' धर्म और अध्यात्म के बल पर जीवन का विकास कितना सहज हो जाता है ---- श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ने स्वयं को इसके एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया l '
अध्यात्मवाद , कर्तव्य विमुख होने का उपदेश नहीं देता वरन अपने कर्तव्य को पूरी तन्मयता से पूरा करने की प्रेरणा देता है l गीता में भगवान कृष्ण ने कर्म की कुशलता को ही योग माना और हनुमान प्रसाद पोद्दार ( भाई जी ) ने स्वयं के माध्यम से इस योग की अनुपम विवेचना की l
गृहस्थ जीवन के प्रति निष्ठावान और समाज की बहु प्रचलित जीवन पद्धति के अनुकूल रहकर ही सच्ची लोकसेवा की जा सकती है l
राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला और उन्हें कारावास भेज दिया गया | जेल के यातनापूर्ण जीवन में भी उनका उपासना क्रम नियमित रहा और जेल के एकांत में उनकी वृतियां अन्तर्मुखी हुईं l
राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के साथ उन्होंने समाज सुधार और ' कल्याण ' के माध्यम से लोकसेवा की l इसके साथ ही आभाव ग्रस्त और प्राकृतिक प्रकोपों के शिकार लोगों की सहायता के लिए उन्होंने जो कुछ किया उससे उनकी महानता और भी निखर उठती है l 1925 में बिहार में भूकम्प आया l भाईजी ने सेवा समिति का गठन किया और स्वयं दिन - रात सेवा - सहायता कार्य में लगकर उन्होंने हजारों लोगों के आंसू पोंछे l इसी वर्ष गोरखपुर में भीषण बाढ़ आई , यहाँ भी वे सहयोगियों के साथ सेवा के लिए पहुँच गए l इसी प्रकार राजस्थान और बंगाल में अकाल पड़े और 1942 में युद्ध के समय भाग कर आये यात्रियों आदि की सेवा की l
' भगवत्प्रेम का प्रकट रूप लोकसेवा ही है l भाई जी का व्यक्तित्व और कृतित्व इस आदर्श का अनुपम उदाहरण है l
अध्यात्मवाद , कर्तव्य विमुख होने का उपदेश नहीं देता वरन अपने कर्तव्य को पूरी तन्मयता से पूरा करने की प्रेरणा देता है l गीता में भगवान कृष्ण ने कर्म की कुशलता को ही योग माना और हनुमान प्रसाद पोद्दार ( भाई जी ) ने स्वयं के माध्यम से इस योग की अनुपम विवेचना की l
गृहस्थ जीवन के प्रति निष्ठावान और समाज की बहु प्रचलित जीवन पद्धति के अनुकूल रहकर ही सच्ची लोकसेवा की जा सकती है l
राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला और उन्हें कारावास भेज दिया गया | जेल के यातनापूर्ण जीवन में भी उनका उपासना क्रम नियमित रहा और जेल के एकांत में उनकी वृतियां अन्तर्मुखी हुईं l
राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के साथ उन्होंने समाज सुधार और ' कल्याण ' के माध्यम से लोकसेवा की l इसके साथ ही आभाव ग्रस्त और प्राकृतिक प्रकोपों के शिकार लोगों की सहायता के लिए उन्होंने जो कुछ किया उससे उनकी महानता और भी निखर उठती है l 1925 में बिहार में भूकम्प आया l भाईजी ने सेवा समिति का गठन किया और स्वयं दिन - रात सेवा - सहायता कार्य में लगकर उन्होंने हजारों लोगों के आंसू पोंछे l इसी वर्ष गोरखपुर में भीषण बाढ़ आई , यहाँ भी वे सहयोगियों के साथ सेवा के लिए पहुँच गए l इसी प्रकार राजस्थान और बंगाल में अकाल पड़े और 1942 में युद्ध के समय भाग कर आये यात्रियों आदि की सेवा की l
' भगवत्प्रेम का प्रकट रूप लोकसेवा ही है l भाई जी का व्यक्तित्व और कृतित्व इस आदर्श का अनुपम उदाहरण है l
No comments:
Post a Comment