श्री एंड्रयूज कहा करते थे ---- " बुराइयाँ हैं , आदमी और समाज बुरा है , इसका रोना - रोने कि जगह यदि उनको परिवर्तित करने , नए ढंग से गढ़ने , नया रूप देने के प्रयत्न में जुट पड़ा जाये तो एक बस्ती हो क्यों पूरे समाज का कायाकल्प संभव है l '
सी. एफ. एंड्र्यज ने केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद समाज - सेवा को अपना कार्य क्षेत्र चुना और लन्दन के ' वालवर्थ ' नामक कसबे में रहने गए l इस कस्बे के निवासियों का जीवन पतित था l चोरी , जेबकटी से अपनी रोटी -रोजी चलाते थे l शराब , जुआघर आदि के कारण बस्ती बदनाम थी l इस शिक्षित युवक एंड्र्यज को वे आश्चर्य से देख रहे थे , बस्ती के लोग उन पर हँसते , मजाक उड़ाते l श्री एंड्र्यज ने उनके बच्चों को शिक्षा व सुसंस्कार देना और माताओं को स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी देने का क्रम शुरू किया l धीरे - धीरे बस्ती के निवासियों का उन पर विश्वास बढ़ता गया कि कोई है जो उनके बच्चों के कल्याण का ध्यान रखता है l श्री एंड्रयूज लोगों को चरित्र - निष्ठा की गरिमा समझाते और कहते कि रविवासरीय कक्षा में अवश्य आयें , सप्ताह में कम से कम रविवार को गलत काम न करें l
एक दिन बस्ती के युवकों ने श्री एंड्रयूज के साथ तीन -चार दिन का पिकनिक का कार्यक्रम बनाया यह तय किया गया कि इन तीन - चार दिनों में कोई चोरी , बदमाशी नहीं करेगा l उन लोगों की जिन्दगी में यह पहला अवसर था जब चार दिन बिना अपराध के कटे l
इसके बाद परिवर्तन शुरू हो गया l अपराध कि जगह लोगों ने श्रम को अपनाया l कुछ सेना में भरती हुए कुछ मिलों में l धीरे - धीरे पूरी बस्ती का कायाकल्प हो गया l
' एक व्यक्ति के प्रभावकारी व्यक्तित्व ने यह प्रमाणित कर दिया कि ---- ' प्रभावकारी व्यक्तित्व से एक बस्ती तो क्या पुरे समाज का कायाकल्प संभव है l '
सी. एफ. एंड्र्यज ने केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद समाज - सेवा को अपना कार्य क्षेत्र चुना और लन्दन के ' वालवर्थ ' नामक कसबे में रहने गए l इस कस्बे के निवासियों का जीवन पतित था l चोरी , जेबकटी से अपनी रोटी -रोजी चलाते थे l शराब , जुआघर आदि के कारण बस्ती बदनाम थी l इस शिक्षित युवक एंड्र्यज को वे आश्चर्य से देख रहे थे , बस्ती के लोग उन पर हँसते , मजाक उड़ाते l श्री एंड्र्यज ने उनके बच्चों को शिक्षा व सुसंस्कार देना और माताओं को स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी देने का क्रम शुरू किया l धीरे - धीरे बस्ती के निवासियों का उन पर विश्वास बढ़ता गया कि कोई है जो उनके बच्चों के कल्याण का ध्यान रखता है l श्री एंड्रयूज लोगों को चरित्र - निष्ठा की गरिमा समझाते और कहते कि रविवासरीय कक्षा में अवश्य आयें , सप्ताह में कम से कम रविवार को गलत काम न करें l
एक दिन बस्ती के युवकों ने श्री एंड्रयूज के साथ तीन -चार दिन का पिकनिक का कार्यक्रम बनाया यह तय किया गया कि इन तीन - चार दिनों में कोई चोरी , बदमाशी नहीं करेगा l उन लोगों की जिन्दगी में यह पहला अवसर था जब चार दिन बिना अपराध के कटे l
इसके बाद परिवर्तन शुरू हो गया l अपराध कि जगह लोगों ने श्रम को अपनाया l कुछ सेना में भरती हुए कुछ मिलों में l धीरे - धीरे पूरी बस्ती का कायाकल्प हो गया l
' एक व्यक्ति के प्रभावकारी व्यक्तित्व ने यह प्रमाणित कर दिया कि ---- ' प्रभावकारी व्यक्तित्व से एक बस्ती तो क्या पुरे समाज का कायाकल्प संभव है l '
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