' उनका आदर्श देशप्रेम की अग्नि को जन - जन के ह्रदय में प्रज्ज्वलित करना था | '
ऐसेम्बली में बम विस्फोट के बाद वे चाहते तो अपने साथियों सहित बाहर निकल कर भाग सकते थे , इसके लिए प्रबंध भी पहले से ही किया जा चुका था । लेकिन भगतसिंह भागने के लिए नहीं आये थे , उनका उद्देश्य ज लिए उनका बंदी होना नता में राष्ट्रीय भावना उत्पन्न करना था । यह भावना जगाने के लिए उनका बन्दी होना आवश्यक था ताकि न्यायालय के सम्मुख वे अपने मन की बात कह सकें । उनके बन्दी हो जाने से नवजागरण की लहर उठने लगी । जेल में इन देश भक्तों को अमानुषिक यंत्रणा दी गई । राष्ट्र की स्वतंत्रता के आदर्श के सम्मुख यह यंत्रणा नगण्य थी , मनुष्य को दुःख और कष्टों की अनुभूति अपनी भावनाओं से होती है , उन्हें इस यंत्रणा में भी अदभुत सुख मिल रहा था ।
अन्य क्रांतिकारियों ने उन्हें जेल से मुक्त कराने का संकल्प किया लेकिन भगतसिंह ने मना कर दिया , जब उनसे इस मनाही का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा ----
- " हम जिस उद्देश्य को लेकर क्रान्ति के पथ पर आये हैं वह इसकी आज्ञा नहीं देता । हम तो अपना कफन अपने ही सिर पर बाँध कर निकले हैं । महत्ता व्यक्ति की नहीं इस आदर्श की है । हमें ही श्रेय मिले या हमसे ही क्रान्ति होगी -- देश स्वतंत्र होगा यह तो हम लोग नहीं सोचते किन्तु यह कार्य हमें ऐसा ही सिद्ध करेगा । हमारे बलिदान से हमारे आदर्श को बल मिलेगा तो कल इसी जन समुदाय में से सहस्त्रों भगतसिंह पैदा हो जायेंगे तथा भारत स्वाधीन होकर रहेगा क्रांति द्रष्टा भगतसिंह के इन शब्दों में जो सत्य छिपा है उसे काल की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता ।
ऐसेम्बली में बम विस्फोट के बाद वे चाहते तो अपने साथियों सहित बाहर निकल कर भाग सकते थे , इसके लिए प्रबंध भी पहले से ही किया जा चुका था । लेकिन भगतसिंह भागने के लिए नहीं आये थे , उनका उद्देश्य ज लिए उनका बंदी होना नता में राष्ट्रीय भावना उत्पन्न करना था । यह भावना जगाने के लिए उनका बन्दी होना आवश्यक था ताकि न्यायालय के सम्मुख वे अपने मन की बात कह सकें । उनके बन्दी हो जाने से नवजागरण की लहर उठने लगी । जेल में इन देश भक्तों को अमानुषिक यंत्रणा दी गई । राष्ट्र की स्वतंत्रता के आदर्श के सम्मुख यह यंत्रणा नगण्य थी , मनुष्य को दुःख और कष्टों की अनुभूति अपनी भावनाओं से होती है , उन्हें इस यंत्रणा में भी अदभुत सुख मिल रहा था ।
अन्य क्रांतिकारियों ने उन्हें जेल से मुक्त कराने का संकल्प किया लेकिन भगतसिंह ने मना कर दिया , जब उनसे इस मनाही का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा ----
- " हम जिस उद्देश्य को लेकर क्रान्ति के पथ पर आये हैं वह इसकी आज्ञा नहीं देता । हम तो अपना कफन अपने ही सिर पर बाँध कर निकले हैं । महत्ता व्यक्ति की नहीं इस आदर्श की है । हमें ही श्रेय मिले या हमसे ही क्रान्ति होगी -- देश स्वतंत्र होगा यह तो हम लोग नहीं सोचते किन्तु यह कार्य हमें ऐसा ही सिद्ध करेगा । हमारे बलिदान से हमारे आदर्श को बल मिलेगा तो कल इसी जन समुदाय में से सहस्त्रों भगतसिंह पैदा हो जायेंगे तथा भारत स्वाधीन होकर रहेगा क्रांति द्रष्टा भगतसिंह के इन शब्दों में जो सत्य छिपा है उसे काल की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता ।
No comments:
Post a Comment