प्रभु जगद्बंधू ( जन्म 1871 ) ने जिस समय पतितोद्धार का कार्य आरम्भ किया , उस समय पतित और छोटी जाति कहलाने वालों की दशा बड़ी दयनीय थी l प्रभु जगद्बंधू ने आरम्भ से ही हिन्दू जाति के इस कोढ़ की चिकित्सा की तरफ ध्यान दिया | उन्होंने बंगाल की बाग्दी जाति और डोम जाति का उद्धार किया । उन्होंने कीर्तन द्वारा इन जातियों का उद्धार किया , वे लोग पहले से मृदंग बजाया करते थे , उनकी प्रेरणा से वे उच्च कोटि के कीर्तनकार बन गये । उन्होंने यह सिद्ध करके दिखा दिया कि घ्रणित और पतित समझे जाने वाले लोग भी सत्प्रेरणा द्वारा श्रेष्ठ बन सकते हैं ।
उनका कहना था कि वर्तमान समाज में इतनी विकृतियाँ आ गईं हैं और बहुसंख्यक व्यक्ति स्वार्थ वश या स्वभाव पड़ जाने से अन्याय मार्ग पर चलने के ऐसे अभ्यस्त हो गये हैं कि जब तक दैवी - दंड द्वारा उनका काया कल्प नहीं किया जायेगा तब तक वे न तो स्वयं सुधरेंगे और न संसार का सुधार होने देंगे । उन्होंने एक नूतन समाज की रचना की ओर संकेत किया था ।
उनका कहना था कि वर्तमान समाज में इतनी विकृतियाँ आ गईं हैं और बहुसंख्यक व्यक्ति स्वार्थ वश या स्वभाव पड़ जाने से अन्याय मार्ग पर चलने के ऐसे अभ्यस्त हो गये हैं कि जब तक दैवी - दंड द्वारा उनका काया कल्प नहीं किया जायेगा तब तक वे न तो स्वयं सुधरेंगे और न संसार का सुधार होने देंगे । उन्होंने एक नूतन समाज की रचना की ओर संकेत किया था ।
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