अहंकार व्यक्ति के अन्दर तब उत्पन्न होता है , जब वह स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगता है और यह मानने लगता है कि दुनिया उसके इशारों पर चल रही है l अहंकारी व्यक्ति को स्वयं पर इतना घमंड हो जाता है कि वह स्वयं को दुनिया से अलग , सबसे विशिष्ट व्यक्ति समझने लगता है l अपने इस अहंकार के कारण वह दूसरों से अच्छा व्यवहार नहीं करता , उन पर अधिकार जमाना चाहता है अहंकार व्यक्ति को किस दिशा में ले जाता है , इस सम्बन्ध में एक सच्ची घटना है -------
दक्षिण में मोरोजी पन्त नामक एक बहुत बड़े विद्वान थे l उनको अपनी विद्दा का बहुत अभिमान था और सबको नीचा दिखाते रहते थे l एक दिन कि बात है वे दोपहर के समय अपने घर से स्नान करने के लिए नदी पर जा रहे थे l मार्ग में एक पेड़ पर दो ब्रह्म राक्षस बैठे थे वे आपस में बात कर रहे थे l एक ब्रह्म राक्षस बोला --- " हम दोनों तो इस पेड़ की दो डालियों पर बैठे हैं , पर यह तीसरी डाली खाली है , इस पर बैठने के लिए कौन आएगा ? " तो दूसरा ब्रह्म राक्षस बोला ---- " यह जो नीचे से जा रहा है न , वह यहाँ आकर बैठेगा , क्योंकि इसको अपनी विद्वता का बहुत अभिमान है l " उन दोनों के संवाद को मोरोजी पन्त ने सुना तो वे वहीँ रुक गए और सोचने लगे कि विद्दा के अभिमान के कारण मुझे प्रेतयोनि में जाना पड़ेगा , अपनी होने वाली इस दुर्गति से वे घबरा गए और मन ही मन संत ज्ञानेश्वर के प्रति शरणागत होकर बोले -- " मैं आपकी शरण में हूँ , आपके सिवाय मुझे बचाने वाला कोई नहीं है l " ऐसा सोचते हुए वह आलंदी की तरफ चल पड़े l आलंदी में संत ज्ञानेश्वर ने समाधि ली थी l संत की शरण में जाने से उनका अभिमान नष्ट हो गया और संत कृपा से वे भी एक संत बन गए l
दक्षिण में मोरोजी पन्त नामक एक बहुत बड़े विद्वान थे l उनको अपनी विद्दा का बहुत अभिमान था और सबको नीचा दिखाते रहते थे l एक दिन कि बात है वे दोपहर के समय अपने घर से स्नान करने के लिए नदी पर जा रहे थे l मार्ग में एक पेड़ पर दो ब्रह्म राक्षस बैठे थे वे आपस में बात कर रहे थे l एक ब्रह्म राक्षस बोला --- " हम दोनों तो इस पेड़ की दो डालियों पर बैठे हैं , पर यह तीसरी डाली खाली है , इस पर बैठने के लिए कौन आएगा ? " तो दूसरा ब्रह्म राक्षस बोला ---- " यह जो नीचे से जा रहा है न , वह यहाँ आकर बैठेगा , क्योंकि इसको अपनी विद्वता का बहुत अभिमान है l " उन दोनों के संवाद को मोरोजी पन्त ने सुना तो वे वहीँ रुक गए और सोचने लगे कि विद्दा के अभिमान के कारण मुझे प्रेतयोनि में जाना पड़ेगा , अपनी होने वाली इस दुर्गति से वे घबरा गए और मन ही मन संत ज्ञानेश्वर के प्रति शरणागत होकर बोले -- " मैं आपकी शरण में हूँ , आपके सिवाय मुझे बचाने वाला कोई नहीं है l " ऐसा सोचते हुए वह आलंदी की तरफ चल पड़े l आलंदी में संत ज्ञानेश्वर ने समाधि ली थी l संत की शरण में जाने से उनका अभिमान नष्ट हो गया और संत कृपा से वे भी एक संत बन गए l
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