' संख्या और साधन नहीं , मनोबल और साहस किसी की विजय का कारण बनते हैं , रणभूमि में भी और जीवन संग्राम में भी । '
शेरखां एक बार अपने मित्रों के साथ आगरा गया , उस समय बाबर हिन्दुस्तान का बादशाह था । आगरा की शासन व्यवस्था तथा मुगलों का रहन - सहन देखकर शेरखां ने अनुमान लगाया कि ये लोग ऐशोआराम में पड़कर निकम्मे हो चुके हैं । ' भोग - विलास में डूबे व्यक्तियों की शक्तियां वैसे ही कुंठित हो जाती हैं । फिर सामान्य सी परिस्थितियां या संघर्ष भी आसानी से उनको बेधने में सफल हो जाती हैं । '
बाबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हुमांयू गद्दी पर बैठा । उस समय तक शेरखां बहुत थोड़े ही सैनिक संगठित कर पाया था । एक ओर हुमांयू की विशाल फौज और बंगाल के बादशाह का लश्कर था तो दूसरी ओर शेरखां के मुट्ठी भर जवान थे । परन्तु अपनी संगठन शक्ति और सूझबूझ का प्रयोग कर शेरखां ने एक - एक राज्य जीतना शुरू कर दिया । दिल्ली पहुँचते - पहुँचते शेरखां की हुमांयू से दो बार टक्कर हुई और अंतिम बार हुमांयू को दिल्ली छोड़कर ईरान भागना पड़ा । और दिल्ली के सिंहासन पर शेरखां, शेरशाह सूरी के नाम से बैठा ।
अपनी सफलता से गर्वोन्नत न होकर उसने तत्काल राज्य व्यवस्था को सुधारने और जनता की सुख - शान्ति बढ़ाने के प्रयत्न आरम्भ कर दिए । उसने सस्ता , शीघ्र और निष्पक्ष न्याय दिलवाने की व्यवस्था की । उसने ऐसी व्यवस्था बनायीं कि कोई कर्मचारी एक स्थान पर अधिक समय टिका न रह सके । स्थानांतरण की यह व्यवस्था तभी से चली आ रही है । फकीरों और भूखों से लेकर यात्रियों तक के लिए उसने आवश्यक प्रबंध किये । पांच वर्ष की अवधि में उसने इतना काम कर दिया जितना लोग पांच वर्ष में भी नहीं कर पाते ।
शेरखां एक बार अपने मित्रों के साथ आगरा गया , उस समय बाबर हिन्दुस्तान का बादशाह था । आगरा की शासन व्यवस्था तथा मुगलों का रहन - सहन देखकर शेरखां ने अनुमान लगाया कि ये लोग ऐशोआराम में पड़कर निकम्मे हो चुके हैं । ' भोग - विलास में डूबे व्यक्तियों की शक्तियां वैसे ही कुंठित हो जाती हैं । फिर सामान्य सी परिस्थितियां या संघर्ष भी आसानी से उनको बेधने में सफल हो जाती हैं । '
बाबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हुमांयू गद्दी पर बैठा । उस समय तक शेरखां बहुत थोड़े ही सैनिक संगठित कर पाया था । एक ओर हुमांयू की विशाल फौज और बंगाल के बादशाह का लश्कर था तो दूसरी ओर शेरखां के मुट्ठी भर जवान थे । परन्तु अपनी संगठन शक्ति और सूझबूझ का प्रयोग कर शेरखां ने एक - एक राज्य जीतना शुरू कर दिया । दिल्ली पहुँचते - पहुँचते शेरखां की हुमांयू से दो बार टक्कर हुई और अंतिम बार हुमांयू को दिल्ली छोड़कर ईरान भागना पड़ा । और दिल्ली के सिंहासन पर शेरखां, शेरशाह सूरी के नाम से बैठा ।
अपनी सफलता से गर्वोन्नत न होकर उसने तत्काल राज्य व्यवस्था को सुधारने और जनता की सुख - शान्ति बढ़ाने के प्रयत्न आरम्भ कर दिए । उसने सस्ता , शीघ्र और निष्पक्ष न्याय दिलवाने की व्यवस्था की । उसने ऐसी व्यवस्था बनायीं कि कोई कर्मचारी एक स्थान पर अधिक समय टिका न रह सके । स्थानांतरण की यह व्यवस्था तभी से चली आ रही है । फकीरों और भूखों से लेकर यात्रियों तक के लिए उसने आवश्यक प्रबंध किये । पांच वर्ष की अवधि में उसने इतना काम कर दिया जितना लोग पांच वर्ष में भी नहीं कर पाते ।
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