' धार्मिक देशभक्त ' जमनालाल बजाज ने अपना उदाहरण उपस्थित करके दिखा दिया कि धनवान लोगों को देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्य का पालन किस प्रकार करना चाहिए । '
वे व्यापार करते और बहुत सा धन कमाते थे किन्तु उन्होंने अपने को उस धन का व्यवस्थापक मात्र समझा । । वे धन की उचित मर्यादा को समझते थे और वे धन को धर्म और मानवता से अधिक ऊँचा स्थान देना नहीं चाहते थे । वे ऐसा धर्मगुरु ढूंढते थे जिसने संसार में रहकर अध्यात्म के आदर्श का पालन करके दिखाया हो । जब उन्होंने गाँधीजी की कार्य पद्धति को बहुत समीप से देखा कि वे जो कुछ कहते हैं , दूसरों को जैसा उपदेश करते हैं , स्वयं भी वैसा ही आचरण करते हैं । गांधीजी के सम्पर्क में आकर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उन्होंने अपना अध्यात्मिक गुरु प्राप्त कर लिया । ।
1906 में जब देश में बंग - भंग के फलस्वरूप स्वदेशी व्यवहार और अंग्रेजी वस्तुओं के बायकाट का आन्दोलन छेड़ा गया तब से उनका झुकाव राजनीति की तरफ हुआ । ' दो- चार गरीब लोगों पर पुलिस वालों के अत्याचार देखकर उन्होंने यह समझ लिया कि वास्तव में किसी देश पर अन्य देश का शासन होना न्याय और नीति के विरुद्ध है और इससे जनता का हर तरह से पतन होता है l
गांधीजी की महानता और व्यवहारिक अध्यात्म जमनालाल जी को बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ और वे तन - मन - धन से राजनीतिक क्षेत्र में प्रविष्ट हो गये ।
जमनालाल जी प्राय: कहा करते थे ------ " गांधीजी के साथ रहने का सौभाग्य जिसे मिला , या व्यक्ति और जीवन की समस्याओं के प्रति गाँधीजी के द्रष्टिकोण को समझने का प्रयत्न किया , वह व्यक्ति जीवन में थक नहीं सकता । वह कार्य के लिए उत्साह से परिपूरित रहेगा और सदैव अपने कर्तव्य पालन को तत्पर रहेगा । यह संभव है कि गांधीजी द्वारा स्वराज्य प्राप्ति के मार्ग में देर हो , पर यह निश्चित मार्ग है । जो कोई इस मार्ग का अनुसरण करेगा वह औरों के लिए नहीं , तो कम से कम अपने लिए तो स्वराज्य अवश्य प्राप्त कर लेगा । "
गांधीजी के इस व्यवहारिक अध्यात्म का अनुभव जमनालाल जी चौबीस वर्ष तक निरन्तर करते रहे , इसके फलस्वरूप उनकी स्थिति एक ' निष्काम कर्मयोगी ' जैसी बनती चली गई ।
वे व्यापार करते और बहुत सा धन कमाते थे किन्तु उन्होंने अपने को उस धन का व्यवस्थापक मात्र समझा । । वे धन की उचित मर्यादा को समझते थे और वे धन को धर्म और मानवता से अधिक ऊँचा स्थान देना नहीं चाहते थे । वे ऐसा धर्मगुरु ढूंढते थे जिसने संसार में रहकर अध्यात्म के आदर्श का पालन करके दिखाया हो । जब उन्होंने गाँधीजी की कार्य पद्धति को बहुत समीप से देखा कि वे जो कुछ कहते हैं , दूसरों को जैसा उपदेश करते हैं , स्वयं भी वैसा ही आचरण करते हैं । गांधीजी के सम्पर्क में आकर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उन्होंने अपना अध्यात्मिक गुरु प्राप्त कर लिया । ।
1906 में जब देश में बंग - भंग के फलस्वरूप स्वदेशी व्यवहार और अंग्रेजी वस्तुओं के बायकाट का आन्दोलन छेड़ा गया तब से उनका झुकाव राजनीति की तरफ हुआ । ' दो- चार गरीब लोगों पर पुलिस वालों के अत्याचार देखकर उन्होंने यह समझ लिया कि वास्तव में किसी देश पर अन्य देश का शासन होना न्याय और नीति के विरुद्ध है और इससे जनता का हर तरह से पतन होता है l
गांधीजी की महानता और व्यवहारिक अध्यात्म जमनालाल जी को बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ और वे तन - मन - धन से राजनीतिक क्षेत्र में प्रविष्ट हो गये ।
जमनालाल जी प्राय: कहा करते थे ------ " गांधीजी के साथ रहने का सौभाग्य जिसे मिला , या व्यक्ति और जीवन की समस्याओं के प्रति गाँधीजी के द्रष्टिकोण को समझने का प्रयत्न किया , वह व्यक्ति जीवन में थक नहीं सकता । वह कार्य के लिए उत्साह से परिपूरित रहेगा और सदैव अपने कर्तव्य पालन को तत्पर रहेगा । यह संभव है कि गांधीजी द्वारा स्वराज्य प्राप्ति के मार्ग में देर हो , पर यह निश्चित मार्ग है । जो कोई इस मार्ग का अनुसरण करेगा वह औरों के लिए नहीं , तो कम से कम अपने लिए तो स्वराज्य अवश्य प्राप्त कर लेगा । "
गांधीजी के इस व्यवहारिक अध्यात्म का अनुभव जमनालाल जी चौबीस वर्ष तक निरन्तर करते रहे , इसके फलस्वरूप उनकी स्थिति एक ' निष्काम कर्मयोगी ' जैसी बनती चली गई ।
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