शिवाजी के व्यक्तित्व की इतनी चर्चा सुन बीजापुर के नवाब ने उनके पिता शाहजी को आदेश दिया कि वे अपने पुत्र शिवा के साथ दरबार में उपस्थित हों । शिवाजी ने इसे अपनी आत्मा का अपमान समझा और दरबार में जाने से मना कर दिया । तब दूसरे दिन मुरार पन्त शाहजी के घर गए और शिवाजी से कहने लगे ----- " बेटे ! तुम्हे दरबार में चलना ही चाहिए । बादशाह खुश हो जायेगा तो तुम्हे ख़िताब और ओहदा देगा , जागीर देगा । अपने बड़े लाभ के लिए बादशाह को एक बार सलाम कर लेने में क्या हर्ज है । फिर सुख से जीवनयापन करना । "
मुरार पन्त की बात सुनकर किशोर शिव बड़ी देर तक उनका मुंह देखते रहे और सोचते रहे कि ऐसे स्वार्थी लोगों के कारण ही देश और धर्म की यह दशा है । शिवाजी ने कहा --- " बादशाह से चाटुकारिता में पाए जिस पद और जागीर को लाभ बताते हैं उसे मैं भिक्षा से भी अधिक गया - गुजरा समझता हूँ । अपने बाहुबल और सत्कर्मों द्वारा उत्पादित सम्पति को ही मैं वांछनीय मानता हूँ । ये यवन बादशाह हिन्दुओं को इसी प्रकार लालच में डालकर उनकी स्वान वृति जगाते हैं और भाई से भाई का गला कटवाते हैं । यह तो मनुष्य की अपनी कमजोरी और सोचने का ढंग है कि अन्यायियों और अत्याचारियों के तलवे चाटने से ही काम चलता है वैसे इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि संसार में एक से एक बढ़कर स्वाभिमानी तथा सिद्धान्त के धनी व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने सिर दे दिया , जीवन दे दिया पर स्वाभिमान नहीं दिया l "
मुरार पन्त की बात सुनकर किशोर शिव बड़ी देर तक उनका मुंह देखते रहे और सोचते रहे कि ऐसे स्वार्थी लोगों के कारण ही देश और धर्म की यह दशा है । शिवाजी ने कहा --- " बादशाह से चाटुकारिता में पाए जिस पद और जागीर को लाभ बताते हैं उसे मैं भिक्षा से भी अधिक गया - गुजरा समझता हूँ । अपने बाहुबल और सत्कर्मों द्वारा उत्पादित सम्पति को ही मैं वांछनीय मानता हूँ । ये यवन बादशाह हिन्दुओं को इसी प्रकार लालच में डालकर उनकी स्वान वृति जगाते हैं और भाई से भाई का गला कटवाते हैं । यह तो मनुष्य की अपनी कमजोरी और सोचने का ढंग है कि अन्यायियों और अत्याचारियों के तलवे चाटने से ही काम चलता है वैसे इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि संसार में एक से एक बढ़कर स्वाभिमानी तथा सिद्धान्त के धनी व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने सिर दे दिया , जीवन दे दिया पर स्वाभिमान नहीं दिया l "
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