यद्दपि महात्मा गाँधी के आन्दोलन ने लाखों व्यक्तियों के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिए थे , पर स्त्रियों में अवन्तिकाबाई जैसे उदाहरण थोड़े ही थे । महात्मा गाँधी में मनुष्य के अन्त:करण को पहिचानने की विलक्षण शक्ति थी । इसी के बल पर उन्होंने उस ' अंग्रेजियत ' के युग में ऐसे व्यक्तियों को ढूंढ कर निकाल लिया , जिन्होंने बिना किसी आनाकानी के तुरंत अपने वैभवशाली जीवन क्रम का त्याग कर दिया और रेशम के स्थान पर मोटा खद्दर पहिन कर जन सेवा के कार्य में संलग्न महो गये । '
अवन्तिकाबाई इस कसौटी पर खरी उतरी । उनका जीवन उद्देश्य जन सेवा ही था । जब उन्होंने गाँधी जी सिद्धांतों की वास्तविकता को समझ लिया तो स्वयं तदनुसार परिवर्तित होने में देर न लगाई ।
अवन्तिकाबाई बम्बई की रहने वाली सुशिक्षित और सुसभ्य महिला थीं , जो विदेश जाकर अंग्रेजों की सामाजिक प्रथाओं का अच्छा अनुभव प्राप्त कर चुकी थीं । उज्नके पति श्री बबनराव ने इंग्लैंड में पांच वर्ष रहकर अध्ययन किया था । बम्बई में वे एक अच्छे मकान में सुख - सुविधाओं में रहते थे । महात्मा गाँधी ने चम्पारन के ' किसान सत्याग्रह ' के लिए गुजरात और महाराष्ट्र प्रान्तों से ऐसे चुने हुए कार्यकर्ताओं को बुलाया था जो केवल सेवा भाव से बिहार के पिछड़े गांवों में रहकर , वहां की समस्त असुविधाएं सहन करके , साथ ही गोरों की धमकियों की परवाह न करके किसानों में सुधार का कार्य करते रहें । इन्ही कार्यकर्ताओं में से एक अवन्तिकाबाई गोखले थीं ।
बिहार के जिन गावों में उनको कई महीने रहना था , उनमे एक अच्छी लालटैन का मिल सकना भी कठिन था ।
गाँधी जी का आदेश मिलते ही दोनों पति पत्नी चम्पारन के लिए चल पड़े । अब तक वे सदैव सेकण्ड क्लास में सफर किया करते थे , पर इस बार गाँधी जी के बुलाने पर जा रहे थे , इस लिए थर्ड क्लास में ही सवार हुए ।
महात्मा जी के पास पहले से ही खबर पहुँच गई थी , इसलिए उन्होंने कुछ लोगों को उनको लाने के लिए भेजा , जिनमे उनके पुत्र देवदास गाँधी भी थे । वे कहने लगे कि अवन्तिकाबाई तो दूसरे दर्जे में आएँगी । गाँधी जी ने कहा ---- " अगर वे तीसरे दर्जे में आयेंगी तभी उन्हें यंहां रखूँगा , वरना बम्बई को ही वापस भेज दूंगा । " देवदास ने उनको दूसरे दर्जे के डिब्बे में ही ढूंढा लेकिन वो अपने पति के साथ तीसरे दर्जे के डिब्बे से उतर कर गाँधी जी के पास पहुँच गईं ।
अवन्तिकाबाई इस कसौटी पर खरी उतरी । उनका जीवन उद्देश्य जन सेवा ही था । जब उन्होंने गाँधी जी सिद्धांतों की वास्तविकता को समझ लिया तो स्वयं तदनुसार परिवर्तित होने में देर न लगाई ।
अवन्तिकाबाई बम्बई की रहने वाली सुशिक्षित और सुसभ्य महिला थीं , जो विदेश जाकर अंग्रेजों की सामाजिक प्रथाओं का अच्छा अनुभव प्राप्त कर चुकी थीं । उज्नके पति श्री बबनराव ने इंग्लैंड में पांच वर्ष रहकर अध्ययन किया था । बम्बई में वे एक अच्छे मकान में सुख - सुविधाओं में रहते थे । महात्मा गाँधी ने चम्पारन के ' किसान सत्याग्रह ' के लिए गुजरात और महाराष्ट्र प्रान्तों से ऐसे चुने हुए कार्यकर्ताओं को बुलाया था जो केवल सेवा भाव से बिहार के पिछड़े गांवों में रहकर , वहां की समस्त असुविधाएं सहन करके , साथ ही गोरों की धमकियों की परवाह न करके किसानों में सुधार का कार्य करते रहें । इन्ही कार्यकर्ताओं में से एक अवन्तिकाबाई गोखले थीं ।
बिहार के जिन गावों में उनको कई महीने रहना था , उनमे एक अच्छी लालटैन का मिल सकना भी कठिन था ।
गाँधी जी का आदेश मिलते ही दोनों पति पत्नी चम्पारन के लिए चल पड़े । अब तक वे सदैव सेकण्ड क्लास में सफर किया करते थे , पर इस बार गाँधी जी के बुलाने पर जा रहे थे , इस लिए थर्ड क्लास में ही सवार हुए ।
महात्मा जी के पास पहले से ही खबर पहुँच गई थी , इसलिए उन्होंने कुछ लोगों को उनको लाने के लिए भेजा , जिनमे उनके पुत्र देवदास गाँधी भी थे । वे कहने लगे कि अवन्तिकाबाई तो दूसरे दर्जे में आएँगी । गाँधी जी ने कहा ---- " अगर वे तीसरे दर्जे में आयेंगी तभी उन्हें यंहां रखूँगा , वरना बम्बई को ही वापस भेज दूंगा । " देवदास ने उनको दूसरे दर्जे के डिब्बे में ही ढूंढा लेकिन वो अपने पति के साथ तीसरे दर्जे के डिब्बे से उतर कर गाँधी जी के पास पहुँच गईं ।
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