सुभाष चन्द्र बोस के पिता एक संपन्न वकील थे । एक रात उन्होंने देखा कि बेटा सुभाष एक धोती लपेटे जमीन पर सो रहा है । पिता ने पूछा --- यह किसने सिखाया बीटा जमीन पर सोना ।
सुभाष ने कहा --- " गुरूजी कह रहे थे हमारे ऋषि - मुनि महापुरुष थे और वे जमीन पर ही सोया करते थे । मैं भी महान बनूँगा , इसलिए जमीन पर सोता हूँ । "
माँ ने समझाया ----' जमीन पर सोने से कोई महान नहीं बनता । महान बनने का एक ही मार्ग है , कठोर तप साधना और दुःखी , दरिद्रों की सेवा करना । '
उन दिनों कटक में स्वामी विवेकानन्द पधारे । सुभाषचंद्र बोस ने स्वामी विवेकनन्द से प्रभावित होकर संन्यास दीक्षा की प्रार्थना की । स्वामी जी ने कहा ---- " संन्यास के लिए तैयारी और प्राथमिक अभ्यास की आवश्यकता है । साधना के प्राथमिक सोपान पूरे कर लो तब तुम्हारी अंतरात्मा स्वयंमेव ही तुम्हे इस जीवन में दीक्षित कर देगी । "
सुभाषचंद्र बोस ने पूछा ---- "इसके प्राथमिक सोपान कौन से हैं ? "
स्वामीजी ने कहा ---- " सेवा और सेवा --- बस ! इसी साधना का स्थूल अभ्यास तुम्हारी अगली सीढ़ी बन जायेगा । "
उन्ही दिनों नगर में हैजा फैला , लोग मरने लगे । सुभाष बोस ने अपने साथियों को लेकर निर्धन बस्तियों को अपना कार्य क्षेत्र बनाया । जिस घर में बेटा अपनी माँ को छूने से भी परहेज करता था , उन घरों में वे जाते और औषधि देने से लेकर उसका वमन साफ करने तक का दायित्व निभाते इस रूप में लोगों ने उन्हें भगवान का दूत , भयहारी प्रभु का अवतार ही जाना ।
गीता का अध्ययन उनका नित्य का कार्य था । वे कहते थे --- मेरी प्रेरणा और शक्ति इस ग्रन्थ से नि:सृत होकर मुझ तक पहुँचती है ।
सुभाष ने कहा --- " गुरूजी कह रहे थे हमारे ऋषि - मुनि महापुरुष थे और वे जमीन पर ही सोया करते थे । मैं भी महान बनूँगा , इसलिए जमीन पर सोता हूँ । "
माँ ने समझाया ----' जमीन पर सोने से कोई महान नहीं बनता । महान बनने का एक ही मार्ग है , कठोर तप साधना और दुःखी , दरिद्रों की सेवा करना । '
उन दिनों कटक में स्वामी विवेकानन्द पधारे । सुभाषचंद्र बोस ने स्वामी विवेकनन्द से प्रभावित होकर संन्यास दीक्षा की प्रार्थना की । स्वामी जी ने कहा ---- " संन्यास के लिए तैयारी और प्राथमिक अभ्यास की आवश्यकता है । साधना के प्राथमिक सोपान पूरे कर लो तब तुम्हारी अंतरात्मा स्वयंमेव ही तुम्हे इस जीवन में दीक्षित कर देगी । "
सुभाषचंद्र बोस ने पूछा ---- "इसके प्राथमिक सोपान कौन से हैं ? "
स्वामीजी ने कहा ---- " सेवा और सेवा --- बस ! इसी साधना का स्थूल अभ्यास तुम्हारी अगली सीढ़ी बन जायेगा । "
उन्ही दिनों नगर में हैजा फैला , लोग मरने लगे । सुभाष बोस ने अपने साथियों को लेकर निर्धन बस्तियों को अपना कार्य क्षेत्र बनाया । जिस घर में बेटा अपनी माँ को छूने से भी परहेज करता था , उन घरों में वे जाते और औषधि देने से लेकर उसका वमन साफ करने तक का दायित्व निभाते इस रूप में लोगों ने उन्हें भगवान का दूत , भयहारी प्रभु का अवतार ही जाना ।
गीता का अध्ययन उनका नित्य का कार्य था । वे कहते थे --- मेरी प्रेरणा और शक्ति इस ग्रन्थ से नि:सृत होकर मुझ तक पहुँचती है ।
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