लोगों के मन में अन्याय , अत्याचार से जूझने का उत्साह तो होता है किन्तु पहला कदम उठाने में सभी हिचकिचाते हैं । किसी एक ने आगे कदम रखा तो फिर सब चल पड़ते हैं ।
अधिकांश लोग बिगाड़ के भय से ऐसे कुकर्मी का तिरस्कार नहीं कर पाते चाहे मन से उसके प्रति कितनी ही घ्रणा क्यों न हो ।
1819 में हरिसिंह नलवा कश्मीर के सूबेदार बने , उन्होंने वहां के नागरिकों को स्वस्थ व सुन्दर शासन दिया । उनके शासनकाल में किसी की मजाल नहीं थी कि माँ - बहन की ओर बुरी नजर से देख ले । मिचनी के नवाब ने कामांध होकर रास्ते में जाती हुई एक डोली को लूट लिया और उसमे बैठी नव विवाहिता को अपनी वासना की भेंट चढ़ाना चाहते थे । इसकी सूचना हरिसिंह को मिली , उन्होंने नवाब पर आक्रमण कर उसे पकड़ लिया और तोप से उड़ा दिया ।
एक सच्चे क्षत्रिय के रूप में हरिसिंह नलवा ने बलवानों के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया । नलवा चाहता था व्यक्ति अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर अंकुश रखे , पतन की राह पर न चलने दे यदि कोई इस मार्ग पर चल पड़ा है तो प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि अपनी शक्ति - सामर्थ्य बढ़ाकर उसे दण्ड दे ताकि भविष्य में कोई इस प्रकार का दुस्साहस न करे ।
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