एक संत के त्याग से प्रभावित होकर एक राजा ने भी उनसे गुरुदीक्षा ली l पहले भी हजारों लोग उनसे दीक्षा ले चुके थे l उन्होंने राजा को भी दीक्षित देखा तो सबने जाकर कहा ----- महाराज ! अब तो आप हमारे गुरुभाई हैं , अब हमसे राज्य - कर नहीं माँगना l राजा ने दुविधावश सबका कर माफ कर दिया l परिणाम यह निकला कि राज्य - व्यवस्था के लिए पैसा मिलना बंद हो गया , सारी व्यवस्था नष्ट - भ्रष्ट हो गई l यह देखकर संत ने राजा को बुलाया और कहा ----- " राजन ! धर्म की सार्थकता कर्म से है l आलसी लोग दीक्षा भी ले लें तो क्या ! इनमे मेरा एक भी शिष्य नहीं है l "
राजा ने भूल समझी और टैक्स लगा दिया , तब कहीं बिगड़ती शासन व्यवस्था संभली l
राजा ने भूल समझी और टैक्स लगा दिया , तब कहीं बिगड़ती शासन व्यवस्था संभली l
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