वाल्टेयर सच्चे ईश्वरवादी थे , वास्तविक धर्म के प्रति उनकी गहरी आस्था थी , लेकिन वह धर्म के नाम पर चल रहे पाखण्ड और अनाचार को सहन नहीं कर सके , उन्होंने उसका जीवन भर विरोध किया ।
वाल्टेयर का जन्म 1694 में पेरिस में हुआ था । उस समय फ़्रांस में लुई चौदहवें का शासन था जो स्वेच्छाचारी और बहुत ही क्रूर शासक था । यथा रजा तथा प्रजा के अनुसार राज कर्मचारी भी बड़े भ्रष्ट थे । वाल्टेयर ने कदम - कदम पर चारों और व्याप्त भ्रष्टता के कटु अनुभव किए, इस विषाक्त वातावरण ने ही उन्हें भ्रष्टाचार और स्वार्थपरता के विरुद्ध कलम उठाने के लिए प्रेरित
किया । वे एक अथक सैनिक थे जो अनवरत रूप से बुराइयों के विरुद्ध लड़ते रहे ।
वाल्टेयर को सर्वाधिक ख्याति उनके लिखे नाटकों से मिली । तत्कालीन राज्य व्यवस्था को लेकर उन्होंने एक व्यंग्य प्रधान नाटक लिखा , यह नाटक जब अभिमंचित हुआ तो राज्य व्यवस्था की कई दूषित परम्पराओं का पर्दाफाश हुआ । उनकी लेखनी ने न केवल धार्मिक वरन राजनैतिक और आर्थिक क्रान्ति के लिए भूमि तैयार की ।
उन्हें फ़्रांस की राज्य क्रान्ति का प्रमुख आधार स्तम्भ भी समझा जाता है तथा उसके लिए सबल वैचारिक पृष्ठभूमि निर्माण करने वाला महामानव माना जाता है ।
उनके लिखे हुए नाटकों को दिखाने पर कानूनी प्रतिबन्ध लगाया गया । उन पर आरोप लगाया गया कि वे जनता को नीति भ्रष्ट करते हैं । उन दिनों फ़्रांस में राज्य शासन या प्रचलित परम्पराओं की आलोचना करना नीति भ्रष्टता मानी जाती थी ।
उन्होंने विचारों के जो बीज बोये उन विचारों का एक तिहाई संसार अनुयायी है । वह विचार हैं ------ प्रजातंत्र , स्वतंत्रता , समानता और भ्रातत्व का ।
वाल्टेयर का जन्म 1694 में पेरिस में हुआ था । उस समय फ़्रांस में लुई चौदहवें का शासन था जो स्वेच्छाचारी और बहुत ही क्रूर शासक था । यथा रजा तथा प्रजा के अनुसार राज कर्मचारी भी बड़े भ्रष्ट थे । वाल्टेयर ने कदम - कदम पर चारों और व्याप्त भ्रष्टता के कटु अनुभव किए, इस विषाक्त वातावरण ने ही उन्हें भ्रष्टाचार और स्वार्थपरता के विरुद्ध कलम उठाने के लिए प्रेरित
किया । वे एक अथक सैनिक थे जो अनवरत रूप से बुराइयों के विरुद्ध लड़ते रहे ।
वाल्टेयर को सर्वाधिक ख्याति उनके लिखे नाटकों से मिली । तत्कालीन राज्य व्यवस्था को लेकर उन्होंने एक व्यंग्य प्रधान नाटक लिखा , यह नाटक जब अभिमंचित हुआ तो राज्य व्यवस्था की कई दूषित परम्पराओं का पर्दाफाश हुआ । उनकी लेखनी ने न केवल धार्मिक वरन राजनैतिक और आर्थिक क्रान्ति के लिए भूमि तैयार की ।
उन्हें फ़्रांस की राज्य क्रान्ति का प्रमुख आधार स्तम्भ भी समझा जाता है तथा उसके लिए सबल वैचारिक पृष्ठभूमि निर्माण करने वाला महामानव माना जाता है ।
उनके लिखे हुए नाटकों को दिखाने पर कानूनी प्रतिबन्ध लगाया गया । उन पर आरोप लगाया गया कि वे जनता को नीति भ्रष्ट करते हैं । उन दिनों फ़्रांस में राज्य शासन या प्रचलित परम्पराओं की आलोचना करना नीति भ्रष्टता मानी जाती थी ।
उन्होंने विचारों के जो बीज बोये उन विचारों का एक तिहाई संसार अनुयायी है । वह विचार हैं ------ प्रजातंत्र , स्वतंत्रता , समानता और भ्रातत्व का ।
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