दिव्तीय विश्वयुद्ध के समय जब जर्मन सेना ने अचानक आक्रमण कर रूस के एक बड़े भाग पर कब्जा कर लिया और वहां के स्त्री - पुरुषों को घोर कष्ट दिए तब वहां अनेक स्त्रियाँ ऐसी निकलीं जिन्होंने जर्मन सेना के विरुद्ध संघर्ष किया । इनमे ' जोया ' अठारह वर्षीय लड़की का नाम सबसे अधिक प्रसिद्ध है । उसके विषय में एक लेखक ने लिखा है ----- " रुसी इतिहास की ' जोया ' बीसवीं शताब्दी के चित्रपट पर जीवित केंद्र बिंदु है , जिसने अपने देश की भयावह और अन्धकार पूर्ण घडी में मर्दानगी को चुनौती देकर शत्रु के नृशंस प्रहार अपने सुकुमार शरीर पर सहे और आजादी के लिए हँसते - हँसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए । रूसी लड़कियां जोया के द्रष्टान्त से जीवन - पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा प्राप्त करती हैं । "
' जोया ' ने देश के शत्रुओं को नष्ट करने के लिए हर तरह से प्रयत्न किया । वह पहले तो गुरिल्ला फौज में शामिल हो कर जर्मन सेना को तरह - तरह से हानि पहुँचाने की कार्यवाही करती रही , फिर एक दिन जर्मन सेना की छावनी के पास जाकर उसमे आग लगा कर चली आई । जब उसे मालूम हुआ कि उसकी लगाई आग से बहुत थोड़ा नुकसान हुआ तो वह दूसरे दिन फिर आग लगाने चली । उसके साथियों ने उसे रोका भी , आज मत जाओ क्योंकि जर्मन सिपाही सतर्क होंगे , पर वह अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने चल ही दी और आग लगाते हुए पकड़ ली गई । जर्मनों ने गुरिल्ला दल का भेद पूछने के लिए उसे पहले कोड़ों से खूब मारा , अन्य यातनाएं दीं फिर फांसी पर चढ़ा दिया । वह अंत तक अटल रही ।
रुसी पत्रों में सैकड़ों लेख इस किशोरी कन्या के बलिदान पर निकलते हैं , नगर , सड़कें , स्कूल उसके नाम पर खोले जा रहे हैं ।
जोया के जीवन - मृत्यु की अमर गाथा विश्व भर के लिए नवीन चेतना और शक्ति का उद्गम बन गई है ।
' जोया ' ने देश के शत्रुओं को नष्ट करने के लिए हर तरह से प्रयत्न किया । वह पहले तो गुरिल्ला फौज में शामिल हो कर जर्मन सेना को तरह - तरह से हानि पहुँचाने की कार्यवाही करती रही , फिर एक दिन जर्मन सेना की छावनी के पास जाकर उसमे आग लगा कर चली आई । जब उसे मालूम हुआ कि उसकी लगाई आग से बहुत थोड़ा नुकसान हुआ तो वह दूसरे दिन फिर आग लगाने चली । उसके साथियों ने उसे रोका भी , आज मत जाओ क्योंकि जर्मन सिपाही सतर्क होंगे , पर वह अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने चल ही दी और आग लगाते हुए पकड़ ली गई । जर्मनों ने गुरिल्ला दल का भेद पूछने के लिए उसे पहले कोड़ों से खूब मारा , अन्य यातनाएं दीं फिर फांसी पर चढ़ा दिया । वह अंत तक अटल रही ।
रुसी पत्रों में सैकड़ों लेख इस किशोरी कन्या के बलिदान पर निकलते हैं , नगर , सड़कें , स्कूल उसके नाम पर खोले जा रहे हैं ।
जोया के जीवन - मृत्यु की अमर गाथा विश्व भर के लिए नवीन चेतना और शक्ति का उद्गम बन गई है ।
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