' महत्वाकांक्षा हर व्यक्ति में होती है , उसे दिशा मिले तो संसारी आकर्षण , धन , भोग , यश , पद आदि प्राप्त करके व्यक्ति अपनी सुख - सुविधा बढ़ाने अवं अहंकार की तृप्ति करने में लगता है पर यदि उसे इस बड़प्पन की तुलना में महानता का महत्व विदित हो जाये , विलासिता और अहंता की पूर्ति के स्थान पर महामानव बनने के लिए , उत्कृष्टता और आदर्शवादिता का अवलम्बन करने के लिए उत्साह उत्पन्न हो जाये तो स्वयं प्रकाशवान होने और अपनी ज्योति से असंख्यों को ज्योतिर्मय बनाने में समर्थ हो सकता है |
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