प्रसिद्ध मानवतावादी विचारक रोमारोलां ने लिखा है ---- " लेनिन वर्तमान शताब्दी का सबसे बड़ा कर्मठ और स्वार्थत्यागी व्यक्ति था l उसने आजीवन घोर परिश्रम किया पर अपने लिए कभी किसी प्रकार के लाभ की इच्छा नहीं की l "
उस समय रूस पर जार का निरंकुश शासन था l लेनिन के प्रचार कार्य से शोषण और अन्याय के प्रति मजदूरों में असंतोष भड़क उठा हड़ताल , प्रदर्शन आदि होने लगे और सरकार इनको सीधी तरह नहीं रोक सकी , तब जार के सलाहकारों ने उसे सलाह दी कि श्रमजीवियों और गरीबों को धर्म के नाम पर भड़का कर यहूदियों से लड़वा देना चाहिए l इससे उनका ध्यान शासन और सरकारी नियमों की बुराइयों की तरफ से हट जायेगा और उधर यहूदियों का भी सफाया हो जायेगा l जार के ये सलाहकार कितने निरंकुश और अत्याचारी थे इसका नमूना जार के प्रधान मित्र जनरल ट्रयोन के भाषण के एक अंश से जाना जा सकता है ------ " वे आन्दोलन कि बात करते हैं , उनको गोली से उड़ा दो l उनमे थोड़े से पुलिस के भेड़ियों को नकली क्रन्तिकारी बनाकर शामिल कर दो और वे तुरंत ही -- तुम्हारे जाल में फंस जायेंगे l " इस योजना के अनुसार निरंकुश शासक के कार्यकर्ता ईसाइयों के धर्म चिन्ह उठाकर , घंटा बजाते हुए जुलूस बनाकर निकलते और गरीब यहूदियों के घरों में घुसकर उनके तमाम कुटुम्ब की हत्या कर डालते , जो कुछ मिलता उसे लूट लेते l दूध पीते बच्चे और स्त्रियाँ भी उनके हाथों से नहीं बच सकती थीं l यद्दपि ये सरकारी नौकर नहीं थे तो भी जार उनकी प्रशंसा करता था और उन्हें राजभक्त बतलाता था l
रुसी क्रांति को लेनिन ने किस प्रकार अपना सर्वस्व होम कर खड़ा किया और कार्यरूप में परिणित हो जाने पर किस प्रकार प्राणों की बाजी लगाकर उसकी रक्षा की ----- यह रुसी इतिहास की अमर गाथा है l शासन सत्ता ग्रहण करने के कुछ ही दिन बाद जब जर्मन सेना के आक्रमण से रूस की रक्षा की समस्या उपस्थित हुई , उस समय अन्य नेता तो जर्मनी से सन्धि कर के अपनी पराजय स्वीकार करने को बहुत बुरा बतलाते थे , पर लेनिन ने कहा --- हमारी क्रान्ति जीवित रहेगी तो हम इस वर्तमान हानि का बदला आगे चलकर चुका लेंगे l पर यदि इस समय हम बिना तैयारी के शत्रु से भिड़ गए तो फिर रक्षा का कोई उपाय नहीं है l इसके लिए लेनिन ने अपने सिर पर जिम्मेदारी ली , रुसी साम्राज्य का कुछ हिस्सा जो जर्मनी कि सीमा से लगा था उसको दे दिया और जर्मनी के खतरे से बचने के लिए अपनी राजधानी पैट्रगार्ड से मास्को ले गए l इस कारण बहुत से साथी उनके विरोधी बन गए , पर अंत में लेनिन की सच्चाई और उचित निर्णय के लिए सबको उसके सामने नतमस्तक होना पड़ा l
कई पूंजीवादी नेताओं ने भी लेनिन के असाधारण गुणों की चर्चा करते हुए कहा है ----- " यद्दपि लेनिन का मार्ग हमसे भिन्न था तो भी इसमें संदेह नहीं कि उसकी राजनीतिज्ञता , दृढ़ निश्चय , और अगाध ज्ञान की तुलना मिल सकना कठिन है l "
