समाज में जब भी वे शोषितों एवं दलितों के प्रति अमानवीय व्यवहार देखते तो उनका ह्रदय द्रवित हो जाता था | वे जानते थे कि--- ' ये दलित जिनको तिरस्कृत कर उनके मानवीय अधिकारों का हनन किया जा रहा है । हमारे ही अंश हैं । समाज रूपी शरीर के समग्र विकास के लिए इनकी उपेक्षा करना अपने समाज को अपंग बनाना है । "
अत: वे उनकी न्यायोचित सहायता के लिए आगे बढ़ते रहे । मानवीय आदर्शों की गरिमा बताते हुए वे कहते थे कि ---- " अपने से कमजोरों की सेवा - सहायता कर उन पर दया करने के लिए ईश्वर ने शक्ति एवं सामर्थ्य दी है न कि उन्हें पीड़ित करने के लिए । निष्ठुरता पूर्वक अत्याचार करते रहना तो शरीर और आत्मा दोनों के लिए अहितकर है इससे सुख - संतोष की अपार सम्पति से सदा ही वंचित रहना पड़ता है l "
इस मानव कल्याणकारी प्रेरणा से अनेक ने विध्वंसात्मक मार्ग छोड़कर रचनात्मक कार्यों में स्वयं को नियोजित किया l
उनका विचार था कि " जिस समाज से अनेक साधनों और सेवाओं को पाकर हमारा जीवन पल रहा है , इसका कर्ज नगद रूप में चुका सकना असंभव है । अत: समाज की भलाई के समय भी काम न आ सकें तो इससे बुरी बात क्या हो सकती है ? "
अत: वे उनकी न्यायोचित सहायता के लिए आगे बढ़ते रहे । मानवीय आदर्शों की गरिमा बताते हुए वे कहते थे कि ---- " अपने से कमजोरों की सेवा - सहायता कर उन पर दया करने के लिए ईश्वर ने शक्ति एवं सामर्थ्य दी है न कि उन्हें पीड़ित करने के लिए । निष्ठुरता पूर्वक अत्याचार करते रहना तो शरीर और आत्मा दोनों के लिए अहितकर है इससे सुख - संतोष की अपार सम्पति से सदा ही वंचित रहना पड़ता है l "
इस मानव कल्याणकारी प्रेरणा से अनेक ने विध्वंसात्मक मार्ग छोड़कर रचनात्मक कार्यों में स्वयं को नियोजित किया l
उनका विचार था कि " जिस समाज से अनेक साधनों और सेवाओं को पाकर हमारा जीवन पल रहा है , इसका कर्ज नगद रूप में चुका सकना असंभव है । अत: समाज की भलाई के समय भी काम न आ सकें तो इससे बुरी बात क्या हो सकती है ? "
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