राजस्थान प्रान्त के सीकर जिले के मगलूणा गाँव में एक साधारण किसान परिवार में केशवानंद का जन्म हुआ , उनके बचपन का नाम ' वीरमा ' था l अपने बचपन और किशोरावस्था में उन्होंने गाँव के जीवन का दरद और बदहाली देखी l उस समय गाँव के लोग जागीरदारों - सामंतों , राजाओं - नवाबों और विदेशी शासकों की तिहरी गुलामी में जकड़े थे l वीरमा की किशोरावस्था राजस्थान के रेतीले टीलों के बीच लगभग नंगे बदन सरदी - गरमी सब कुछ सहते हुए बीती l ऐसे में माता - पिता भी चल बसे l तब उन्हें आर्य अनाथालय में सहारा मिला l पढने की लगन में उन्होंने साधुवेश धारण किया l पंजाब के गुरु कुशलदास और अवधूत हीरानंद के संपर्क में आकर ' केशवानंद ' बन गए l फिर तो भारत भर के तीर्थ स्थानों , मंदिरों , मठों , शहर , गाँव , शिक्षण - संस्थानों ---- में घूम - घूम कर दुनिया की पुस्तकें पढ़ डालीं l
गुरु - सेवा , शिक्षण और भ्रमण के इस अनुभव में उन्होंने जाना कि ---- व्यक्ति का जितना शिक्षित होना जरुरी है , उससे कहीं अधिक आवश्यक है जीवन जीने की कला का अभ्यास l इसी प्रयास में उन्होंने राजस्थान , हरियाणा , पंजाब में प्राथमिक पाठ शालाएं , चल - पुस्तकालय , वाचनालय आदि स्थापित और संचालित किये l उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं में सबसे ज्यादा नाम व चर्चा ' ग्रामोत्थान विद्दापीठ सांगरिया की हुई l
अनगिनत संस्थाओं के संस्थापक स्वामी केशवानंद अखण्ड ज्योति पत्रिका एवं इसके संचालक परम पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य से प्रेरणा ग्रहण करते थे l वह कहते थे अखण्ड ज्योति पत्रिका में प्रकाशित जीवन जीने की कला आज के युग की ब्रह्म विद्दा है l इस पत्रिका में प्रकाशित अंशों का जिक्र करते हुए कहते थे ---- " जिन्दगी जीना एक कला है l यह कला तो वास्तव में मानसिक वृति है , जिसके आधार पर साधनों की कमी में भी जिन्दगी को खूबसूरती के साथ जिया जा सकता है l जिन्दगी को हर समय हंसी - खुशी के साथ अग्रसर करते रहना ही कला है l उसे रो - पीटकर काटना ही कलाहीनता है l जो जीवन की अनुकूलता और प्रतिकूलता के परिवर्तनों का समभाव से उपभोग कर लेता है , वही कुशल कलाकार कहा जायेगा l
गुरु - सेवा , शिक्षण और भ्रमण के इस अनुभव में उन्होंने जाना कि ---- व्यक्ति का जितना शिक्षित होना जरुरी है , उससे कहीं अधिक आवश्यक है जीवन जीने की कला का अभ्यास l इसी प्रयास में उन्होंने राजस्थान , हरियाणा , पंजाब में प्राथमिक पाठ शालाएं , चल - पुस्तकालय , वाचनालय आदि स्थापित और संचालित किये l उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं में सबसे ज्यादा नाम व चर्चा ' ग्रामोत्थान विद्दापीठ सांगरिया की हुई l
अनगिनत संस्थाओं के संस्थापक स्वामी केशवानंद अखण्ड ज्योति पत्रिका एवं इसके संचालक परम पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य से प्रेरणा ग्रहण करते थे l वह कहते थे अखण्ड ज्योति पत्रिका में प्रकाशित जीवन जीने की कला आज के युग की ब्रह्म विद्दा है l इस पत्रिका में प्रकाशित अंशों का जिक्र करते हुए कहते थे ---- " जिन्दगी जीना एक कला है l यह कला तो वास्तव में मानसिक वृति है , जिसके आधार पर साधनों की कमी में भी जिन्दगी को खूबसूरती के साथ जिया जा सकता है l जिन्दगी को हर समय हंसी - खुशी के साथ अग्रसर करते रहना ही कला है l उसे रो - पीटकर काटना ही कलाहीनता है l जो जीवन की अनुकूलता और प्रतिकूलता के परिवर्तनों का समभाव से उपभोग कर लेता है , वही कुशल कलाकार कहा जायेगा l
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