उस समय रूस पर जार का निरंकुश शासन था l लेनिन के प्रचार कार्य से शोषण और अन्याय के प्रति मजदूरों में असंतोष भड़क उठा हड़ताल , प्रदर्शन आदि होने लगे और सरकार इनको सीधी तरह नहीं रोक सकी , तब जार के सलाहकारों ने उसे सलाह दी कि श्रमजीवियों और गरीबों को धर्म के नाम पर भड़का कर यहूदियों से लड़वा देना चाहिए l इससे उनका ध्यान शासन और सरकारी नियमों की बुराइयों की तरफ से हट जायेगा और उधर यहूदियों का भी सफाया हो जायेगा l जार के ये सलाहकार कितने निरंकुश और अत्याचारी थे इसका नमूना जार के प्रधान मित्र जनरल ट्रयोन के भाषण के एक अंश से जाना जा सकता है ------ " वे आन्दोलन कि बात करते हैं , उनको गोली से उड़ा दो l उनमे थोड़े से पुलिस के भेड़ियों को नकली क्रन्तिकारी बनाकर शामिल कर दो और वे तुरंत ही -- तुम्हारे जाल में फंस जायेंगे l " इस योजना के अनुसार निरंकुश शासक के कार्यकर्ता ईसाइयों के धर्म चिन्ह उठाकर , घंटा बजाते हुए जुलूस बनाकर निकलते और गरीब यहूदियों के घरों में घुसकर उनके तमाम कुटुम्ब की हत्या कर डालते , जो कुछ मिलता उसे लूट लेते l दूध पीते बच्चे और स्त्रियाँ भी उनके हाथों से नहीं बच सकती थीं l यद्दपि ये सरकारी नौकर नहीं थे तो भी जार उनकी प्रशंसा करता था और उन्हें राजभक्त बतलाता था l
रुसी क्रांति को लेनिन ने किस प्रकार अपना सर्वस्व होम कर खड़ा किया और कार्यरूप में परिणित हो जाने पर किस प्रकार प्राणों की बाजी लगाकर उसकी रक्षा की ----- यह रुसी इतिहास की अमर गाथा है l शासन सत्ता ग्रहण करने के कुछ ही दिन बाद जब जर्मन सेना के आक्रमण से रूस की रक्षा की समस्या उपस्थित हुई , उस समय अन्य नेता तो जर्मनी से सन्धि कर के अपनी पराजय स्वीकार करने को बहुत बुरा बतलाते थे , पर लेनिन ने कहा --- हमारी क्रान्ति जीवित रहेगी तो हम इस वर्तमान हानि का बदला आगे चलकर चुका लेंगे l पर यदि इस समय हम बिना तैयारी के शत्रु से भिड़ गए तो फिर रक्षा का कोई उपाय नहीं है l इसके लिए लेनिन ने अपने सिर पर जिम्मेदारी ली , रुसी साम्राज्य का कुछ हिस्सा जो जर्मनी कि सीमा से लगा था उसको दे दिया और जर्मनी के खतरे से बचने के लिए अपनी राजधानी पैट्रगार्ड से मास्को ले गए l इस कारण बहुत से साथी उनके विरोधी बन गए , पर अंत में लेनिन की सच्चाई और उचित निर्णय के लिए सबको उसके सामने नतमस्तक होना पड़ा l
कई पूंजीवादी नेताओं ने भी लेनिन के असाधारण गुणों की चर्चा करते हुए कहा है ----- " यद्दपि लेनिन का मार्ग हमसे भिन्न था तो भी इसमें संदेह नहीं कि उसकी राजनीतिज्ञता , दृढ़ निश्चय , और अगाध ज्ञान की तुलना मिल सकना कठिन है l "
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