' जहाँ प्रतिरोध की संभावना न हो वहां हर बुराई मनमाने ढंग से पनपती और फलती - फूलती रह सकती है । '
अनीति के प्रति विद्रोह करना , अनुपयुक्त को बदल देना , मनुष्य का नितान्त आवश्यक एवं नैतिक कर्तव्य है । यह कर्तव्य भावना यदि शोषितों में जाग पड़े तो वे शोषकों को चूर - चूर कर सकते हैं ।
लेकिन जन - साधारण की विद्रोह भावना दबी रहे , वे झूठे आत्म संतोष में पड़े उस स्थिति को सहन करते रहें , अन्याय पीड़ित शोषितों के मन में प्रतिकार की , विद्रोह की आग न भड़कने लगे इसलिए अनाचारी लोगों ने यह भाग्यवादी विचारधारा तथाकथित पंडितों और विद्वानों के माध्यम से प्रचलित करायी कि---- -- ' यदि अत्याचारी क्रूरता बरतते हैं, उद्दंड आचरण करते हैं , अनीति पूर्वक सुख - साधन जुटाते हैं तो उसे इन पर ईश्वर की कृपा , उनके पूर्व जन्मों का पुण्योदय माना जाये । जिस पर अत्याचार हुआ उसके बारे में यह समझा जाये कि इसने पूर्व जनम में कोई पाप किया होगा , पहले सताया होगा , इसलिए उसे उसका दंड मिल रहा है । इस विचारधारा ने शोषितों को दूसरों की सहानुभूति से वंचित कर दिया । जो जितना सताया गया वह पूर्व जन्म का उतना ही बड़ा पापी माना गया । और जिसने अनीति पूर्वक जितना धन उठा लिया वह उतना ही पूर्व जन्म का पुण्यात्मा माने जाने के कारण श्रद्धा एवं प्रशंसा का अधिकारी बन गया ।
भाग्यवाद की यह नशीली गोली खिलाकर सर्वसाधारण की मनोभूमि को अर्द्ध - मूर्छित और लुंज - पुंज बना दिया । गोली ठीक निशाने पर लगी । सदियों से भारतीय जनता देशी और विदेशी अत्याचारियों के अनाचार सिर झुकाए सहन कर रही है ।
ऐसी बात नहीं है कि उसमे विद्रोह की , प्रतिरोध की क्षमता नहीं है । उलटे दर्शन ने जनता की बुद्धि को भ्रमित कर दिया है । जनता अब अन्याय सहने की अभ्यस्त हो गई है । तथाकथित पंडित और फलित ज्योतिषी भी अनीति और अन्याय के प्रतिरोध का उपाय विद्रोह न बता कर यह कह रहे हैं की ईश्वर की भक्ति करो , भजन कीर्तन में मन लगाओ । ऐसा करने से भगवान् प्रसन्न होंगे , ग्रह - नक्षत्र अनुकूल होंगे ।
इसलिए लोग कर्मकांड में उलझे रहते हैं कि भगवान आयेंगे और सब ठीक करेंगे ।
सत्प्रयत्न , उत्साहपूर्वक परिश्रम , जागरूकता , श्रेष्ठ और गरिमामय जीवन जीने की लगन भी वह उपाय हो सकते हैं जिससे मनुष्य अपनी कठिनाइयों और बुरी परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर सकता है ।
अनीति के प्रति विद्रोह करना , अनुपयुक्त को बदल देना , मनुष्य का नितान्त आवश्यक एवं नैतिक कर्तव्य है । यह कर्तव्य भावना यदि शोषितों में जाग पड़े तो वे शोषकों को चूर - चूर कर सकते हैं ।
लेकिन जन - साधारण की विद्रोह भावना दबी रहे , वे झूठे आत्म संतोष में पड़े उस स्थिति को सहन करते रहें , अन्याय पीड़ित शोषितों के मन में प्रतिकार की , विद्रोह की आग न भड़कने लगे इसलिए अनाचारी लोगों ने यह भाग्यवादी विचारधारा तथाकथित पंडितों और विद्वानों के माध्यम से प्रचलित करायी कि---- -- ' यदि अत्याचारी क्रूरता बरतते हैं, उद्दंड आचरण करते हैं , अनीति पूर्वक सुख - साधन जुटाते हैं तो उसे इन पर ईश्वर की कृपा , उनके पूर्व जन्मों का पुण्योदय माना जाये । जिस पर अत्याचार हुआ उसके बारे में यह समझा जाये कि इसने पूर्व जनम में कोई पाप किया होगा , पहले सताया होगा , इसलिए उसे उसका दंड मिल रहा है । इस विचारधारा ने शोषितों को दूसरों की सहानुभूति से वंचित कर दिया । जो जितना सताया गया वह पूर्व जन्म का उतना ही बड़ा पापी माना गया । और जिसने अनीति पूर्वक जितना धन उठा लिया वह उतना ही पूर्व जन्म का पुण्यात्मा माने जाने के कारण श्रद्धा एवं प्रशंसा का अधिकारी बन गया ।
भाग्यवाद की यह नशीली गोली खिलाकर सर्वसाधारण की मनोभूमि को अर्द्ध - मूर्छित और लुंज - पुंज बना दिया । गोली ठीक निशाने पर लगी । सदियों से भारतीय जनता देशी और विदेशी अत्याचारियों के अनाचार सिर झुकाए सहन कर रही है ।
ऐसी बात नहीं है कि उसमे विद्रोह की , प्रतिरोध की क्षमता नहीं है । उलटे दर्शन ने जनता की बुद्धि को भ्रमित कर दिया है । जनता अब अन्याय सहने की अभ्यस्त हो गई है । तथाकथित पंडित और फलित ज्योतिषी भी अनीति और अन्याय के प्रतिरोध का उपाय विद्रोह न बता कर यह कह रहे हैं की ईश्वर की भक्ति करो , भजन कीर्तन में मन लगाओ । ऐसा करने से भगवान् प्रसन्न होंगे , ग्रह - नक्षत्र अनुकूल होंगे ।
इसलिए लोग कर्मकांड में उलझे रहते हैं कि भगवान आयेंगे और सब ठीक करेंगे ।
सत्प्रयत्न , उत्साहपूर्वक परिश्रम , जागरूकता , श्रेष्ठ और गरिमामय जीवन जीने की लगन भी वह उपाय हो सकते हैं जिससे मनुष्य अपनी कठिनाइयों और बुरी परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर सकता है ।
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