' महाराष्ट्र के एक निर्धन परिवार में जन्मे राजगुरु का अनोखा व्यक्तित्व यह बताता है कि युग की पुकार सुनकर अपने आपको किसी प्रयोजन विशेष के लिए समर्पित कर देने की स्वाभाविक अंत:प्रेरणा को दबाया न जाये तो हर स्थिति का , हर वर्ग का व्यक्ति श्रेष्ठ पथ का पथिक बन कर गौरवान्वित हो सकता | '
स्वातंत्र्य - यज्ञ में अपना सर्वस्व तन , मन , धन और प्राण आहूत करने वाले अमर शहीदों में राजगुरु का नाम अग्रिम पंक्ति में आता है | सरदार भगतसिंह , सुखदेव और राजगुरु इन तीनो देशभक्तों के प्रति भारतीय जन मानस में जो श्रद्धा व सम्मान की भावना थी उसे देखते हुए भावी जन आक्रोश की कल्पना से अंग्रेज अधिकारी भयभीत थे इसलिए उन्हें निर्धारित समय से बारह घंटे पूर्व ही फांसी दे दी गई , जबकि ब्रिटिश शासन में चोर , डाकू , व हत्यारों को भी रात्रि के समय फांसी नहीं दी जाती थी | किन्तु इन्हें रात्रि में ही फाँसी दी गई ।
राजगुरु ने जीवन के आरम्भ से ही अपना उद्देश्य बना लिया था वह था --- भारत माता को परतंत्रता की कारा से मुक्ति दिलाना । पराधीन , पद दलित व अपमानित रहने की अपेक्षा उन्होंने अन्याय से संघर्ष करना ही अभीष्ट समझा ।
'महान उद्देश्य के साथ बंधकर सामान्य व्यक्ति भी कितना निर्भय और साहसी हो सकता है , वह इसका ज्वलंत उदाहरण हैं । '
स्वातंत्र्य - यज्ञ में अपना सर्वस्व तन , मन , धन और प्राण आहूत करने वाले अमर शहीदों में राजगुरु का नाम अग्रिम पंक्ति में आता है | सरदार भगतसिंह , सुखदेव और राजगुरु इन तीनो देशभक्तों के प्रति भारतीय जन मानस में जो श्रद्धा व सम्मान की भावना थी उसे देखते हुए भावी जन आक्रोश की कल्पना से अंग्रेज अधिकारी भयभीत थे इसलिए उन्हें निर्धारित समय से बारह घंटे पूर्व ही फांसी दे दी गई , जबकि ब्रिटिश शासन में चोर , डाकू , व हत्यारों को भी रात्रि के समय फांसी नहीं दी जाती थी | किन्तु इन्हें रात्रि में ही फाँसी दी गई ।
राजगुरु ने जीवन के आरम्भ से ही अपना उद्देश्य बना लिया था वह था --- भारत माता को परतंत्रता की कारा से मुक्ति दिलाना । पराधीन , पद दलित व अपमानित रहने की अपेक्षा उन्होंने अन्याय से संघर्ष करना ही अभीष्ट समझा ।
'महान उद्देश्य के साथ बंधकर सामान्य व्यक्ति भी कितना निर्भय और साहसी हो सकता है , वह इसका ज्वलंत उदाहरण हैं । '
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