' लोकमान्य तिलक ने अध्यात्म का विवेचन और प्रचार केवल ' गीता रहस्य ' लिखकर ही नहीं किया वरन अपने जीवन द्वारा भी देशवासियों के सम्मुख व्यवहारिक - अध्यात्म का आदर्श रखा । वे ' गीता ' के अनासक्त मार्ग के अनुयायी थे इसलिए एक वैभवशाली गृहस्थ का सा जीवन बिताते हुए भी कभी उसमे लिप्त नहीं होते थे । उनके लिए परिवार और सेवकों से युक्त अपना विशाल घर और जेलखाने की तंग और अँधेरी कोठरी एक समान थी । इसी अनासक्त भावना के आधार पर वे अपनी पत्नी , पुत्र तथा अन्य स्वजनों का वियोग बिना दुःख सागर में , निमग्न हुए सहन कर सके । '
तिलक महाराज के जिस ग्रन्थ ने भारतीय जनता को विशेष रूप से आकर्षित किया , वह उनका लिखा ' गीता - रहस्य ' है , यह महाग्रंथ उन्होंने बर्मा की मांडले जेल में लिखा था । इस ग्रन्थ के अब तक कितने संस्करण हो चुके , हिन्दी , गुजरती आदि भारत की अन्य भाषाओँ में अनुवादित होकर , यह कितनी बार छप कर बिक चुकी , यह बता सकना कठिन है ।
भारतीय जनता पर ' गीता ' का बहुत अधिक प्रभाव है । लोकमान्य के इस भाष्य से पहले भी इसके अनेक टीकाएँ और भाष्य हो चुके थे । पर इन समस्त प्राचीन भाष्यों में ' गीता ' का जो सार निकाला गया , वह प्राय: वैराग्य और त्याग मूलक ही था । भारत की साधारण जनता ' गीता ' को संन्यासियों के लिए उपयोगी मानती थी । अनेक अज्ञानी लोग यह समझते थे कि जो कोई ' गीता ' का अध्ययन करेगा वह घर परिवार त्याग कर साधु बन जायेगा ।
लोकमान्य तिलक के सम्मुख यह समस्या उस समय प्रकट हुई जब सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने मरणासन्न पिता को गीता सुनाई । तभी से उनके ह्रदय पर गीता का प्रभाव अंकित हो गया ।
इसके बाद उन्होंने ' गीता ' के अनेक भाष्यों और टीकाओं का अध्ययन किया , इससे उनके ह्रदय में यह ज्ञान हुआ कि अर्जुन , जो स्वजनों के साथ युद्ध करने को बड़ा भरी कुकर्म समझकर खिन्न हो गया था , युद्ध से पलायन कर रहा था , उस अर्जुन को युद्ध में प्रवृत करने के लिए ' गीता ' का उपदेश दिया गया । यह समझने पर उन्होंने गीता की समस्त टीकाओं और भाष्यों को लपेट कर रख दिया और गीता का अनेक बार परायण किया इससे उन्हें यह बोध हुआ कि ' गीता ' निवृति - प्रधान नहीं , यह तो कर्म - प्रधान है । इसमें संसार से भागने का नहीं , संसार में रहकर कर्म करने का , ' कर्मयोग ' का सन्देश दिया गया है ।
इस प्रकार तिलक जी ने अपनी एक धार्मिक रचना द्वारा भारतीय जन - जीवन पर ऐसा प्रभाव डाला कि लाखों मनुष्य धर्म और अध्यात्म के उपयोगी स्वरुप को समझ जाने से , अपने जीवन को अधिक उन्नतिशील और समाजोपयोगी मार्ग पर चला सकने में समर्थ हो गये । तिलक महाराज ने भारत के सुशिक्षित व्यक्तियों का ध्यान ' गीता ' के द्वारा जो समाज सेवा और जन - कल्याण की तरफ आकर्षित किया , यह उनकी असाधारण महानता है ।
लोकमान्य तिलक स्वयं भारत को परतंत्रता की बेड़ी से मुक्त करने के लिए रात - दिन घोर प्रयत्न करते रहे । उनको भारतीय स्वाधीनता का मंत्रदाता कहा जाता है ।
