महात्मा फ्रांसिस न केवल संत - साधक ही थे बल्कि जन -सेवा , सहानुभूति और करुणा की साकार प्रतिमा भी थे |' कर्तव्य ' के सम्बन्ध में वे कहा करते थे ---- मानव जीवन के सारे छोटे और बड़े , कठोर और कोमल सभी कर्तव्य ईश्वर प्रदत्त होते हैं । इनका नि:स्वार्थ और निष्कलंक पालन , भले ही देखने में आध्यात्मिक प्रकृति का न हो , किन्तु वस्तुत: उसका परिणाम आध्यात्मिक ही होता है सावधानी केवल यह रखनी होती है कि वे कर्तव्य , कर्तव्य ही हैं या उनमे कर्तव्य का भ्रम मात्र है । इसका निर्णय विवेक के आधार पर आसानी से हो जाता है ।
मानव जीवन के लिए विद्दा को इसलिए आवश्यक बताया गया है क्योंकि उसमे पग - पग पर कर्तव्य - अकर्तव्य की परख करने की क्षमता होती है । अन्यथा इस योग्यता के अभाव में मनुष्य और पशु में आकर के अतिरिक्त और कोई विशेष अंतर ही नहीं रह जाता ।
मानव जीवन के लिए विद्दा को इसलिए आवश्यक बताया गया है क्योंकि उसमे पग - पग पर कर्तव्य - अकर्तव्य की परख करने की क्षमता होती है । अन्यथा इस योग्यता के अभाव में मनुष्य और पशु में आकर के अतिरिक्त और कोई विशेष अंतर ही नहीं रह जाता ।
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