किसी भी देश के स्वाधीनता आन्दोलन में उचित मार्ग चुनने का भी बड़ा महत्व है l यदि ऐसा न किया जाये तो प्रकट में बड़ा परिश्रम , त्याग , कष्ट सहन करते हुए भी हम अपनी शक्ति को बर्बाद करते रहते हैं और प्रगति मार्ग पर बहुत ही कम अग्रसर हो पाते हैं l सभी राजनीतिक कार्यकर्ता अपने - अपने रास्ते को सही और प्रभावशाली बतलाते हैं और उसके लिए नई पार्टी अथवा संस्था बनाकर अपनी ढाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना ही महत्वपूर्ण मानते हैं l
पर लेनिन के समान व्यक्ति समस्त राष्ट्र में दो - चार ही होते हैं जो समय की गति को बिलकुल ठीक समझ सकते हैं और अनुकूल विधान बना सकते हैं l
लेनिन के बड़े भाई अलेक्जेंडर को 1887 में जार की हत्या के षडयंत्र के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया , तब उसने अदालत के सामने कहा ---- " रूस के वर्तमान निरंकुशता पूर्ण शासन में गुप्त हत्याओं के सिवा और किसी उपाय से राजनीतिक सुधार नहीं हो सकता l मुझे मृत्यु का डर नहीं l मेरे बाद अवश्य ही अन्य लोग आगे बढ़ेंगे और एक दिन जारशाही को जड़मूल से उखाड़कर फेंक देंगे l " लेनिन की आयु उस समय केवल 17 वर्ष थी , इस आयु में भी वह जनक्रांति के महत्व और शक्ति को समझता था l अपने भाई के इस प्रकार असामयिक अन्त होने से उसके ह्रदय को तीव्र धक्का लगा और वह सदा के लिए जारशाही का दुश्मन बन गया l
पर साथ ही लेनिन ने यह भी अनुभव किया कि षडयंत्र और गुप्त हत्याओं का मार्ग सही नहीं है l उस अवसर पर उसके मुंह से निकला ----- " नहीं , यह रास्ता ठीक नहीं है , हम इस पर चलकर सफलता प्राप्त नहीं कर सकते l " उसी समय से वह नवीन पथ का पथिक बन गया जो उसकी समझ में रूस को जार की निरंकुश सत्ता से मुक्त कराने के लिए कारगर था l
इस मार्ग का वरण करते समय वह जानते थे कि यह मार्ग काँटों और बाधाओं से भरा पड़ा है फिर भी उन्होंने इस मार्ग को प्रसन्नतापूर्वक चुना , अपने लिए नहीं समाज के लिए , कोटि - कोटि उस जन - समुदाय के लिए जो शोषण और उत्पीड़न की आग में जल रहा था l 21 जनवरी 1924 की शाम को लेनिन का देहान्त हुआ , उस अवसर पर रूस की तमाम जनता रो उठी l
नि:स्वार्थ भाव से जन कल्याण के लिए किये गए कार्यों का परिणाम अंत में अपने और दूसरों के लिए मंगलदायक ही सिद्ध होता है l
पर लेनिन के समान व्यक्ति समस्त राष्ट्र में दो - चार ही होते हैं जो समय की गति को बिलकुल ठीक समझ सकते हैं और अनुकूल विधान बना सकते हैं l
लेनिन के बड़े भाई अलेक्जेंडर को 1887 में जार की हत्या के षडयंत्र के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया , तब उसने अदालत के सामने कहा ---- " रूस के वर्तमान निरंकुशता पूर्ण शासन में गुप्त हत्याओं के सिवा और किसी उपाय से राजनीतिक सुधार नहीं हो सकता l मुझे मृत्यु का डर नहीं l मेरे बाद अवश्य ही अन्य लोग आगे बढ़ेंगे और एक दिन जारशाही को जड़मूल से उखाड़कर फेंक देंगे l " लेनिन की आयु उस समय केवल 17 वर्ष थी , इस आयु में भी वह जनक्रांति के महत्व और शक्ति को समझता था l अपने भाई के इस प्रकार असामयिक अन्त होने से उसके ह्रदय को तीव्र धक्का लगा और वह सदा के लिए जारशाही का दुश्मन बन गया l
पर साथ ही लेनिन ने यह भी अनुभव किया कि षडयंत्र और गुप्त हत्याओं का मार्ग सही नहीं है l उस अवसर पर उसके मुंह से निकला ----- " नहीं , यह रास्ता ठीक नहीं है , हम इस पर चलकर सफलता प्राप्त नहीं कर सकते l " उसी समय से वह नवीन पथ का पथिक बन गया जो उसकी समझ में रूस को जार की निरंकुश सत्ता से मुक्त कराने के लिए कारगर था l
इस मार्ग का वरण करते समय वह जानते थे कि यह मार्ग काँटों और बाधाओं से भरा पड़ा है फिर भी उन्होंने इस मार्ग को प्रसन्नतापूर्वक चुना , अपने लिए नहीं समाज के लिए , कोटि - कोटि उस जन - समुदाय के लिए जो शोषण और उत्पीड़न की आग में जल रहा था l 21 जनवरी 1924 की शाम को लेनिन का देहान्त हुआ , उस अवसर पर रूस की तमाम जनता रो उठी l
नि:स्वार्थ भाव से जन कल्याण के लिए किये गए कार्यों का परिणाम अंत में अपने और दूसरों के लिए मंगलदायक ही सिद्ध होता है l
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