' निष्ठावान सिक्ख होते हुए भी धर्म और सम्प्रदाय के द्रष्टिकोण से उन्होंने कभी पक्षपात नहीं किया । सिक्ख , हिन्दू और मुसलमान सभी सम्प्रदाय के व्यक्तियों का वे उचित सम्मान करते थे और हर जाति के प्रतिभा संपन्न व्यक्तियों को आगे बढ़ने का मौका देते थे । "
इतने बड़े साम्राज्य के अधिष्ठाता और कुशल शासक होते हुए भी महाराजा रणजीत सिंह अनपढ़ थे । फिर भी उन्होंने पढ़े - लिखे और उच्च शिक्षितों से अधिक काम किया । इस सफलता का श्रेय उनके उच्च विचार , महान जीवन और उत्कृष्ट चरित्र को दिया जा सकता है । वे एक साथ वीर योद्धा , कुशल राजनीतिज्ञ और उदार धर्म प्राण महामानव थे । युद्ध क्षेत्र में सदैव आगे रहकर उन्होंने अपनी सेनाओं का पथ प्रदर्शन और उत्साह वर्द्धन किया । पिता से सुनी हुई कहानियों द्वारा उन्होंने राजनीति के मर्म को बहुत गहराई से समझा था ।
उन्होंने आजीवन संघर्ष करते हुए राष्ट्रीयता और एकता की भावना को मूर्तिमान किया जो आज भी अनुकरणीय है ।
इतने बड़े साम्राज्य के अधिष्ठाता और कुशल शासक होते हुए भी महाराजा रणजीत सिंह अनपढ़ थे । फिर भी उन्होंने पढ़े - लिखे और उच्च शिक्षितों से अधिक काम किया । इस सफलता का श्रेय उनके उच्च विचार , महान जीवन और उत्कृष्ट चरित्र को दिया जा सकता है । वे एक साथ वीर योद्धा , कुशल राजनीतिज्ञ और उदार धर्म प्राण महामानव थे । युद्ध क्षेत्र में सदैव आगे रहकर उन्होंने अपनी सेनाओं का पथ प्रदर्शन और उत्साह वर्द्धन किया । पिता से सुनी हुई कहानियों द्वारा उन्होंने राजनीति के मर्म को बहुत गहराई से समझा था ।
उन्होंने आजीवन संघर्ष करते हुए राष्ट्रीयता और एकता की भावना को मूर्तिमान किया जो आज भी अनुकरणीय है ।
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