' प्रकृति ने जीवन पथ पर अगणित कठिनाइयों को पार करने के लिए पुरुष तथा स्त्री को सहयोगी बना कर भेजा है ताकि यह यात्रा दुरूह न हो जाये l यदि साथी को पाकर मंजिल ही भुला दी जाये , चलना ही छोड़ दिया जाये तो इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी ? '
संयोगिता से विवाह के बाद पृथ्वीराज चौहान ने अपनी दुनिया को विलास - कक्ष तक ही समेट लिया था l मोहम्मद गौरी भारत पर आक्रमण के लिए बढ़ता आ रहा था l कन्नौज के राजा जयचंद ने उसे सहायता का वचन देकर निमंत्रित किया था |
पृथ्वीराज के परम मित्र चन्द्र तथा मंत्री उन्हें सूचना देने आये तो परिचारिका ने उन्हें राजाज्ञा बता दी कि ' वे किसी से नहीं मिल सकते l ' अति आवश्यक कार्य बताकर तीन बार पूछा किन्तु निराश होना पड़ा | चौथी बार कवि चन्द स्वयं गए , उन्होंने अपना सन्देश लिखकर भेजा कि
' गौरी आक्रमण के लिए आ रहा है और तुम विलास - कक्ष में हो | ' कवि चन्द का सन्देश पढ़कर भी पृथ्वीराज को चेत नहीं आया , उसने कहलवाया --- कह दो कवि चन्द ही लड़ ले l '
संयोगिता ने अपने पति को प्रश्नवाचक द्रष्टि से देखा और पूछा ---- क्या हुआ ? आप अपने सखा राज कवि चन्द से क्यों नहीं मिलना चाहते ? '
पृथ्वीराज----- " कुछ नहीं , गौरी ने हमारे देश पर आक्रमण किया है l '
संयोगिता ------ " तो फिर आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? '
पृथ्वीराज उसे देखता ही रह गया , उसे पश्चाताप होने लगा --- मैं भी कितना मूर्ख हूँ l विदेशी आक्रमणकारी हमें पद दलित करने आ रहा है , और मैं यहाँ हूँ !
पृथ्वीराज के लिए अब एक क्षण भी विलास - कक्ष में रुकना कठिन हो गया , वह कर्तव्य - पथ पर चल पड़े l
संयोगिता से विवाह के बाद पृथ्वीराज चौहान ने अपनी दुनिया को विलास - कक्ष तक ही समेट लिया था l मोहम्मद गौरी भारत पर आक्रमण के लिए बढ़ता आ रहा था l कन्नौज के राजा जयचंद ने उसे सहायता का वचन देकर निमंत्रित किया था |
पृथ्वीराज के परम मित्र चन्द्र तथा मंत्री उन्हें सूचना देने आये तो परिचारिका ने उन्हें राजाज्ञा बता दी कि ' वे किसी से नहीं मिल सकते l ' अति आवश्यक कार्य बताकर तीन बार पूछा किन्तु निराश होना पड़ा | चौथी बार कवि चन्द स्वयं गए , उन्होंने अपना सन्देश लिखकर भेजा कि
' गौरी आक्रमण के लिए आ रहा है और तुम विलास - कक्ष में हो | ' कवि चन्द का सन्देश पढ़कर भी पृथ्वीराज को चेत नहीं आया , उसने कहलवाया --- कह दो कवि चन्द ही लड़ ले l '
संयोगिता ने अपने पति को प्रश्नवाचक द्रष्टि से देखा और पूछा ---- क्या हुआ ? आप अपने सखा राज कवि चन्द से क्यों नहीं मिलना चाहते ? '
पृथ्वीराज----- " कुछ नहीं , गौरी ने हमारे देश पर आक्रमण किया है l '
संयोगिता ------ " तो फिर आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? '
पृथ्वीराज उसे देखता ही रह गया , उसे पश्चाताप होने लगा --- मैं भी कितना मूर्ख हूँ l विदेशी आक्रमणकारी हमें पद दलित करने आ रहा है , और मैं यहाँ हूँ !
पृथ्वीराज के लिए अब एक क्षण भी विलास - कक्ष में रुकना कठिन हो गया , वह कर्तव्य - पथ पर चल पड़े l
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