उनका जीवन संसार में यश - सौरभ फैलाकर भारतवर्ष में नव जीवन का संचार करने वाला सिद्ध हुआ उन्होंने अपनी आत्मा के , ईश्वर के और जनता के प्रति कर्तव्य का पूर्ण रूप से पालन करके अपने जीवन को सफल बनाया था ।
तिलक महाराज के जिस ग्रन्थ ने भारतीय जनता को विशेष रूप से आकर्षित किया , वह उनका लिखा ' गीता - रहस्य ' है , यह महाग्रंथ उन्होंने बर्मा की मांडले जेल में लिखा था । इस ग्रन्थ के अब तक कितने संस्करण हो चुके , हिन्दी , गुजरती आदि भारत की अन्य भाषाओँ में अनुवादित होकर , यह कितनी बार छप कर बिक चुकी , यह बता सकना कठिन है ।
भारतीय जनता पर ' गीता ' का बहुत अधिक प्रभाव है । लोकमान्य के इस भाष्य से पहले भी इसके अनेक टीकाएँ और भाष्य हो चुके थे । पर इन समस्त प्राचीन भाष्यों में ' गीता ' का जो सार निकाला गया , वह प्राय: वैराग्य और त्याग मूलक ही था । भारत की साधारण जनता ' गीता ' को संन्यासियों के लिए उपयोगी मानती थी । अनेक अज्ञानी लोग यह समझते थे कि जो कोई ' गीता ' का अध्ययन करेगा वह घर परिवार त्याग कर साधु बन जायेगा ।
लोकमान्य तिलक के सम्मुख यह समस्या उस समय प्रकट हुई जब सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने मरणासन्न पिता को गीता सुनाई । तभी से उनके ह्रदय पर गीता का प्रभाव अंकित हो गया ।
इसके बाद उन्होंने ' गीता ' के अनेक भाष्यों और टीकाओं का अध्ययन किया , इससे उनके ह्रदय में यह ज्ञान हुआ कि अर्जुन , जो स्वजनों के साथ युद्ध करने को बड़ा भरी कुकर्म समझकर खिन्न हो गया था , युद्ध से पलायन कर रहा था , उस अर्जुन को युद्ध में प्रवृत करने के लिए ' गीता ' का उपदेश दिया गया । यह समझने पर उन्होंने गीता की समस्त टीकाओं और भाष्यों को लपेट कर रख दिया और गीता का अनेक बार परायण किया इससे उन्हें यह बोध हुआ कि ' गीता ' निवृति - प्रधान नहीं , यह तो कर्म - प्रधान है । इसमें संसार से भागने का नहीं , संसार में रहकर कर्म करने का , ' कर्मयोग ' का सन्देश दिया गया है ।
इस प्रकार तिलक जी ने अपनी एक धार्मिक रचना द्वारा भारतीय जन - जीवन पर ऐसा प्रभाव डाला कि लाखों मनुष्य धर्म और अध्यात्म के उपयोगी स्वरुप को समझ जाने से , अपने जीवन को अधिक उन्नतिशील और समाजोपयोगी मार्ग पर चला सकने में समर्थ हो गये । तिलक महाराज ने भारत के सुशिक्षित व्यक्तियों का ध्यान ' गीता ' के द्वारा जो समाज सेवा और जन - कल्याण की तरफ आकर्षित किया , यह उनकी असाधारण महानता है ।
लोकमान्य तिलक स्वयं भारत को परतंत्रता की बेड़ी से मुक्त करने के लिए रात - दिन घोर प्रयत्न करते रहे । उनको भारतीय स्वाधीनता का मंत्रदाता कहा जाता है ।
उनका जीवन संसार में यश - सौरभ फैलाकर भारतवर्ष में नव जीवन का संचार करने वाला सिद्ध हुआ उन्होंने अपनी आत्मा के , ईश्वर के और जनता के प्रति कर्तव्य का पूर्ण रूप से पालन करके अपने जीवन को सफल बनाया था ।
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