स्वामी विवेकानन्द किसी को धर्म के नाम पर अन्याय , अत्याचार का समर्थन करते देखकर आवेश में आकर उसको कठोर उत्तर दे डालते थे , पर कभी यदि अपनी भूल मालूम पड़ती तो उसे स्वीकार करने में भी कोई आनाकानी नहीं करते । ऐसी एक मद्रास की घटना है -----
बंगाल के प्रसिद्ध नेता तथा परमहंसदेव के भक्त श्री अश्विनीकुमार दत्त छ: वर्षों बाद स्वामी जी से मिले तो विभिन्न विषयों पर बातचीत करते हुए पूछ बैठे ----- " क्या यह ठीक है कि मद्रास में कुछ ब्राह्मणों ने आपसे कहा था कि तुम शूद्र हो और तुम्हे वेद का उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं । इस पर आपने उत्तर दिया ---- जो मैं शूद्र हूँ तो तुम मद्रास के ब्राह्मण भंगियों के भी भंगी हो । "
स्वामी जी ---- " हाँ , ऐसा ही हुआ था । "
अश्विनी बाबू ---- " आप जैसे धर्मोपदेशक और आत्म निग्रह वाले संत के लिए ऐसा उत्तर देना ठीक था ? "
स्वामी जी ----- " कौन कहता है वह ठीक था ? उन लोगों की उद्दंडता देखकर मेरा क्रोध अकस्मात भड़क उठा और ऐसे शब्द निकल गये , पर मैं उस कार्य का कभी समर्थन नहीं करता । "
यह सुनकर अश्विनी बाबू ने उन्हें ह्रदय से लगा लिया और कहा आज तुम मेरी द्रष्टि में पहले से बहुत महान हो गए । अब मुझे मालूम हो गया कि तुम विश्व विजेता कैसे बन गए । "
जब 1898 में बेलूर मठ की स्थापना की गई तो उन्होंने श्रीरामकृष्ण के अवशेष वाले ताम्र कलश को स्वयं कंधे पर उठाया और बड़े जुलुस के साथ उसे मठ के नए मकान में ले गये ।
रास्ते में उन्होंने कहा ---- " देखो ठाकुर ने मुझसे कहा था कि अपने कंधे पर बैठाकर तू मुझे जहाँ ले जायेगा वहीँ पर मैं रहूँगा । इसलिए यह निश्चित समझ लेना जब तक गुरुदेव के नाम पर उनके अनुयायी सच्चरित्रता , पवित्रता और सब मनुष्यों के प्रति उदार भाव का व्यवहार करते रहेंगे , तब तक गुरु महाराज यहीं विराजेंगे । "
बंगाल के प्रसिद्ध नेता तथा परमहंसदेव के भक्त श्री अश्विनीकुमार दत्त छ: वर्षों बाद स्वामी जी से मिले तो विभिन्न विषयों पर बातचीत करते हुए पूछ बैठे ----- " क्या यह ठीक है कि मद्रास में कुछ ब्राह्मणों ने आपसे कहा था कि तुम शूद्र हो और तुम्हे वेद का उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं । इस पर आपने उत्तर दिया ---- जो मैं शूद्र हूँ तो तुम मद्रास के ब्राह्मण भंगियों के भी भंगी हो । "
स्वामी जी ---- " हाँ , ऐसा ही हुआ था । "
अश्विनी बाबू ---- " आप जैसे धर्मोपदेशक और आत्म निग्रह वाले संत के लिए ऐसा उत्तर देना ठीक था ? "
स्वामी जी ----- " कौन कहता है वह ठीक था ? उन लोगों की उद्दंडता देखकर मेरा क्रोध अकस्मात भड़क उठा और ऐसे शब्द निकल गये , पर मैं उस कार्य का कभी समर्थन नहीं करता । "
यह सुनकर अश्विनी बाबू ने उन्हें ह्रदय से लगा लिया और कहा आज तुम मेरी द्रष्टि में पहले से बहुत महान हो गए । अब मुझे मालूम हो गया कि तुम विश्व विजेता कैसे बन गए । "
जब 1898 में बेलूर मठ की स्थापना की गई तो उन्होंने श्रीरामकृष्ण के अवशेष वाले ताम्र कलश को स्वयं कंधे पर उठाया और बड़े जुलुस के साथ उसे मठ के नए मकान में ले गये ।
रास्ते में उन्होंने कहा ---- " देखो ठाकुर ने मुझसे कहा था कि अपने कंधे पर बैठाकर तू मुझे जहाँ ले जायेगा वहीँ पर मैं रहूँगा । इसलिए यह निश्चित समझ लेना जब तक गुरुदेव के नाम पर उनके अनुयायी सच्चरित्रता , पवित्रता और सब मनुष्यों के प्रति उदार भाव का व्यवहार करते रहेंगे , तब तक गुरु महाराज यहीं विराजेंगे । "
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