गणेश शंकर विद्दार्थी हमारे देश के एक तेजोमय रत्न थे l उनका आरम्भिक जीवन बहुत गरीबी में रहा किन्तु मानसिक स्थिति और व्यवहार की द्रष्टि से उन्हें कभी दीन नहीं कहा जा सकता l दूसरों के दुःख को देखकर द्रवित हो उठना विद्दार्थी जी के जीवन का एक अंग था l दुःखी , गरीब , असहाय लोगों का उनके पास बराबर तांता लगा रहता था l वे लोगों के दुःख - दर्द सुनते और उसे दूर करने का प्रयत्न करते l उनका ' प्रताप प्रेस ' सदा ऐसे आर्त और असहायों का सहायक सदन बना रहता था l जिसे कहीं कोई सहारा न मिले उसे ' प्रताप ' में सहारा मिल जाता था |
जब विद्दार्थी जी मैट्रिक में पढ़ते थे तो उसमे ' बुक आफ गोल्डन डीड्स ' नामक पुस्तक पढ़ाई जाती थी l इसमें वर्णित देश सेवा और मानव - सेवा की घटनाओं का उन पर खूब प्रभाव पड़ा और कुछ समय पश्चात् उसके आधार पर ' हमारी आत्मोत्सर्गता ' नामक पुस्तक लिखी जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा ----- " मातृभूमि की सेवा करना , हर मनुष्य का कर्तव्य है l इतिहास का प्रचार देशोद्धार का एक बड़ा उपाय है l प्राचीन कथाओं को सुनकर महाराणा प्रताप स्वतंत्रता देवी के आराधक बने l महाभारत और रामायण की कथाओं ने ही परतन्त्र पिता के पुत्र शिवाजी को महाराष्ट्र का छत्रपति बना दिया l मेरा भी कर्तव्य है कि मातृभूमि की सेवा जहाँ तक बने वहां तक करूँ l "
उन्होंने अपने पत्र ' प्रताप ' का नामकरण मेवाड़ के महाराणा प्रताप के स्वाधीनता के लिए मर मिटने के आदर्श को लक्ष्य रख कर ही किया था l
जब विद्दार्थी जी मैट्रिक में पढ़ते थे तो उसमे ' बुक आफ गोल्डन डीड्स ' नामक पुस्तक पढ़ाई जाती थी l इसमें वर्णित देश सेवा और मानव - सेवा की घटनाओं का उन पर खूब प्रभाव पड़ा और कुछ समय पश्चात् उसके आधार पर ' हमारी आत्मोत्सर्गता ' नामक पुस्तक लिखी जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा ----- " मातृभूमि की सेवा करना , हर मनुष्य का कर्तव्य है l इतिहास का प्रचार देशोद्धार का एक बड़ा उपाय है l प्राचीन कथाओं को सुनकर महाराणा प्रताप स्वतंत्रता देवी के आराधक बने l महाभारत और रामायण की कथाओं ने ही परतन्त्र पिता के पुत्र शिवाजी को महाराष्ट्र का छत्रपति बना दिया l मेरा भी कर्तव्य है कि मातृभूमि की सेवा जहाँ तक बने वहां तक करूँ l "
उन्होंने अपने पत्र ' प्रताप ' का नामकरण मेवाड़ के महाराणा प्रताप के स्वाधीनता के लिए मर मिटने के आदर्श को लक्ष्य रख कर ही किया था l
No comments:
Post a Comment