' पं. ईश्वरचंद्र विद्दासागर ने जीवन भर समाज के हित के लिए जो सेवाएं की और जो कष्ट उठाये उसने उन्हें भारत के ही नहीं संसार के महापुरुषों की सूची में उल्लिखित कर दिया । '
उन्होंने केवल अपना तन ही नहीं अपना सब धन भी जन - सेवा में लगा दिया ।
उन्होंने विलायत में कष्ट उठाते बंगाल के महाकवि श्री मधुसुदन दत्त को लगभग पांच - छह हजार रुपया भेजकर दो बार सहायता की । इसी प्रकार एक गरीब ब्राह्मण का मकान नीलाम होने से बचाने के लिए स्वयं जाकर उसके नाम से चौबीस सौ रूपये अदालत में जमा कर दिए , इतना उपकार करने पर भी अपना नाम उस के सामने प्रकट नहीं किया ।
उन्होंने न जाने कितने निर्धन विद्दार्थियों को अपने पास से सहायता देकर उच्च शिक्षा दिलाई और अनाथ विधवाओं और बालकों की सहायता की । विद्दासागर ने न केवल रोगियों की सहायता के लिए औषधालय खोला था बल्कि स्वयं गरीबों का उपचार अपने हाथ से किया करते थे ।
' ऐसे समाज - सेवी तथा परोपकारी व्यक्ति ही संसार से जाने के बाद भी अमर रहते हैं ।
उन्होंने केवल अपना तन ही नहीं अपना सब धन भी जन - सेवा में लगा दिया ।
उन्होंने विलायत में कष्ट उठाते बंगाल के महाकवि श्री मधुसुदन दत्त को लगभग पांच - छह हजार रुपया भेजकर दो बार सहायता की । इसी प्रकार एक गरीब ब्राह्मण का मकान नीलाम होने से बचाने के लिए स्वयं जाकर उसके नाम से चौबीस सौ रूपये अदालत में जमा कर दिए , इतना उपकार करने पर भी अपना नाम उस के सामने प्रकट नहीं किया ।
उन्होंने न जाने कितने निर्धन विद्दार्थियों को अपने पास से सहायता देकर उच्च शिक्षा दिलाई और अनाथ विधवाओं और बालकों की सहायता की । विद्दासागर ने न केवल रोगियों की सहायता के लिए औषधालय खोला था बल्कि स्वयं गरीबों का उपचार अपने हाथ से किया करते थे ।
' ऐसे समाज - सेवी तथा परोपकारी व्यक्ति ही संसार से जाने के बाद भी अमर रहते हैं ।
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