' धनवान अथवा राजा तो अपने देश में ही पूजा जाता है , पर विद्वान् सर्वत्र पूजनीय होता है । '
महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी रचनाओं द्वारा संसार में भारतीय संस्कृति का जो मान बढाया वह भी उनकी एक महत्वपूर्ण सेवा है ।
1912 में उनकी पुस्तक ' गीतांजलि ' का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुआ तो उसके आध्यात्मिक भावों की उच्चता और काव्य सौन्दर्य से लोग इतने प्रभावित हुए कि सैकड़ों लोग उनके दर्शन को आने लगे और जगह - जगह उनके सम्मान में समारोह होने लगे । ' गीतांजलि ' का सारांश एक लेखक के शब्दों में ------ " प्रभु की निकटता पाने के लिए बाह्य जप - तप- योग और वैराग्य की आवश्यकता नहीं है । वह तो ह्रदय में स्पष्ट रूप से बैठा हुआ है और हम प्रत्येक क्षण उसके स्पर्श का अनुभव कर पुलकित हुआ करते हैं । कवि उस ' जीवन देवता ' को संसार में सभी और देखता है । इसी उद्देश्य से सब प्रकार के पापों और कुकर्मों से बचकर रहना चाहता है जिससे उसका शरीर भगवद् - स्पर्श योग्य रह सके । कवि को मृत्यु भी एक शत्रु की तरह नहीं वरण मित्र जान पड़ती है , वह कहता है ---- मृत्यु दयामय जननी है ----- "
साहित्य सामाजिक जाग्रति और सुधार का एक बहुत बड़ा माध्यम है । रवि बबू की समस्त साहित्यिक कृतियाँ चाहे वे कविता हों या उपन्यास , कहानी , निबन्ध आदि वे इसी उद्देश्य से लिखी गईं कि उनसे मनुष्य का मानसिक स्तर उच्च हो और वे निम्न प्रवृतियों को त्यागकर समाज के उपयोगी सदस्य बन सकें ।
महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी रचनाओं द्वारा संसार में भारतीय संस्कृति का जो मान बढाया वह भी उनकी एक महत्वपूर्ण सेवा है ।
1912 में उनकी पुस्तक ' गीतांजलि ' का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुआ तो उसके आध्यात्मिक भावों की उच्चता और काव्य सौन्दर्य से लोग इतने प्रभावित हुए कि सैकड़ों लोग उनके दर्शन को आने लगे और जगह - जगह उनके सम्मान में समारोह होने लगे । ' गीतांजलि ' का सारांश एक लेखक के शब्दों में ------ " प्रभु की निकटता पाने के लिए बाह्य जप - तप- योग और वैराग्य की आवश्यकता नहीं है । वह तो ह्रदय में स्पष्ट रूप से बैठा हुआ है और हम प्रत्येक क्षण उसके स्पर्श का अनुभव कर पुलकित हुआ करते हैं । कवि उस ' जीवन देवता ' को संसार में सभी और देखता है । इसी उद्देश्य से सब प्रकार के पापों और कुकर्मों से बचकर रहना चाहता है जिससे उसका शरीर भगवद् - स्पर्श योग्य रह सके । कवि को मृत्यु भी एक शत्रु की तरह नहीं वरण मित्र जान पड़ती है , वह कहता है ---- मृत्यु दयामय जननी है ----- "
साहित्य सामाजिक जाग्रति और सुधार का एक बहुत बड़ा माध्यम है । रवि बबू की समस्त साहित्यिक कृतियाँ चाहे वे कविता हों या उपन्यास , कहानी , निबन्ध आदि वे इसी उद्देश्य से लिखी गईं कि उनसे मनुष्य का मानसिक स्तर उच्च हो और वे निम्न प्रवृतियों को त्यागकर समाज के उपयोगी सदस्य बन सकें ।
very nice ..
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