायता पहुंचाए , बिना नीचे गिरे हुओं को ऊपर उठाये धर्म की प्राप्ति नहीं हो सकती ।
No comments:
Post a Comment