गोवा मुक्ति हेतु प्रयास करने में वीर मोहन रानाडे ने जिस वीरता , त्याग और कर्तव्य पालन का परिचय दिया यह प्रेरक और गौरवमय है l भारत तो स्वतंत्र हो गया था किन्तु गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार था l
गोवा मुक्ति के प्रयास में एक बार वहां की पुर्तगाली सरकार ने मोहन रानाडे को बन्दी बना लिया और सैनिक अदालत ने उन्हें 26 वर्ष का कठोर दंड सुनाया l किन्तु इससे वीर मोहन रानाडे तनिक भी भयभीत नहीं हुए l उनकी आत्म विश्वास पूर्ण मुस्कराहट कह रही थी ---' इस संसार में असुरता कभी भी स्थिर होकर नहीं रह सकी है , तुम समाप्त हो जाओगे और मैं इसी प्रकार हँसता - मुस्कराता रहूँगा l '
अधिकारियों ने रानाडे को पुर्तगाल की सबसे ख़राब जेल भेज दिया जहाँ कैदियों की निर्धारित संख्या से दुगुने - तिगुने कैदी भरे थे l निकृष्ट भोजन था और डाक्टरी सुविधा भी नहीं के बराबर थी किन्तु रानाडे ने स्थिति के प्रति कभी कोई खीज प्रकट नहीं की l उनका आत्मविश्वास और द्रढ़ता पूर्ववत थी | ' उत्कृष्ट व्यक्तित्व अपने आप में पूरा होता है l उत्कृष्ट व्यक्तित्व का धनी व्यक्ति जहाँ भी रहता है , सम्मानित और प्रिय बनकर रहता है l '
रानाडे बंदियों के साथ सहयोग व सहानुभूति रखते , थोड़े ही दिनों में बन्दी उनके साथ घुलमिल गए l परस्पर प्रेम से रहने से जेल यंत्रणा उन्हें फीकी लगने लगीं l अधिकारियों ने रानाडे को कष्ट देने के लिए इतनी कष्टपूर्ण जेल में रखा था किन्तु रानाडे को इतनी शान्ति और प्रेम से कैदियों के साथ रहते देख वे जल - भुन गए अब रानाडे के साथ कैदियों पर भी उनका क्रोध बरसने लगा l
वीर मोहन रानाडे 13 वर्ष तक पुर्तगालियों के राक्षसी शिकंजे में रहे , उनके आत्मविश्वास के आगे पुर्तगाली सैद्धांतिक रूप से हार चुके थे l 1962 में गोवा आजाद हुआ तब वे अपने एक अन्य साथी मास्कर हंस को पुर्तगाली कैद से मुक्त करा कर भारत आये l उन्होंने अपने कष्टों की तुलना में कर्तव्य पालन को महत्व देकर अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित की l
गोवा मुक्ति के प्रयास में एक बार वहां की पुर्तगाली सरकार ने मोहन रानाडे को बन्दी बना लिया और सैनिक अदालत ने उन्हें 26 वर्ष का कठोर दंड सुनाया l किन्तु इससे वीर मोहन रानाडे तनिक भी भयभीत नहीं हुए l उनकी आत्म विश्वास पूर्ण मुस्कराहट कह रही थी ---' इस संसार में असुरता कभी भी स्थिर होकर नहीं रह सकी है , तुम समाप्त हो जाओगे और मैं इसी प्रकार हँसता - मुस्कराता रहूँगा l '
अधिकारियों ने रानाडे को पुर्तगाल की सबसे ख़राब जेल भेज दिया जहाँ कैदियों की निर्धारित संख्या से दुगुने - तिगुने कैदी भरे थे l निकृष्ट भोजन था और डाक्टरी सुविधा भी नहीं के बराबर थी किन्तु रानाडे ने स्थिति के प्रति कभी कोई खीज प्रकट नहीं की l उनका आत्मविश्वास और द्रढ़ता पूर्ववत थी | ' उत्कृष्ट व्यक्तित्व अपने आप में पूरा होता है l उत्कृष्ट व्यक्तित्व का धनी व्यक्ति जहाँ भी रहता है , सम्मानित और प्रिय बनकर रहता है l '
रानाडे बंदियों के साथ सहयोग व सहानुभूति रखते , थोड़े ही दिनों में बन्दी उनके साथ घुलमिल गए l परस्पर प्रेम से रहने से जेल यंत्रणा उन्हें फीकी लगने लगीं l अधिकारियों ने रानाडे को कष्ट देने के लिए इतनी कष्टपूर्ण जेल में रखा था किन्तु रानाडे को इतनी शान्ति और प्रेम से कैदियों के साथ रहते देख वे जल - भुन गए अब रानाडे के साथ कैदियों पर भी उनका क्रोध बरसने लगा l
वीर मोहन रानाडे 13 वर्ष तक पुर्तगालियों के राक्षसी शिकंजे में रहे , उनके आत्मविश्वास के आगे पुर्तगाली सैद्धांतिक रूप से हार चुके थे l 1962 में गोवा आजाद हुआ तब वे अपने एक अन्य साथी मास्कर हंस को पुर्तगाली कैद से मुक्त करा कर भारत आये l उन्होंने अपने कष्टों की तुलना में कर्तव्य पालन को महत्व देकर अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित की l
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