आचार्य गिडवानी के सम्बन्ध में हिन्दी के जाने माने साधक बनारसीदास चतुर्वेदी ने लिखा है -----
" मैदान निवासियों के लिए कभी - कभी पर्वत यात्रा करना अति आवश्यक है । जो लोग नीची सतह पर रहते हैं , उन्हें यदा कदा उच्च भूमि पर जाकर प्राकृतिक सौन्दर्य का निरीक्षण करना चाहिए । भौतिक जगत की यह बात विचारों के जगत के लिए भी कही जा सकती है । साधारण आदमियों को , जो विचारों की निचली सतह पर रहते हैं , उच्च विचार वाले सज्जनों का सत्संग उतना ही आवश्यक है , जितना कि मैदान निवासियों के लिए पर्वत यात्रा ।
' उच्च विचार और उच्च व्यवहार के फलों से लदे जिस व्यक्तित्व की सुखद छाया में आपातकाल में दो घड़ी सुस्ताकर थकान मिटाने और नूतन बल प्राप्त कर लें ' --- ऐसे व्यक्तित्व के धनी, समाज का सबसे बड़ा धन होते हैं ।
ऐसे व्यक्तित्व संपन्न गिडवानी जी का जन्म 1890 में सिन्ध प्रान्त में हुआ था । उनके बाबा सिन्धी भाषा के कवि थे । गिडवानी जी स्वयं सिंधी भाषा के लेखक थे ।
गिडवानी जी एमर्सन के बड़े भक्त थे । एमर्सन के कितने ही वाक्य उन्हें कंठस्थ थे । उनका एक बहुत बड़ा गुण यह भी था कि वे अपनी मौलिक विचार शक्ति को कभी बिसराते नहीं थे ।
एक समय की बात है कहीं पर एक अंग्रेज विद्वान् का भाषण था । वे उनका भाषण सुनने गए थे । वहां गिडवानी जी से भी बोलने का अनुरोध किया गया । वे बहुत अच्छा बोले । अंग्रेज वक्ता तो उनसे बहुत अधिक प्रभावित हुए और पूछने लगे ---- " आपने बर्ट्रेंड रसेल की हाल में छपी शिक्षा सम्बन्धी पुस्तकें पढ़ी हैं ? " गिडवानी जी बोले ---- ' नहीं तो । '
उन अंग्रेज महाशय को आश्चर्य हुआ कि जो बात रसेल ने इन पुस्तकों में कही थी वाही गिडवानी जी ने अपने भाषण में कही । गिडवानी जी की व्याख्यान शैली उच्च कोटि की थी और स्वर बड़ा कर्ण प्रिय था । उनके व्याख्यानों में मानसिक भोजन का काफी मसाला रहता था । उनका व्यक्तित्व प्रेरक और प्रशंसनीय है ।
" मैदान निवासियों के लिए कभी - कभी पर्वत यात्रा करना अति आवश्यक है । जो लोग नीची सतह पर रहते हैं , उन्हें यदा कदा उच्च भूमि पर जाकर प्राकृतिक सौन्दर्य का निरीक्षण करना चाहिए । भौतिक जगत की यह बात विचारों के जगत के लिए भी कही जा सकती है । साधारण आदमियों को , जो विचारों की निचली सतह पर रहते हैं , उच्च विचार वाले सज्जनों का सत्संग उतना ही आवश्यक है , जितना कि मैदान निवासियों के लिए पर्वत यात्रा ।
' उच्च विचार और उच्च व्यवहार के फलों से लदे जिस व्यक्तित्व की सुखद छाया में आपातकाल में दो घड़ी सुस्ताकर थकान मिटाने और नूतन बल प्राप्त कर लें ' --- ऐसे व्यक्तित्व के धनी, समाज का सबसे बड़ा धन होते हैं ।
ऐसे व्यक्तित्व संपन्न गिडवानी जी का जन्म 1890 में सिन्ध प्रान्त में हुआ था । उनके बाबा सिन्धी भाषा के कवि थे । गिडवानी जी स्वयं सिंधी भाषा के लेखक थे ।
गिडवानी जी एमर्सन के बड़े भक्त थे । एमर्सन के कितने ही वाक्य उन्हें कंठस्थ थे । उनका एक बहुत बड़ा गुण यह भी था कि वे अपनी मौलिक विचार शक्ति को कभी बिसराते नहीं थे ।
एक समय की बात है कहीं पर एक अंग्रेज विद्वान् का भाषण था । वे उनका भाषण सुनने गए थे । वहां गिडवानी जी से भी बोलने का अनुरोध किया गया । वे बहुत अच्छा बोले । अंग्रेज वक्ता तो उनसे बहुत अधिक प्रभावित हुए और पूछने लगे ---- " आपने बर्ट्रेंड रसेल की हाल में छपी शिक्षा सम्बन्धी पुस्तकें पढ़ी हैं ? " गिडवानी जी बोले ---- ' नहीं तो । '
उन अंग्रेज महाशय को आश्चर्य हुआ कि जो बात रसेल ने इन पुस्तकों में कही थी वाही गिडवानी जी ने अपने भाषण में कही । गिडवानी जी की व्याख्यान शैली उच्च कोटि की थी और स्वर बड़ा कर्ण प्रिय था । उनके व्याख्यानों में मानसिक भोजन का काफी मसाला रहता था । उनका व्यक्तित्व प्रेरक और प्रशंसनीय है ।
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