' बुरी परिस्थितियां और कष्ट - कठिनाइयाँ मनुष्य की महानता को अनावृत कर देती हैं | इस मायने में समझदार लोग आपत्तियों को ईश्वरीय वरदान समझकर सहन कर लेते हैं और तपाये हुए कुन्दन की तरह अपना भी व्यक्तित्व निखार लेते हैं l '
सेसार कावेज का जन्म एक गरीब मैक्सिकन ( चिकानी नस्ल ) में हुआ था l 1943 में गोरे लोगों ने चिकानों पर खूब अत्याचार किये l गुलामों से भी गई - गुजरी स्थिति थी l बचपन से ही अत्याचार और अन्याय सहते हुए सेसार कावेज का मनुष्यत्व निखर उठा | उन्होंने अत्याचार व अन्याय का सामना करने के लिए अहिंसक नीति, मानवीय सिद्धांतों को अपनाया |
घाटियों के अंगूर फार्म में कार्य करने वाले मजदूरों के साथ गुलामों से भी बदतर व्यवहार किया जाता था | बहुत परिश्रम करने के बाद भी उन्हें भरपेट भोजन नहीं मिलता था और बुरी दशाओं में काम करना पड़ता था l अत: उन्होंने अंगूर फार्म में काम करने वाले लगभग 50 हजार मजदूरों को संगठित किया | मई 1965 में कावेज ने गुलाब की खेती करने वाले मजदूरों को उचित मजदूरी के लिए संगठित किया और ' असहयोग ' का अस्त्र सम्हाला | चार दिन की हड़ताल में ही मालिकों ने मजदूरों की मांग स्वीकार कर ली |
लेकिन अंगूर श्रमिकों को कड़ा संघर्ष करना पड़ा | 1967 में मजदूरी बढ़वाने के लिए बहिष्कार का सहारा लिया ----- गृहणियों ने अंगूर खरीदना बंद कर दिया , होटलों में अंगूर परोसने से बैरों ने इनकार कर दिया l मजदूरों ने अंगूरों की पेटियां ट्रकों पर लादने और उतारने से लेकर जहाजों पर चढ़ाना तक बंद कर दिया l इस आन्दोलन में कुछ हिंसक घटनाएँ हुईं इसके प्रायश्चित के लिए कावेज और उनके अनुयायिओं ने बड़ी संख्या में उपवास किया और पुन: हिंसा न करने का आश्वासन दिया |, इससे मालिकों का ह्रदय पसीजा और श्रमिकों की मांगें स्वीकार कर ली गईं | इसी उपवास के दौरान उन्हें एक बार बयान देने न्यायालय जाना पड़ा , जिस समय वे बयान दे रहे थे , हजारों श्रमिक बाहर घुटने टेके ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे |
सेसार कावेज सच्चे गाँधीवादी नेता थे , उन्होंने शराब , सिगरेट को कभी छुआ तक नहीं और श्रमिक संगठन कार्यालय में वे सोलह घंटे श्रम करते थे |
सेसार कावेज का जन्म एक गरीब मैक्सिकन ( चिकानी नस्ल ) में हुआ था l 1943 में गोरे लोगों ने चिकानों पर खूब अत्याचार किये l गुलामों से भी गई - गुजरी स्थिति थी l बचपन से ही अत्याचार और अन्याय सहते हुए सेसार कावेज का मनुष्यत्व निखर उठा | उन्होंने अत्याचार व अन्याय का सामना करने के लिए अहिंसक नीति, मानवीय सिद्धांतों को अपनाया |
घाटियों के अंगूर फार्म में कार्य करने वाले मजदूरों के साथ गुलामों से भी बदतर व्यवहार किया जाता था | बहुत परिश्रम करने के बाद भी उन्हें भरपेट भोजन नहीं मिलता था और बुरी दशाओं में काम करना पड़ता था l अत: उन्होंने अंगूर फार्म में काम करने वाले लगभग 50 हजार मजदूरों को संगठित किया | मई 1965 में कावेज ने गुलाब की खेती करने वाले मजदूरों को उचित मजदूरी के लिए संगठित किया और ' असहयोग ' का अस्त्र सम्हाला | चार दिन की हड़ताल में ही मालिकों ने मजदूरों की मांग स्वीकार कर ली |
लेकिन अंगूर श्रमिकों को कड़ा संघर्ष करना पड़ा | 1967 में मजदूरी बढ़वाने के लिए बहिष्कार का सहारा लिया ----- गृहणियों ने अंगूर खरीदना बंद कर दिया , होटलों में अंगूर परोसने से बैरों ने इनकार कर दिया l मजदूरों ने अंगूरों की पेटियां ट्रकों पर लादने और उतारने से लेकर जहाजों पर चढ़ाना तक बंद कर दिया l इस आन्दोलन में कुछ हिंसक घटनाएँ हुईं इसके प्रायश्चित के लिए कावेज और उनके अनुयायिओं ने बड़ी संख्या में उपवास किया और पुन: हिंसा न करने का आश्वासन दिया |, इससे मालिकों का ह्रदय पसीजा और श्रमिकों की मांगें स्वीकार कर ली गईं | इसी उपवास के दौरान उन्हें एक बार बयान देने न्यायालय जाना पड़ा , जिस समय वे बयान दे रहे थे , हजारों श्रमिक बाहर घुटने टेके ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे |
सेसार कावेज सच्चे गाँधीवादी नेता थे , उन्होंने शराब , सिगरेट को कभी छुआ तक नहीं और श्रमिक संगठन कार्यालय में वे सोलह घंटे श्रम करते थे |
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