विद्वानों का मत है कि पुराने अनुभवों को बोझा नहीं बनने देना चाहिए l अनुभवों को वर्तमान की कसौटी पर परखते रहना चाहिए l अर्जित ज्ञान में जो आज भी प्रासंगिक है , उसे ग्रहण करना चाहिए और जो प्रासंगिक नहीं रहा उसे सुखद स्मृतियों के लिए छोड़ देना चाहिए l ज्ञान को व्यवहार की कसौटी पर निरंतर परिष्कृत करने से ही वह सजीव रहता है l बीते हुए का शोक छोड़ें और भविष्य के समुज्ज्वल जीवन की ओर बढ़ें l आकाश में कितने तारे रोज टूटते हैं --- इस संबंध में हरिवंशराय बच्चन ने लिखा है ---- ' जो छूट गए फिर कहाँ मिले , पर बोलो टूटे तारों पर , कब अम्बर शोक मनाता है l
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