जिस समय बंकिम बाबू ( जन्म 1838 ) सरकारी नौकरी में प्रविष्ट हुए , उन दिनों बंग्ला भाषा की दशा बहुत दयनीय थी l उस समय उन्होंने महसूस किया कि अपनी शक्ति का उपयोग मातृभाषा को उन्नत बनाने के लिए कर के उसे सभ्य भाषाओं कि पंक्ति में खड़े होने योग्य बनाया जाये l
वे अपना समस्त निजी कार्य बंग्ला में ही करने लगे l बंगाल के विद्वान और देशभक्त श्री रमेश चन्द्र दत्त को वे ही बंग - साहित्य की सेवा में लाये l
साहित्य प्रचार और नए लेखकों को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने ' बंग दर्शन मासिक पत्रिका प्रकाशित करना शुरू किया l उनका पहला उपन्यास था ' दुर्गेशनंदिनी ' और दूसरा था ' कपाल कुण्डला ' l जिस उपन्यास के कारण उनका नाम देशभक्तों में अमर हो गया , वह है ---- 'आनंदमठ ' इसी में सबसे पहले ' वंदेमातरम् ' शब्द और उसका गीत लिखा गया l
वे अपना समस्त निजी कार्य बंग्ला में ही करने लगे l बंगाल के विद्वान और देशभक्त श्री रमेश चन्द्र दत्त को वे ही बंग - साहित्य की सेवा में लाये l
साहित्य प्रचार और नए लेखकों को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने ' बंग दर्शन मासिक पत्रिका प्रकाशित करना शुरू किया l उनका पहला उपन्यास था ' दुर्गेशनंदिनी ' और दूसरा था ' कपाल कुण्डला ' l जिस उपन्यास के कारण उनका नाम देशभक्तों में अमर हो गया , वह है ---- 'आनंदमठ ' इसी में सबसे पहले ' वंदेमातरम् ' शब्द और उसका गीत लिखा गया l
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