' आंतरिक निष्ठा बदलते ही ---- बाह्य जगत भी बदल जाता है । वैभव के खीर - पकवानों से सेवा - साधना में मिली रुखी रोटी रुचिकर लगने लगती है l '
चिम्मन लाल गोस्वामी ( जन्म 1900 ) ऐसे ही अवसर की तलाश में थे , जिनसे आंतरिक और आत्मिक क्षुधा को तृप्त किया जा सके । गोस्वामी जी बीकानेर राज्य में एक उच्च पद पर नियुक्त थे जहाँ उनका जीवन सुख - सुविधापूर्ण और साधन - संपन्न था ।
एक बार कल्याण के संपादक श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार ने बीकानेर में सत्संग गोष्ठियाँ चलायीं l पोद्दार जी के प्रवचन सुनकर उन्हें लगा कि अब उनकी खोज पूरी हो गई , गोस्वामी जी आनंदित हो उठे l दो - चार दिनों के सानिध्य ने ही उनकी जीवन की दिशा बदल दी और उन्होंने सेवा को ही अपना आदर्श - लक्ष्य बना लिया l
उन्होंने 1933 में उन्होंने बीकानेर राज्य की नौकरी से इस्तीफा दे दिया , और कल्याण का संपादन भर उन पर आया l उनके सम्पादन में कल्याण के कई खोजपूर्ण विशेषांक निकले l
चिम्मन लाल गोस्वामी ( जन्म 1900 ) ऐसे ही अवसर की तलाश में थे , जिनसे आंतरिक और आत्मिक क्षुधा को तृप्त किया जा सके । गोस्वामी जी बीकानेर राज्य में एक उच्च पद पर नियुक्त थे जहाँ उनका जीवन सुख - सुविधापूर्ण और साधन - संपन्न था ।
एक बार कल्याण के संपादक श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार ने बीकानेर में सत्संग गोष्ठियाँ चलायीं l पोद्दार जी के प्रवचन सुनकर उन्हें लगा कि अब उनकी खोज पूरी हो गई , गोस्वामी जी आनंदित हो उठे l दो - चार दिनों के सानिध्य ने ही उनकी जीवन की दिशा बदल दी और उन्होंने सेवा को ही अपना आदर्श - लक्ष्य बना लिया l
उन्होंने 1933 में उन्होंने बीकानेर राज्य की नौकरी से इस्तीफा दे दिया , और कल्याण का संपादन भर उन पर आया l उनके सम्पादन में कल्याण के कई खोजपूर्ण विशेषांक निकले l
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