यदा - कदा मनुष्य का मोह और मानसिक दुर्बलतायें प्रवंचना के जाल में फंसाकर उसको गलत दिशा की ओर प्रेरित कर देती हैं । लेकिन जो अपने जीवन में सच्चा होता है और जिसका संग उत्तम होता है उसके डगमगाते कदम को रोकने वाले संयोग आ ही जाते हैं । '
बीजापुर के नवांब आदिलशाह ने एक जाति द्रोही ' बाजी घोर पाण्डे ' की मदद से छत्रपति शिवाजी के पिता शाहजी को बन्दी बना लिया । बाजी घोर पाण्डे ने एक प्रीति भोज में निमंत्रित कर छल से उन्हें एक छोटी सी कोठरी में बंद कर दिया और उसका द्वार ईंटों से चुनवा कर थोड़ी सी सांस लेने की जगह रहने दी । फिर उसने शाहजी को विवश किया कि वे पत्र लिखकर शिवाजी को यहाँ आने के लिए मजबूर करें ।
शाहजी ने विवश होकर सारी स्थिति शिवाजी को लिख भेजी । शिवाजी भयानक विचार संकट में पड़ गये --- यदि वे पिता की रक्षा के लिए बीजापुर दरबार में आत्म - समर्पण करते हैं तो इससे न केवल उनके यश को कलंक लगेगा बल्कि देश - धर्म की रक्षा के बोये अंकुर नष्ट हो जायेंगे ।
गहनतम मानसिक उलझन के बाद पिता के प्रति पुत्र का मोह विजयी हुआ । उन्होंने बीजापुर जाकर आदिलशाह से सन्धि करने का विचार बनाया ।
शिवाजी की पत्नी को उनके इस विचार का पता लगा । उन्होंने अवसर पाकर इस दुविधा के अंधकार में प्रकाश दिया । ----
उन्होंने कहा ---- मेरी आत्मा कहती है बीजापुर जाने में कल्याण नहीं है । आदिलशाह पिताजी को तो नहीं छोड़ेगा साथ ही आप पर भी संकट लाकर हिन्दू जाति का भविष्य ही नष्ट कर देगा । मेरा विनम्र परामर्श है कि आप इस समय दूरदर्शिता से काम लें और दिल्ली के मुगल बादशाह शाहजहाँ को लिखें कि यदि वह इस समय पिताजी की रक्षा करने में आपकी सहायता करे तो उसके बदले आप उसे दक्षिण के मुस्लिम राज्यों का दमन करने में सहयोग देंगे । मेरा विश्वास है साम्राज्य लिप्सु तथा स्वार्थी मुगल बादशाह आपको अपने पक्ष में लाने के लिए आदिलशाह को पिताजी को मुक्त करने के लिए विवश करेगा ।
शिवाजी को जैसे आधार मिल गया , उन्होंने शाहजहाँ को लिखा । शिवाजी की पत्नी साईबाई का अनुमान ठीक निकला । शाहजहाँ ने शिवाजी और शाहजी का पक्ष पाने के लिए बीजापुर के नवाब आदिलशाह को फरमान भेजकर शाहजी को मुक्त करा दिया ।
सूझ - बुझ और साहस के बल पर ही छत्रपति महाराज शिवाजी उस यवन काल में एक स्वतंत्र हिन्दू शासक और धर्म - रक्षक घोषित किये गये ।
बीजापुर के नवांब आदिलशाह ने एक जाति द्रोही ' बाजी घोर पाण्डे ' की मदद से छत्रपति शिवाजी के पिता शाहजी को बन्दी बना लिया । बाजी घोर पाण्डे ने एक प्रीति भोज में निमंत्रित कर छल से उन्हें एक छोटी सी कोठरी में बंद कर दिया और उसका द्वार ईंटों से चुनवा कर थोड़ी सी सांस लेने की जगह रहने दी । फिर उसने शाहजी को विवश किया कि वे पत्र लिखकर शिवाजी को यहाँ आने के लिए मजबूर करें ।
शाहजी ने विवश होकर सारी स्थिति शिवाजी को लिख भेजी । शिवाजी भयानक विचार संकट में पड़ गये --- यदि वे पिता की रक्षा के लिए बीजापुर दरबार में आत्म - समर्पण करते हैं तो इससे न केवल उनके यश को कलंक लगेगा बल्कि देश - धर्म की रक्षा के बोये अंकुर नष्ट हो जायेंगे ।
गहनतम मानसिक उलझन के बाद पिता के प्रति पुत्र का मोह विजयी हुआ । उन्होंने बीजापुर जाकर आदिलशाह से सन्धि करने का विचार बनाया ।
शिवाजी की पत्नी को उनके इस विचार का पता लगा । उन्होंने अवसर पाकर इस दुविधा के अंधकार में प्रकाश दिया । ----
उन्होंने कहा ---- मेरी आत्मा कहती है बीजापुर जाने में कल्याण नहीं है । आदिलशाह पिताजी को तो नहीं छोड़ेगा साथ ही आप पर भी संकट लाकर हिन्दू जाति का भविष्य ही नष्ट कर देगा । मेरा विनम्र परामर्श है कि आप इस समय दूरदर्शिता से काम लें और दिल्ली के मुगल बादशाह शाहजहाँ को लिखें कि यदि वह इस समय पिताजी की रक्षा करने में आपकी सहायता करे तो उसके बदले आप उसे दक्षिण के मुस्लिम राज्यों का दमन करने में सहयोग देंगे । मेरा विश्वास है साम्राज्य लिप्सु तथा स्वार्थी मुगल बादशाह आपको अपने पक्ष में लाने के लिए आदिलशाह को पिताजी को मुक्त करने के लिए विवश करेगा ।
शिवाजी को जैसे आधार मिल गया , उन्होंने शाहजहाँ को लिखा । शिवाजी की पत्नी साईबाई का अनुमान ठीक निकला । शाहजहाँ ने शिवाजी और शाहजी का पक्ष पाने के लिए बीजापुर के नवाब आदिलशाह को फरमान भेजकर शाहजी को मुक्त करा दिया ।
सूझ - बुझ और साहस के बल पर ही छत्रपति महाराज शिवाजी उस यवन काल में एक स्वतंत्र हिन्दू शासक और धर्म - रक्षक घोषित किये गये ।
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