' नित्यप्रति हजारों मनुष्य तरह - तरह से अकाल मृत्यु के मुँह में चले जाते हैं , पर जो भगतसिंह की तरह दूसरों के लिए जीवन अर्पण कर देते हैं वही इस नश्वर जगत में अमर हो जाते हैं l ' ऐसे निर्भीक और कर्तव्यपरायण युवकों पर भारतमाता जितना गर्व करे कम है l
उन्होंने जीवन के अन्तिम समय तक अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया l `
असेम्बली बम केस में अपने कार्य का औचित्य सिद्ध करते हुए उन्होंने कहा था --- ' क्रान्ति का वास्तविक मार्ग मेहनत पेशा लोगों को जागृत तथा संगठित करना है l थोड़े से युवक आतंकवादी कार्य कर के इस महान उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकते l यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमको बमों और पिस्तौलों से लाभ नहीं होगा l ' ------
उन्होंने कहा ---- " समाज में सभी के लिए अनाज पैदा करने वाले किसानों के परिवार भूखों मरते हैं , सारे संसार को सूत जुटाने वाला बुनकर अपना और अपने बच्चों का तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ा नहीं पाता है , शानदार महल खड़ा करने वाले लुहार , बढ़ई, कारीगर झोंपड़ी में ही बसर करते और मर जाते हैं और दूसरी तरफ पूंजीपति , शोषक अपनी सनक पर करोड़ों रुपया बहा देते हैं l l समाज में एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना की जाये जिसमे मजदूर वर्ग के प्रभुत्व को मान्यता दी जाये जिसके फलस्वरूप पूंजीवाद के बन्धनों , दुःखों तथा युद्धों से मानवता का उद्धार हो सके l "
' मृत्यु ' मानवमात्र को आतंकित कर देती है लेकिन भगतसिंह को अंतिम क्षण तक मृत्यु की भयंकरता का तनिक भी भय नहीं हुआ l मृत्यु के दिन उनने अपने भाई को पत्र में यह अमर वाक्य लिखे थे ----- " एक दीपक की लौ की तरह मैं सुबह होने से पहले ही खत्म हो जाऊंगा l यह मुट्ठी भर खाक अगर नष्ट हो जाये तो इससे क्या हानि होगी ? "
भगतसिंह का आत्मबलिदान इतना प्रभावशाली सिद्ध हुआ कि सर्वत्र उनका नाम गूंजने लगा l महात्मा गाँधी ने कहा --- " हमारे मस्तक भगतसिंह की बहादुरी और बलिदान के समक्ष झुक जाते हैं l "
उन्होंने जीवन के अन्तिम समय तक अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया l `
असेम्बली बम केस में अपने कार्य का औचित्य सिद्ध करते हुए उन्होंने कहा था --- ' क्रान्ति का वास्तविक मार्ग मेहनत पेशा लोगों को जागृत तथा संगठित करना है l थोड़े से युवक आतंकवादी कार्य कर के इस महान उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकते l यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमको बमों और पिस्तौलों से लाभ नहीं होगा l ' ------
उन्होंने कहा ---- " समाज में सभी के लिए अनाज पैदा करने वाले किसानों के परिवार भूखों मरते हैं , सारे संसार को सूत जुटाने वाला बुनकर अपना और अपने बच्चों का तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ा नहीं पाता है , शानदार महल खड़ा करने वाले लुहार , बढ़ई, कारीगर झोंपड़ी में ही बसर करते और मर जाते हैं और दूसरी तरफ पूंजीपति , शोषक अपनी सनक पर करोड़ों रुपया बहा देते हैं l l समाज में एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना की जाये जिसमे मजदूर वर्ग के प्रभुत्व को मान्यता दी जाये जिसके फलस्वरूप पूंजीवाद के बन्धनों , दुःखों तथा युद्धों से मानवता का उद्धार हो सके l "
' मृत्यु ' मानवमात्र को आतंकित कर देती है लेकिन भगतसिंह को अंतिम क्षण तक मृत्यु की भयंकरता का तनिक भी भय नहीं हुआ l मृत्यु के दिन उनने अपने भाई को पत्र में यह अमर वाक्य लिखे थे ----- " एक दीपक की लौ की तरह मैं सुबह होने से पहले ही खत्म हो जाऊंगा l यह मुट्ठी भर खाक अगर नष्ट हो जाये तो इससे क्या हानि होगी ? "
भगतसिंह का आत्मबलिदान इतना प्रभावशाली सिद्ध हुआ कि सर्वत्र उनका नाम गूंजने लगा l महात्मा गाँधी ने कहा --- " हमारे मस्तक भगतसिंह की बहादुरी और बलिदान के समक्ष झुक जाते हैं l "
No comments:
Post a Comment